हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था- २८

हम अपने रक्तदाब (रक्तचाप- ब्लड प्रेशर) और उस पर के नियंत्रण के बारे में जानकारी ले रहे हैं। हमारी चेतासंस्था (नर्व्हस सिस्टिम) द्वारा किये जानेवाले नियंत्रण को हमने देखा। चेतासंस्था के द्वारा होनेवाले नियंत्रण तुरन्त कार्यरत होते हैं। इसीलिये इन्हें तत्काल नियंत्रण कहा जाता है। परन्तु जब रक्तदाब धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और यह वृद्धि कुछ घंटों से कुछ दिनों तक होती ही रहती है तो चेतासंस्था उसे नियंत्रित नहीं कर सकती। लाँगहर्म अथवा स्थायी नियंत्रण में मूत्रपिंड महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब हम देखेंगे की ये कार्य किस प्रकार होते हैं।

मूत्रपिंड और शरीर में पानी की मात्रा का समीकरण रक्तदाब को कैसे नियंत्रित करता है, अब हम इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे। शरीर में पेशीबाह्य द्राव (एक्स्ट्रासेल्युलर फ्लुइड) की मात्रा यदि किन्हीं कारणों से बढ़ जाये तो रक्त की मात्रा व रक्तदाब दोनों बढ़ जाते हैं। ऐसा होते ही मूत्रपिंड में बननेवाले मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर का बढ़ा हुआ पानी बाहर निकाल दिया जाता है। इससे विपरीत शरीर में पेशीबाह्य द्राव के कम हो जाने अथवा रक्त की मात्रा कम हो जाने पर रक्तदाब कम हो जाता है। ऐसी दशा में मूत्रपिंड में बननेवाले मूत्र की मात्रा कम हो जाती है।

हॅगफ़िश यह मछलियों की पृष्ठवंशीय प्राणियों में एक अत्यंत प्राथमिक अवस्था की मछली है। उसके शरीर में भी ये मेकॅनिझम कार्यरत होते हैं। इस मछली का रक्तदाब ज्यादा मात्रा में बढ़ने के बाद मूत्रपिंड कार्य करने लगते हैं। परन्तु मानवों के रक्तदाब में कुछ मिलीमीटर्स की कमी होते ही फ़ौरन उपरोक्त मेकॅनिझम अ‍ॅक्टीव हो जाता है। यदि रक्तदाब थोड़ा सा भी बढ़ जाये तो तुरंत पेशाब की मात्रा दो गुना बढ़ जाती है तथा मूत्र के माध्यम से बाहर निकलने वाले क्षार की मात्रा भी दो गुनी बढ़ जाती है।

हॅगफ़िश की तरह मानवों में भी उपरोक्त समीकरण रक्तदाब को स्थायी रूप से नियंत्रित करनेवाला मूलभूत मेकॅनिझम है। परंतु इसमें अन्य मॅकेनिझम भी सक्रिय रहते हैं। इनकी जानकारी हम आगे प्राप्त करेंगे।

रक्तदाब का स्थायी नियंत्रण मुख्यत: दो बातों पर निर्भर होता है –

१) मूत्रपिंड का कार्य

२) हमारे दैनंदिन आहार से पानी व क्षारों की मात्रा

मूत्रपिंड जब तक ठीक से कार्य करते रहते हैं तब तक अन्य दो कारणों से अथवा किसी और कारण से रक्तदाब यदि बढ़ भी जाये तो वह नियंत्रित हो सकता है।

हमारे शरीर का औसतन रक्तदाब १००mmHg होता है। इसे Mean Arterial Pressure कहते हैं। मूत्रपिंड इसी रक्तदाब पर अ‍ॅडजस्ट हो जाते हैं। यदि औसतन रक्तदाब  १०० mmHg से ज्यादा बढ़ जाता है तो फ़ौरन पेशाब के माध्यम से पानी व क्षार बाहर निकाल दिये जाते हैं तथा रक्तदाब पुन: सामान्य स्तर पर लाया जाता है। यदि रक्तदाब २००mmHg हो जाए तो मूत्र की मात्रा में ६ से ८ गुना वृद्धि हो जाती है।

शरीर के रक्तप्रवाह का होनेवाला विरोध (resistance) यदि किन्ही कारणों से बढ़ जाये तो रक्तदाब फ़ौरन बढ़ जाता है। परन्तु यदि मूत्रपिंडो का कार्य सामान्य हो और मूत्रपिंड में रक्तप्रवाह का विरोध ना बढ़ा हो तो कुछ घंटो से लेकर कुछ दिनों में मूत्रपिंड रक्तदाब को सामान्य स्तर पर ले आते हैं।

