यूरोप के २० देशों का ‘युरोझोन’ मंदी के चपेट में

ब्रुसेल्स – यूरोप के २० शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के समावेश वाले ‘युरोझोन’ को आर्थिक मंदी के चपेट ने नुकसान पहुंचाया है। वर्ष २०२२ के आखरी तिमाही के बाद २०२३ के जनवरी से मार्च के तीन महीनों में भी युरोझोन की अर्थव्यवस्था की गिरावट देखी गई है। जब भी कभी कोई अर्थव्यवस्था का विकास दर लगातार दो तिमाहियों में नकारात्मक बढ़ोतरी दर्शाती है तब वह अर्थव्यवस्था मंदी के भंवर में फंसी होने की बात समझी जाती है। युरोझोन की आर्थिक मंदी के लिए रशिया-यूक्रेन युद्ध और ‘कॉस्ट ऑफ लीविंग क्राइसिस’ यह दो मुद्दे ज़िम्मेदार देखे गए हैं। 

‘युरोझोन’पिछले महीने यूरोप की शीर्ष अर्थव्यवस्था जर्मनी को मंदी से नुकसान पहुंचा था। जर्मनी की अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर हैं। कोरोना के दौर में इस देश की निर्यात में गिरावट शुरू हुई थी। इसी दौरान कच्चे सामान की कमी और मज़दूरों की किल्लत होने से जर्मनी का उत्पाद क्षेत्र बाधित हुआ। इसके बाद रशिया-यूक्रेन युद्ध के कारण जर्मनी की ईंधन आपूर्ति भी बाधित होने से देश में महंगाई का उछाल हुआ। इन वजहों से जर्मन अर्थव्यवस्था मंदी के चपेट में फंसी, इसपर आर्थिक विशेषज्ञ एवं विश्लेषकों ने ध्यान आकर्षित किया।

जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने से इसकी मंदी यूरोपियन अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी, यह अनुमान पिछले हफ्ते ही जताया गया था। यूरोपिय महासंघ ने घोषित किए आँकड़ों से इसकी स्पष्ट पुष्टी होती दिख रही है। ‘युरोस्टैट’ नामक यंत्रणा ने साझा की हुई जानकारी के अनुसार युरोझोन की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाहियों से ०.१ प्रतिशत फिसली है। 

महंगाई का उछाल और सेंट्रल बैंक द्वारो हो रही ब्याजदर बढ़ोतरी की वजह से यूरोपिय ग्राहकों की खर्च करने की क्षमता कम हुई है। इससे यूरोपिय देशों के उत्पाद, रिअल इस्टेट एवं खुदरा बिक्री क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। इससे यूरोपिय देश जल्द बाहर निकलने की संभावना कम हुई है और वर्ष २०२३ में मंदी जैसी स्थिति बनी रहेगी, ऐसा दावा आर्थिक विशेषज्ञ एवं विश्लेषकों ने किया है।

इससे पहले वर्ष २००८-०९ के दौरान उभरी वैश्विक महामंदी के दौर में यूरोप को आर्थिक मंदी ने बड़ा नुकसान पहुंचाया था। मंदी के उस दौर में यूरोपिय अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोजा काफी मात्रा में बढ़ा। उस कर्ज के बोजे की वजह से वर्ष २०११ से २०१३ के दौरान यूरोपिय महासंघ को ‘डेब्ट क्राइसिस’ का मुकाबला करना पड़ा। ग्रीस से शुरू हुई इस आर्थिक समस्या की चपटे स्पेन, आयर्लैण्ड, इटली, पोर्तुगाल जैसे प्रमुख देशों तक पहुंची थी। इस वजह से यूरोपिय महासंघ में मंदी जैसी स्थिति उभरी थी।

यूरोप के कई प्रमुख देशों में महासंघ से बाहर (एक्झिट) होने के साथ यूरो मुद्रा का त्याग करने के अभियानों को ताकत मिली थी। इसी पृष्ठभूमि पर जर्मनी और फ्रान्स के साथ यूरोप के कई देशों में दक्षिणपंथी विचारधारा के राजनीतिक गुटों का उदय हुआ था। ब्रिटेन यूरोपिय महासंघ से बाहर (ब्रेक्झिट) निकलने की मुहिम के पीछे भी यूरोप का ‘डेब्ट क्राइसिस’ ही वजह थी, यह कहा जा रहा है। इसके मद्देमनज़र युरोझोन की मंदी ध्यान आकर्षित कर रही हैं।

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