हृदय व रक्ताभिसरण संस्था- २५

‘डॉक्टर – आज सबेरे से ही काफ़ी ठंड़ी लग रही है, चक्कर आ रहा है। क्या आप मेरा बी.पी. चेक कर लोगे? अथवा ‘डॉक्टर, मुझे लगता है कि आज मेरा बी.पी. बढ़ गया है। क्या आप चेक करके बतायेंगे कि यह कितना बढ़ गया है?’ ऐसे व इसप्रकार के अनेको संवाद प्रतिदिन दवाखानों में होते रहते हैं। बी.पी. यानी ब्लडप्रेशर अथवा रक्तदाब।

रक्तदाब

सामान्यत: प्रत्येक वयस्क व्यक्ति का रक्तदाब १२० mmHg Systolic व ८० mmHg Diastolic होता है। इससे ज्यादा के रक्तदाब को उच्च रक्तदाब व इससे कम रक्तदाब को निम्न रक्तदाब कहा जाता है। शरीर के अनेक घटक, अवयव इस रक्तदाब को कम या ज्यादा करते रहते हैं। यह बदलाव कभी-कभी अस्थायी होता है और कभी-कभी स्थायी। शरीर की आवश्यकतानुसार रक्तदाब में चढ़-उतार कभी तेज़ गति से होता है तो कभी धीरे-धीरे होता है। रक्तदाब में चढ़ाव-उतार पर नियंत्रण शरीर में किस प्रकार होता है, अब हमें यह देखना है।

कभी-कभी (उदा. अतिरक्तदाब के समय) शरीर की रक्तवाहनियों में रक्तदाब तेज़ी से बढ़ाने की आवश्यकता होती है। ऐसी परिस्थिती में हमारी चेतासंस्था सहायता के लिए दौड़कर आ जाती है। चेतासंस्था के द्वारा सबसे तेज़ गति से रक्तदाब में वृद्धि की जाती है। रक्तस्त्राव जैसी आपातकालीन परिस्थिती में सिंपथेटिक चेतासंस्था एकजुटता के साथ काम करने लगती है। इसके सभी कार्य एक साथ ही शुरु हो जाते हैं। साथ ही साथ पॅरासिंपथेटीक संस्था (वेगस नर्व्ह) के कार्य रोक दिये जाते है। इसके फ़लस्वरूप एक ही समय पर तीन चीजें होती हैं –

१) शरीर की लगभग सभी आर्टिरिओल्स का आकुंचन होता है। जिसके कारण रक्तप्रवाह का होनेवाला विरोध बढ़ जाता है और रक्तस्त्राव बढ़ जाता है।

२) वेन्स व सभी बड़ी रक्तवाहनियाँ आकुंचित हो जाती है। फ़लस्वरूप इन रक्तवाहनियों का रक्त हृदय की ओर जाता है। इसके परिणाम स्वरूप हृदय के आकुंचन का जोर बढ़ जाता है और हृदय से बाहर निकलनेवाले रक्त का प्रमाण भी बढ़ता है। बढ़े हुए रक्त के कारण रक्तदबाव भी बढ़ता है।

३) हृदय के स्पंदनों की गति बढ़ जाती है व आकुंचन का जोर भी बढ़ जाता है। कभी-कभी तो हृदय के स्पंदनों की गति सामान्य से तीन गुना तक बढ़ जाती है। साथ ही साथ प्रत्येक स्पंदन के दौरान हृदय से बाहर निकलने वाले रक्त की मात्रा भी तीन गुना बढ़ जाती है।

किसी आपातकालीन परिस्थिती के बाद मात्र कुछ सेकेड़ों में यह क्रिया शुरु हो जाती है व ५ से १० सेकेड़ों में ही रक्तदाब सामान्य से दो-गुना हो जाता है। इसके विपरित यदि रक्तदाब कम करना हो तो १० से ४० सेकेड़ों में रक्तदाब आधा कम हो जाता है।

