हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था- २९

हमारा रक्तदाब (रक्तचाप- ब्लड प्रेशर) किन-किन घटकों के द्वारा नियंत्रित किया जाता है, हम इसका अध्ययन कर रहे हैं। हमारे मूत्रपिंड रक्तदाब के लाँग टर्म नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पिछले लेख में हमने देखा है कि मूत्रपिंडों के कार्य और दैनंदिन आहार में पानी और क्षार की मात्रा, ये दोनों घटक रक्तदाब के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण होते हैं। मूत्रपिंडों के कार्यों में रेनिन-अ‍ॅँजिओटेन्सिन नामक संप्रेरक महत्त्वपूर्ण होते हैं। अब हम देखेंगे कि रक्तदाब के नियंत्रण में इनके क्या कार्य हैं।

रेनिन एक प्रथिन एन्झाइम है। जब रक्तदाब में बड़ी मात्रा में घटाव होता है, तब ये एन्झाइम मूत्रपिंड से रक्त में स्रवित होते हैं। बाद में ये एन्झाइम विभिन्न तरीकों से रक्तदाब बढ़ाते रहते हैं। स्वत: रेनिन एक एन्झाइम होने के कारण रक्तदाब की वृद्धि के लिये सीधे कारणीभूत नहीं होता। फिर भी यह सब कैसे होता है, हम यह देखेंगे।

आहारबगल में दी गयी आकृति में यह बताया गया है कि रक्तदाब किस प्रकार बढ़ता है।

१) रक्तदाब में कमी होने पर मूत्रपिंड की जक्स्टा-ग्लोमेरूलर पेशी में जमा हुआ रेनिन छूट जाता है व प्रथम पहले मूत्रपिंड की रक्तवाहनियों में पहुँचता है। यहाँ से यह शरीर की मुख्य रक्तवाहनियों में जाता हैं।

२) हमारे रक्त में अ‍ॅँजिओटेन्सिनोजेन (angiotensinogen) नामक प्रथिन होती है। रेनिन इस प्रथिन पर कार्य करता है व उसका रूपांतर ‘अ‍ॅँजिटेन्सिन एक’ में करता है। रक्त में प्रवेश करने के समय से लेकर ३० मिनट से एक घंटे तक रेनिन कार्यरत रहता है।

३) अ‍ॅँजिओटेन्सिनोजेन से ‘अँजिओटेन्सिन एक’ बनता है व कुछ सेकेंड़ों में ही उसका रूपांतर ‘अँजिओटेन्सिस दो’ में होता है। यह रूपांतर हमारे फेफड़ों में होता है। यह रूपांतर करनेवाले एन्झाइम सिर्फ फेफड़ों की रक्तवाहनियों के एन्डोथेलियम में होते हैं।

४) ‘अँजिओटेन्सिन दो’ नामक प्रथिन कुछ मिनटों तक ही रक्त में रहती है। इस दौरान वे दो तरह से रक्तदाब बढ़ाते हैं।

अ) ‘अँजिओटेन्सिन दो’ एक शक्तिशाली वासोकन्स्ट्रिक्टर है। ये आरटरिओल्स व वेन्स को आकुंचित करता है व कुछ सेके़ंडों में ही रक्तदाब बढ़ जाता है।

ब) ‘अँजिओटेन्सिन दो’ मूत्रपिंडों पर कार्य करता है। इसके कार्यों के कारण मूत्रपिंड से बाहर निकलने वाला पानी व क्षार दोनों की मात्रा कम होती जाती है। इसके कारण शरीर में पेशीबाह्य द्राव की मात्रा बढ़ जाती है। यह बढ़ा हुआ द्राव धीरे-धीरे रक्तदाब में वृद्धि करता है। यह प्रक्रिया कुछ घंटों में शुरू होती हैं व आगे कई दिनों तक चलती रहती है। इसीलिये इसके द्वारा रक्तदाब में लाँगटर्म वृद्धि होती है।

हमने अँजिओटेन्सिन का मूत्रपिंड पर कार्य देखा। इसका उपयोग हमारे दैनंदिन जीवन में होता है। यदि हमारे आहार में नमक की मात्रा कम या ज्यादा हो जाये तो भी रक्तदाब पर उसका ज्यादा असर नहीं पड़ता। हमारे आहार में नमक की मात्रा ज्यादा होने पर शरीर में पेशीबाह्य द्राव की मात्रा बढ़ जाती है। इसका असर रक्तदाब पर होता है, वहाँ रक्तदाब बढ़ जाता है। बढ़े हुए रक्तदाब के कारण मूत्रपिंड की रक्तवाहनियों में बहनेवाले रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। इस बढ़े हुये रक्तप्रवाह के कारण रेनिन का रिसाब कम हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि मूत्रपिंड से बाहर निकलने वाले क्षार व पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेशीबाह्य द्राव घट जाता है तथा रक्तदाब कम हो जाता है। इस योजना के कारण नमक के ज्यादा सेवन के बावजूद भी रक्तदाब में ४ से ६ mmHg तक ही वृद्धि होती है। यदि किसी कारण से रेनिन-अँजिओटेन्सिन शृंखला का काम रुक जाये तो यह वृद्धि 50 से 60 mmHg तक हो जाती है। बाजार में कॅप्टोप्रिल (Captopril) नामक दवा उपलब्ध है। उच्चदाब के कम करने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता है। रेनिन-अँजिओटेन्सिन शृंखला के कार्य यह दवा रोक देती है। यदि उच्चदाब को काम करने के लिये कोई यह दवा ले रहा हो तो उसको अपने आहार में नमक की मात्रा कम रखना आवश्यक है।

रक्तदाब बढ़ जाने पर रेनिन शृंखला में होनेवाले परिवर्तन का हमने अध्ययन किया। रक्तदाब कम हो जाने पर ऊपर बतायी गयी प्रक्रिया उलटे क्रम से घटित होती है और रक्तदाब फिर से नॉर्मल पर लाना है।

रक्तदाब पर किस प्रकार नियंत्रण चलता रहता है। इसी घटना की विस्तृत जानकारी हम अगले लेख में प्राप्त करनेवाले हैं।

(क्रमश..)

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