हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – १६

हम रक्ताभिसरण में वेन्स के कार्यों का अध्ययन कर रहे हैं। वेन्स का प्रमुख कार्य है – विभिन्न पेशी समूहों और अवयवों में से रक्त को पुन: हृदय तक पहुँचाना। इससे हम समझ सकते हैं कि वेन्स में प्रवाहित हो रहे रक्त की दिशा हृदय की ओर ही होनी चाहिये, तभी यह संभव हो सकता है। वेन्स की दीवारों में स्नायु पेशियाँ कम होती हैं। वे स्वयं इस रक्त को आगे ढकेलने का काम नहीं कर सकती। शरीर के स्केलेटल स्नायू इस कार्य में वेन्स की मदत करते हैं। हमारे पैरों की, शरीर की थोड़ी सी गतिविधि भी उपयोगी साबित होती है। स्नायुओं के आकुंचन के कारण अगल-बगल की वेन्स पर दबाव पड़ता है और वेन्स में उपस्थित रक्त को आगे हृदय की दिशा में धकेला जाता है। हमारी पिण्डली के स्नायु इस क्रिया में सब से ज्यादा सहायता करते हैं। स्न्यायुओं की आकुंचन-प्रसरण क्रिया के फलस्वरूप यहाँ पर पंपिंग की क्रिया शुरु हो जाती है। इसीलिये इसे स्नायु का पंप कहते हैं। जब हम एक ही स्थान पर स्थिर खड़े रहते हैं अथवा बै़ठे रहते हैं तब पैरों की वेन्स में रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है।

रक्ताभिसरण की दृष्टि से चलने के दो फायदे हैं। चलने की क्रिया के कारण पैरों के स्नायुपंप जोर से कार्य करते हैं। इसका लाभ वेन्स को मिलता है व हृदय की ओर जानेवाला रक्तप्रवाह सुधारु रुप से शुरु रहता है। जब हम चलते रहते हैं तो शरीर की केशवाहनियाँ बड़ी मात्रा में खुली (open up) होती हैं। इस क्रिया के दौरान लगभग सा़ठ हजार केशवाहनियाँ जो शेष समय में बंद रहती हैं, वे कार्यरत हो जाती हैं, जिसका फायदा पेशियों को होता है।

स्नायुवेन्स में से रक्त स़िर्फ हृदय की दिशा में ही बहेगा इसकी खबरदारी रखने के लिये वेन्स में वाल्वस् होते हैं जो सिर्फ हृदय की दिशा में ही खुलते  हैं। फलस्वरूप रक्त उलटी दिशा में नहीं घूम सकता है। वह हृदय की दिशा में ही आगे बढ़ता रहता है। इसके पहले हमनें देखा कि पैरों की वेन्स में हॅड्रोस्टॅटिक दाब +९० mmHg होता है परन्तु वेन्स के वाल्वस् व स्नायुपंप के कारण चलने वाले व्यक्ति (चलते समय) यह दाब सिर्फ +२५ mmHg ही होता है। इसके कारण रक्त इकठ्ठा होकर पैरों में सूजन नहीं आती।

यदि कोई व्यक्ति एक ही जगह पर पूरी तरह स्थिर होकर मात्र ३० सेकेंड़ तक खड़ा रहता है तो पैरों की वेन्स में दाब  +९० mmHg तक पहुँच जाता है। इसका असर केशवाहिनियों पर होता है। केशवाहिनियों पर रक्तदाब बढ़ता है और इस बढ़े हुये दाब के कारण रक्त में उपस्थित पानी (रक्त का द्रवरुप) केशवाहनियों से बाहर निकल जाता है तथा पेशियों के अगल-बगल की जगह में जमा हो जाता है। इसीलिये पैरों में सूजन आ जाती है। घुटने सूज जाते हैं। रक्त में उपस्थित पानी के बाहर निकल जाने के कारण रक्त का कुल व्हॉल्युम कम हो जाता है। खड़े होने के बाद से पहले पंद्रह मिनट में १० से २०% ब्लड व्हॉल्युम इस तरह कम हो जाता है।

वेरिकोज वेन्स :-

मध्यम उम्रवाले अथवा वृद्ध स्त्री-पुरुषों में कभी-कभी पैरों के वेन्स स्पष्ट दिखायी देने लगती हैं। ये वेन्स फूली हुयी व गा़ठों युक्त दिखायी देती हैं। घुटने के नीचे पैरों में ये ज्यादा दिखायी देती है। इन वेन्स को वेरिकोज वेन्स कहते हैं। ये पैरों की वेन्स की बीमारी है। इस विकार या बीमारी में सबसे पहले वेन्स में वाल्वस् के कार्य कम होते जाते हैं और धीरे-धीरे ये वाल्वस् नष्ट हो जाते हैं। यदि किसी भी कारण से पैरों की वेन्स में दाब बढ़ जाता है (उदा.- गर्भावस्था, दिन भर में कई घंटों तक खड़े रहना पड़े और वो भी कई वर्षों तक तो वेन्स के वाल्वस् की कार्यक्षमता घट जाती है। ङ्गलस्वरूप वेन्स में से हृदय की ओर जाने वाले रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है और पैर के निचले हिस्सों में रक्त जमा होने लगता है। इसके कारण केशवाहनियों पर दाब बढ़ जाता है और रक्त का द्रव पदार्थ बाहर निकल जाता है, जिससे पैरों पर सूजन आ जाती है। जिसके कारण सूक्ष्म रक्ताभिसरण में अनेक घटकों का पेशियों के साथ होनेवाला आदान-प्रदान कम होकर पेशियों का कार्य धीमा पड़ जाता है। जिस व्यक्ति में वेरिकोज वेन्स का विकार होता है, उस व्यक्ति के पैरों में तुरंत सूजन आ जाती है, पैरों के स्नायु बार-बार दर्द करने लगते हैं तथा स्नायु क्षीण हो जाते हैं। त्वचा को मिलने वाले अन्नघटकों के कम हो जाने से त्वचा पर अल्सर अथवा गँगरीन तैयार हो जाती हैं।