व्यायाम और रक्तदाब :
अब हम यह देखेंगे की व्यायाम अथवा exercise व रक्तदाब का क्या संबंध है –
जब हम व्यायाम करते है तब हमारे शरीर के स्नायुओं के कार्य बढ़ जाते हैं। कार्य बढ़ जाने के कारण स्नायुओं की प्राणवायु और अन्न घटकों की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। फ़लस्वरूप स्नायुओं को होनेवाली रक्त-आपूर्ति की मात्रा बढ़ जाती है। शुरु-शुरु में इस आवश्यकता को स्थानिक रक्तवाहनियों के डायलटेशन से पूरा किया जाता है। यदि हम लगातार व्यायाम करते ही रहें तो रक्तदाब बढ़ जाता है क्योंकि सिंपथेटिक चेतासंस्था कार्यरत हो जाती है। इसके कारण हृदय की पंपिंग व स्पंदन दोनों बढ़ जाते हैं। यदि आप हेवी एक्सरसाइझ कर रहें होंगे तो उस दौरान रक्तदाब ३० से ४०% तक बढ़ जाती है। फ़लस्वरूप स्नायुओं को होनेवाली रक्त-आपूर्ति दो गुनी बढ़ जाती है।

मानसिक तनाव व रक्तदाब :
किसी भी प्रकार का तनाव रक्तदाब बढ़ा देता है। उदाहरण किसी कारणवश उत्पना होनेवाला भयंकर भय अथवा क्रोध रक्तदाब में दो गुना वृद्धि कर सकता है। परन्तु इससे एक फ़ायदा भी होता है। रक्तदाब बढ़ने के कारण स्नायुओं में रक्त की आपूर्ति बढ़ जाती है व मान लो किसी भयदायक चीज़ से दूर भागना हो तो – स्नायु उसके लिये तैयार रहते हैं जिससे तेज़ी से भागना संभव होता है।

हमारा रक्तदाब सामान्यत: १२०mmHg व 80 mmHg होता है। एक दिन के चौबीस घंटे तथा वर्षो-वर्षो तक रक्तदाब को इसी स्तर पर कैसे रखा जा सकता है, आईये हम इसकी जानकारी प्राप्त करें।

हमने देखा कि हमारे दैनंदिन जीवन में विभिन्न कारणों से रक्तदाब में उतार-चढ़ाव होता रहता है। ऐसी परिस्थिती में शरीर की विविध प्रतिक्षिप्त क्रियायें अथवा घटनायें सहायता करती है और रक्तदाब पुन: सामान्य स्तर पर लाती हैं। इस घटनाक्रम को Reflex Mechanisms कहते हैं। ये सभी घटनायें मष्तिष्क के Subconscious स्तर पर यानी हमारे अनजाने में ही होती रहती हैं।

आपातकालीन व्यवस्थापन में संदेशों के आदान-प्रदान के लिये हम कार्यकर्ताओं की एक शृंखला बनाते हैं। किसी भी दुर्घटना की जानकारी यदि इस शृंखला के किसी एक कार्यकर्ता को ही जाती है तो वह शृंखला के अगले कार्यकर्ता को पहुँचा देता है। वहाँ से वह आगे-आगे बढ़ती जाती है। शृंखला के अंतिम कार्यकर्ता तक जब वह जानकारी पहुँच जाती है तो वो पुन: यह जानकारी प्रथम कार्यकर्ता को देता है। इसे Feedback यानी जानकारी के चक्र के पूरा होने की पुष्टि कहा जाता है। हमारे शरीर में ऐसे कई फ़िडबॅक मेकॅनिझम हैं। नॉर्मल और आपातकालीन दोनों परिस्थितियों में ये मेकॅनिझम कार्यरत रहते हैं। आवश्यकतानुसार ये फ़िडबॅक मेकॅनिझम सकारात्मक (Positive) अथवा नकारात्मक (Negative) संदेशों का निर्माण करते हैं। शरीर के रक्तदाब को सामान्य स्तर पर रखने के लिये इस प्रकार के अनेक ‘नकारात्मक फ़िडबॅक’ मेकॅनिझम सहायता करते हैं। वे कौन-कौन से हैं, यह हम कल के लेख में देखेंगे।

(क्रमश:)

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