‘स्वीडन फिर कभी भी निर्वासितों के जत्थे का स्वीकार नहीं करेगा’ : प्रधानमंत्री स्टिफन लॉफवेन

स्टॉकहोम, दि. ११: ‘स्वीडन ने सन २०१५ में निर्वासितों के जत्थे का स्वीकार किया था| लेकिन इसके आगे कभी भी स्वीडन इतनी बड़ी मात्रा में निर्वासितों का स्वीकार नही करेगा| जिन्हें स्विडीश प्रणाली ने अनुमति देने से इन्कार किया है, ऐसे हरएक निर्वासित को पुनः अपने देश में लौट जाना होगा| इन सारी घटनाओं से मैं निराश हो चुका हूँ| स्विडीश यंत्रणा ने यदि व्हिसा देने से इन्कार किया हो, तो ऐसे निर्वासित जल्द से जल्द अपना देश छोडकर चले जायें’, ऐसी चेतावनी स्वीडन के प्रधानमंत्री ने दी| प्रधानमंत्री स्फिटन लॉफवेन ने आतंकी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजली अर्पण करते समय किये बयानों में यह चेतावनी दी|

 निर्वासितों के जत्थे

स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में शुक्रवार के दिन हुए आतंकी हमले में चार लोगों की जानें गयी थीं| हमलावर आतंकवादी रखमत अकिलोव्ह ३९ साल का व्यक्ति होकर, स्वीडन में निर्वासित के तौर पर वह कुछ ही महीने पहले दाखल हुआ था| स्वीडन में आश्रय लेने के लिए उसके द्वारा की गयी अर्ज़ी को दो बार नकारा गया था| इसके बाद पुलिस से निर्वासन न हों इसलिए उसने झूठा पता सादर करते हुए अवैध तौर पर रहने की शुरुआत की थी|

स्वीडन की खुफिया एजन्सी ‘सॅपो’ ने, अकिलोव्ह इससे पहले संग्दिधों की सूचि में था, ऐसी जानकारी दी है| पुलिस जाँच के दौरान, वह ‘हिज्ब-उत-तहरिर’ नामक आतंकी संगठन का समर्थक है, ऐसा सामने आया है| हमले के बाद हिरासत में लिये गये रखमत अकिलोव्ह ने, ‘हमने यह आतंकी हमला ‘आयएस’ के कहने पर किया’ ऐसी कबूली दी| सीरिया पर हुए बमहमलों पर भी उसने नाराज़गी प्रदर्शित की थी, यह बात जाँच में सामने आयी है| अकिलोव्ह द्वारा इस्तेमाल किये गए ट्रक में बम मिला होकर, उसका विस्फोट कराने में नाक़ाम होने के कारण एक बहुत बड़ी जीवितहानि टल गयी, ऐसा माना जा रहा है|

इससे पहले सन २०१० में स्वीडन में आत्मघाती विस्फोट किया गया था| लेकिन उसमें उस हमलावर आतंकी के अलावा अन्य किसी की जान नहीं गयी थी| उसके सात साल के बाद हुए आतंकी हमले से स्वीडन को अच्छाखासा झटका लगा है| युरोप के अमीर और उदारमतवादी देशों में से प्रमुख देश, ऐसी स्वीडन की पहचान है| लेकिन पिछले दो सालों में स्वीडन के हालात तेज़ी से बदले होकर, उनके लिए निर्वासितों के जत्थे यही एक मुख्य कारण साबित हुआ है|

सन २०१५ के बाद स्वीडन में करीबन दो लाख से अधिक निर्वासित दाखिल हुए थे| राजधानी स्टॉकहोम और देश का दूसरे नंबर के शहर माने जानेवाले गॉथेनबर्ग के नज़दीकी इलाके में निर्वासितों का बड़ी मात्रा में वास्तव्य है| देश में दाखिल हुए निर्वासितों में से केवल ५०० निर्वासितों को रोज़गार प्राप्त हुआ है| बाक़ी लोगों को सरकार की ओर से बडी मात्रा में सुविधाएँ दी जाती हैं|

इन सुविधाओं के बल पर ही निर्वासितों के गुटों ने कई इलाक़ों में अपनी टोलियाँ और दबावगुट तैयार करने की शुरुआत की होकर, उनके द्वारा सरकार से अक़्सर माँगें की जाती हैं| अपनी उदारमतवादी प्रतिमा बरक़रार रखने के लिए स्वीडन सरकार ने निर्वासितों की माँगें मान्य करते हुए, स्थानिक लोगों पर ही प्रतिबंध लगाने की शुरुआत की है| वेशभूषा, यात्रा, शिक्षण, कानून और सुव्यवस्था ऐसीं कई बातों में निर्वासितों को सुविधाजनक ऐसे बदलाव किये गये हैं| इस कारण निर्वासितों में होनेवाले चरमपंथी गुट प्रबल होते जा रहे हैं, ऐसा सामने आया है|

दो महीने पहले, अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प को, स्वीडन जैसे देश में आ रहे निर्वासितों के जत्थों पर निर्देश करते हुए, इस देश को कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है, ऐसी चेतावनी देनी पड़ी थी| उसके बाद, स्वीडन की बढ़ती गुनाहगारी के लिए निर्वासितों के जत्थे ज़िम्मेदार होकर, इस वास्तव को देश का राजनैतिक नेतृत्व नज़रअंदाज़ कर रहा है, ऐसा आरोप देश के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने किया था| पिछले साल जारी किये गये एक रिपोर्ट में, स्वीडन के विभिन्न शहरों में कुल मिलाकर ५५ ‘नो गो झोन्स’ तैयार हुए हैं, ऐसा दावा भी किया गया था|

स्वीडन के राजनैतिक नेतृत्व ने अब तक इन सारी बातों से इन्कार किया था| लेकिन राजधानी स्टॉकहोम में हुए आतंकी हमले से देश के राजनैतिक नेतृत्व को एक ज़ोरदार तमाचा लगा हुआ दिखाई दे रहा है| इसी कारण, प्रधानमंत्री लॉफवेन को अपनी उदारमतवादी नीति बाजू में रखते हुए, निर्वासितों को नकारने की बात स्पष्ट रूप में कहनी पड़ी, ऐसे दिखाई दे रहा है|

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