जब तक हमारे मूत्रपिंडों का कार्य सुचारु रूप से चलता रहता है और हमारे आहार में पानी व क्षारों की मात्रा संतुलित रहती है तब तक हमारा औसतन रक्तदाब नहीं बदलता। परन्तु यदि इनमें एक-आध चीज बिगड़ जाए तो औसतन रक्तदाब बदल सकता है। यानी बढ़ सकता है। औसतन रक्तदाब में इस वृद्धि को उच्च रक्तदाब अथवा Hypertention कहते हैं। हमारा सामान्य रक्तदाब १२० सिस्टोलीक और ८० mmHg डायस्टॉलीक होता है। इसका औसत होता है १००, इसीलिये औसतन रक्तदाब १०० mmHg माना जाता है। सिस्टोलीक या डायस्टॉलीक में से किसी एक अथवा दोनों रक्तदाबों में वृद्धि होने से औसतन रक्तदाब बढ़ जाता है। उदा. यदि मेरा रक्तदाब १५०mmHg / १०० mmHg है तो मेरा औसतन रक्तदाब १२५ mmHg होता है और शरीर इसी औसतन रक्तदाब के अनुसार अ‍ॅडजस्ट हो जाता है। तात्पर्य यह है कि १२५ mmHg से ज्यादा बढ़े रक्तदाब को बढ़ा हुआ मानकर शरीर बढ़े हुये रक्तदाब को नियंत्रित करके पुन: १२५ mmHg पर ले आता है। Hypertention अथवा उच्च रक्तदाब का निर्माण कैसे होता है, आगे हम उसकी जानकारी लेंगे। परन्तु उससे पहले निम्नलिखित दो बातें हमें ध्यान में रखनी हैं –

१) किसी भी कारण से पेशीबाह्य द्राव में होनेवाली वृद्धि अंतत: रक्तदाब बढ़ाती है। बढ़े हुये द्राव के कारण रक्त की मात्रा (वॉल्युम) बढ़ जाती है। फ़लस्वरूप हृदय से प्रति मिनट बाहर निकलने वाले रक्त की मात्रा बढ़ जाती है।साथ ही साथ बढ़े हुए रक्त के कारण अवयवों की रक्तवाहनियाँ आकुंचित होती है और रक्त प्रवाह का होनेवाला विरोध बढ़ जाता है। इन दोनों बातों से रक्तदाब बढ़ जाता है।

२) क्षारों के कारण बढ़नेवाला रक्तदाब – ऊपर हमने देखा कि पेशीबाह्य द्रावों के बढ़ने के कारण रक्तदाब बढ़ जाता है। पेशीबाह्य द्रावों की मात्रा में वृद्धि का कारणक्षार ही होते हैं। शरीर में क्षार का प्रमाण (Salt) बढ़ने से दो चीजें होते हैं।

अ) क्षारों की बढ़ी हुयी मात्रा के कारण पेशियों की Osmolatlity बदल जाती है। फ़लस्वरूप हमारी प्यास बढ़ जाती है व व्यक्ति ज्यादा मात्रा में पानी पिता है, जिससे पेशीबाह्य द्राव की मात्रा बढ़ जाती है।

ब) बदली हुई ऑसमोलॅलिटी के कारण हैपोथॅलॅमस व पिच्युटरी ग्रंथी से अँटीडायुरेटिक हार्मोन ज्यादा मात्रा में  स्रवित होता है। इस हार्मोन के कारण मूत्रपिंड से ज्यादा पानी सोखा जाता है। पेशाब की मात्रा कम हो जाती है और पेशीबाह्य द्राव की मात्रा बढ़ जाती है।

यानी क्षारों के कारण पेशीबाह्य द्राव की मात्रा बढ़ती ही जाती है और उसके परिणाम स्वरूप रक्तदाब बढ़ता जाता है। साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि जब हम आहार में आवश्यकता से ज्यादा नमक खाते हैं तो वह उच्चरक्तदाब को आमंत्रण देता है। साथ ही यदि मेरा रक्तदाब उच्च होगा तो नमक रक्तदाब को और भी बढ़ा देता है। इसीलिए उच्च रक्तदाब वाले व्यक्ति को डॉक्टर कम नमक खाने की सलाह देते हैं।

(क्रमश:-..)

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