हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – १५

आज हम रक्ताभिसरण संस्था के वेन्स एवं अन्य रक्तवाहनियों के कार्यों का अध्ययन करेंगें। हृदय, आरटरीज, उन में रक्तदाब, रक्त का प्रवाह इत्यादी बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं, ऐसा सर्वसाधारण मत है। वेन्स कोई महत्त्वपूर्ण रक्तवाहिनियाँ नहीं हैं। इनका कार्य तो अशुद्ध रक्त को शरीर की कोशिका-समूहों से हृदय तक पहुँचाना इतना ही होता है, ऐसी गलतफहमी प्राय: हुआ करती है।

शरीर के रक्ताभिसरण में वेन्स अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वेन्स बड़ी मात्रा में आकुंचित अथवा प्रसरित होती हैं। फलस्वरूप शरीर की आवश्यकतानुसार अपने अंदर जमा रक्त की मात्रा कम या ज़्यादा कर सकती हैं। हृदय से दूर स्थित छोटी वेन्स उनके ‘वेनस पंप’ के द्वारा रक्त को हृदय की दिशा में धकेलती हैं। इसका असर कारडियाक आऊटपुट पर होता है। वेन्स में से जितनी ज्यादा मात्रा में रक्त हृदय की ओर आता है उतनी ही मात्रा में कारडियाक आऊटपुट बढ़ जाता है।

रक्तदाबवेन्स में रक्तदाब :

इसके दो मुख्य प्रकार होते हैं:-
१) दाहिनी एट्रिअम में रक्तदाब अथवा central venous pressure अर्थात c.v.p. और
२) हृदय से दूर स्थित अथवा परिघि की ओर वेन्स में रक्तदाब।

शरीर की सभी वेन्स में से रक्त दाहिनी एट्रिअम में जमा होता है। इसीलिये वहाँ के रक्तदाब को सेंट्रल वेनस प्रेशर या c.v.p कहते हैं। c.v.p. दो बातों पर अवलंबित होता है। पहली बात यह है कि सभी शारिरीक वेन्स का रक्त अंतत: दाहिनी एट्रिअम की ओर जाता है। रक्ताभिसरण का यह नियम और दूसरी बात दाहिने हृदय का पंपिंग कार्य जिसके कारण वहाँ का रक्त फ़ेफ़ड़ों की रक्तवाहिनियों में जाता है। अब इन दोनों बातों का अलग-अलग विचार करते हैं।

यदि हृदय की पंपिंग बढ़ जाये तो हृदय में रक्त की मात्रा कम हो जाती है और दाहिनी एट्रिअम में रक्तदाब कम हो जाता है। वहीं, हृदय के कार्य क्षीण हो जाने पर c.v.p. बढ़ जाता है।

सभी वेन्स में से दाहिनी एट्रिअम में आने वाले रक्त की मात्रा यदि बढ़ जाये तो c.v.p. बढ़ जाता है। दाहिनी एट्रिअम में आने वाले रक्त का प्रवाह बढ़ने के कई कारण हैं। समय आने पर हम उसकी जानकारी प्राप्त करेंगें।

दाहिने एट्रिअम में रक्तदाब साधारणत: ० mmHg (शून्य) होता है। हमारे शरीर के चारों ओर हवा का जो दाब होता है उतना ही यह रक्तदाब होता है। कुछ बीमारियों में, विकारों में, यह रक्तदाब २० से ३० mm of Hg तक बढ़ सकता है। इस स्तर तक इस दाब के बढ़ने के दो मुख्य कारण होते हैं-

१) हृदय के कार्यों का गंभीर रूप से क्षीण हो जाना। (Heart failure)
२) यदि किसी व्यक्ति को ज़्यादा मात्रा में रक्त दिया जाये।

कभी-कभी यह रक्तदाब ऋण (मायनस) ३ से ऋण ५ mmHg तक कम हो जाता है। c.v.p. के ऋण पाँच तक गिरने के दो कारण हैं १) हृदय की पंपिंग काफी तेज़ी से शुरू हो जाये तो और २) दाहिनी एट्रिअम की ओर आने वाला रक्तप्रवाह अत्यंत क्षीण हो जाये तो, जैसे कि अतिरिक्त  रक्तस्राव होना इत्यादि।

अभी तक हमने c.v.p. की जानकारी ली। अब शरीर की वेन्स में रक्तदाब कितना एवं कैसा होता है, इसकी जानकारी प्राप्त करेंगें।

हमारे शरीर की बड़ी वेन्स रक्तप्रवाह के कारण फूली हुई होती हैं। ऐसी स्थिति में वे रक्तप्रवाह का अत्यंत कम विरोध करती हैं। फलस्वरूप इन वेन्स में रक्तदाब भी लगभग शून्य होता है। परन्तु ऐसा होता नहीं है। बड़ी वेन्स छाती के पिंजरे में घुसने से पहले अनेक स्थानों पर अगल-बगल के अवयवों से दबायी जाती है। उदा.- हाथ की वेन्स छाती में घुसने से पहले कक्षाप्रदेश से जाती हैं, तब वे वहाँ पर दबायी जाती हैं। गर्दन की वेन्स, वातावरण की हवा के दाब के कारण पतली हो जाती हैं तथा पेट की वेन्स वहाँ के अनेक अवयवों के कारण दबायी जाती हैं। जहाँ पर वेन्स इस प्रकार दबायी जाती हैं, वहाँ पर रक्तप्रवाह को विरोध होता है। इसके फलस्वरूप छोटी वेन्स में रक्तदाब बढ़ जाता है। युवा, स्वस्थ व्यक्तियों में लेटने की स्थिति में यह दाब साधरणत: ४ से ६ mmHg होता है।