इसमें भी रक्तदाब का अंदाज, cvp का अंदाज, गर्दन की रक्तवाहिनियों की जाँच करके लगाया जा सकता है। दाहिनी एट्रिअम में दाब +१० mmHg हो जाने पर गर्दन की वेन्स दिखायी देने लगती हैं। इसी दाब को +१५ mmHg हो जाने पर सभी वेन्स फूल जाती है और साफ़ साफ़ दिखायी देने लगती हैं। दाहिनी एट्रिअम में कथेटर ड़ालकर cvp को सीधे-सीधे मापा जा सकता है। जिस व्यक्ति में हृदय के कार्य +९० (weak) क्षीण हो चुके व्यक्ती में (heart failure) तो cvp का सीधे मापना उपयुक्त साबित होता है। हृदय के कार्य कितने प्रतिशत शुरू हैं, इसका अंदाज लगाया जा सकता है।

हमारे शरीर के कुल रक्त का ६०% रक्त वेन्स में होता है। इसलिये वेन्स को रक्त का भंडारण करने वाली यंत्रणा कहा जाता है। यदि रक्तस्राव के कारण शरीर का रक्त बह जाये तो आरटरीज में रक्त का दाब कम हो जाता है। जिसके कारण चेतासंस्था के कुछ भागों में संवेदना पहुँचती है और वहाँ से सिंपथेटिक चेतातंतू कार्यरत हो जाते है। चेतातंतु के इस कार्य के कारण वेन्स आकुंचित होती हैं व उन में जमा हुआ रक्त शरीर के लिये उपलब्ध कर देती हैं। इसीलिये कुल रक्त में से २०% (१ लीटर) रक्त यदि बह भी जाये तो  रक्ताभिसरण पर कुछ ज्यादा असर नहीं होता है। हमारे शरीर में कुछ विशिष्ट रक्त-भंडार इस प्रकार हैं :-

१) प्लीहा अथवा Spleen :- आवश्यकता पड़ने पर प्लीहा अपना आकार कम करके लगभग १०० मिली रक्त शरीर को उपलब्ध कराता है।

२) यकृत अथवा Liver :- इसके सायनसेस में से कुछ सौ मिली रक्त मिल सकता है।

३) पेट की अथवा बड़ी वेन्स :- इससे लगभग ३०० मिली रक्त प्राप्त होता है।

४) त्वचा के नीचे वेन्स के जाल :- आवश्यकता पड़ने पर कुछ सौ मिली रक्त मिल सकता है।

५) हृदय :- ५० से १०० मिली रक्त की आपूर्ति करते हैं।

६) फेफडे :- १०० से २०० मिली रक्त की आपूर्ति करते हैं।

प्लीहा रक्त के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। प्लीहा में रक्त का संचय दो स्थानों पर होता है।

१) वेन्स सायनसेस और

२) प्लीहा का पल्प

इन में से सायनसेस में रक्त संचित किया जाता है (यानी रक्त की सभी पेशियाँ एवं द्रवरुप)। पल्प में सिर्फ रक्तपेशियों का भंडार होता है। प्लीहा की केशवाहनियाँ उन पर स्थित परतों में से रक्तपेशियों को बाहर जाने देती है। प्लीहा के पल्प में से केशवाहनियाँ टॅबॅक्युलीज में रक्तपेशी अटक जाती हैं और रक्त का शेष द्रव भाग जिसे प्लाझ्मा कहते हैं वो वेनस सायनसेस में जाता है। पल्प के जिस भाग में रक्त की लाल पेशियाँ अटकती हैं उसे रेड पल्प कहते हैं और जहाँ सफेद पेशियाँ अटकती हैं उसे सफेद पल्प कहते हैं। प्लीहा के लाल पल्प में रक्त की लाल पेशियाँ जमा होती हैं और आवश्यकतानुसार उन्हें वापस रक्त में छोड़ा जाता है।

रक्त की लाल पेशियों के पुराने हो जाने पर उन्हें नष्ट करने का काम भी प्लीहा करती है। साथ ही साथ प्लीहा की खास पेशी, जिन्हें रेटिक्युलोएन्डोथेलिअल पेशी कहते हैं, रक्त के जीवाणुओं और अन्य त्याज्य घटकों का नाश करती हैं।

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