अब हम यह देखेंगे कि दाहिनी एट्रिअम में बढ़े हुए रक्तदाब का छोटी वेन्स पर क्या असर होता है। जब दाहिनी एट्रिअम में दाब बढ़ने लगता  है तो शुरुआत में छोटी वेन्स पर उसका कोई असर नहीं होता। शुरुआत में बढ़े हुये रक्तदाब के कारण रक्त बड़ी वेन्स में जमा होने लगता है। इसके कारण जहाँ-जहाँ पर ये वेन्स दबी होती है, वहाँ-वहाँ पर ये फूल जाती है। ऐसा होने के लिये दाहिनी एट्रिअम का रक्तदाब कम से कम +४ से +६  mmHg होना ही चाहिये। जब यह रक्तदाब इससे भी ज्यादा बढ़ जाता हैं तो छोटी वेन्स में रक्तदाब बढ़ता है और ये वेन्स फूली हुयी दिखायी देने लगती हैं। जब हृदय के कार्य क्षीण होने लगते हैं तब शुरु-शुरु में उनके ये लक्षण नज़र ही नहीं आते। जब हृदय के कार्य गंभीर रुप से क्षीण हो जाते हैं तब ये वेन्स फूली हुई दिखायी देने लगती हैं। इस बारे में रोगी की तबियत कितनी गंभीर है, यह जानने के लिये डॉक्टर लोग गर्दन की वेन्स में इन लक्षणों की जाँच करते हैं।

पेट के दाब का पैरों की वेन्स पर होने वाला असर :-

एक स्वस्थ व्यक्ति के लेटी हुयी अवस्था में, पेट का दाब ज्यादा से ज्यादा +६ mmHg होता है। गर्भावस्था, पेट में कोई गांठ अथवा पेट में पानी हो जाने पर यह दाब १५ से ३० mmHg तक बढ़ जाता है। इसके कारण पैरों से पेट की ओर आनेवाला रक्तप्रवाह बाधित हो जाता है। रक्तप्रवाह के सुचारु रूप से शुरु रहने के लिये पैरों की वेन्स का रक्तदाब भी उतना ही बढ़ जाता है।

गुरुत्वाकर्षण शक्ति का असर भी वेन्स पर होता है। अब हम गुरुत्वाकर्षण शक्ति के दाब अथवा हॅड्रोस्टेटिक दाब के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। ऐसी कल्पना कीजिए कि पानी का एक स्तंभ है। पानी का जो भाग हवा के संपर्क में होता है, वहाँ पर यह हॅड्रोस्टेटिक प्रेशर हवा के दाब के बराबर ही होता है। पानी की सबसे ऊपरी सतह से जब हम अंदर घुसते हैं तो वहाँ पर पानी का दाब बढ़ने लगता है। यह दाब प्रत्येक १३.६ मि मि अंतर पर १ mmHg की दर से बढ़ता रहता है। यह दाब पानी के वजन के फलस्वरूप तैयार होता है। इसको ही हॅड्रोस्टॅटिक दाब कहते हैं। हमारी रक्तवाहनियों में भी यह दाब कार्यरत रहता है क्योंकि रक्त भी आखिर द्रवरूप में ही होता है। शान्तिपूर्वक खड़े हुए व्यक्ति की दाहिनी एट्रिअम में दाब ० mmHg ही होता है। परन्तु पैरों में यह दाब +९० mmHg व पंजों में यह दाब +३५ mmHg होता है। पंजा व हृदय और पैर एवं हृदय के बीच के भाग में यह दाब हृदय की ओर कम होता जाता है।

परन्तु गर्दन की वेन्स में यह दाब भी ० mmHg ही होता है। क्योंकि हवा के दाब के कारण ये वेन्स हमेशा collapsed स्थिति में होती हैं। यदि किसी भी कारण से इन में दाब बढ़ जायेगा तो ये फूल जाती हैं और रक्तप्रवाह अविरोध हृदय की ओर होता रहता है। फलस्वरूप दाब कम हो जाने पर वे फिर collapse हो जाती है। यदि इन में दाब शून्य से भी कम हो जाता है तो वे और भी collapse हो जाती हैं। इसके कारण रक्त के प्रवाह को होने वाला विरोध बढ़ जाने से दाब शून्य पर आ जाता है।

खोपड़ी के अंदर की वेन्स पर हवा के दाब का कोई परिणाम नहीं होता। फलस्वरूप ये वेन्स कभी भी कोलॅप्स नहीं होती। वे हमेशा फूली रहने के कारण इनका दाब शून्य से नीचे जा सकता है। खड़े हुए व्यक्ति में मस्तिष्क के ऊपरी भाग वाली वेन में (इसे सॅजिटल सायनस कहते हैं) दाब ऋण इस (-१०) mmHg होता है। खोपड़ी के ऊपरी भाग एवं खोपड़ी का बेस इन में हॅड्रोस्टॅटिक दाब में जो अंतर होता है उसकी वजह से यह दाब शून्य से नीचे गिर जाता है। ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति का ऑपरेशन करते समय (सिर की शस्त्रक्रिया) यदि यह सॅजिटल वेन खोल दी गयी तो वातावरण की हवा इस में सोखी जाती है। यदि इस शोषित हवा का कोई बुलबुला हृदय तक पहुँच जाये तो हृदय के वाल्वों का काम बाधित हो जाता है जिससे व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। इसीलिये शल्यचिकित्सा करते समय डॉक्टरों को का़फी सावधानी बरतनी पड़ती है। इसीलिये शल्यचिकित्सा करते समय डॉक्टर सभी आवश्यक सावधानियाँ बरतते हैं।

आज हम यहीं पर रुकते हैं। वेन्स के शेष कार्यों का अध्ययन अगले लेख में करेंगें।

(क्रमश:)

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