रशिया ने तुर्की को कराई ‘बैटल ऑफ नैवैरिनो’ की याद

Russia-Turkeyमॉस्को/इस्तंबूल – भूमध्य समुद्री क्षेत्र के अधिकारों के मुद्दे पर तुर्की और ग्रीस में हो रहे विवाद में अब रशिया भी उतरी है। तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन लगातार ग्रीस को धमका रहे हैं और तभी रशिया ने तुर्की को ‘बैटल ऑफ नैवैरिनो’ की याद दिलाई है। रशिया के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडियो पर एक पोस्ट प्रसिद्ध की है और यह युद्ध ग्रीस की आज़ादी का कारण बना था, यह बात कही गई है। यह पोस्ट प्रसिद्ध होने से पहले ग्रीस में स्थित रशिया के दूतावास ने भूमध्य समुद्री क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘लॉ ऑफ द सी’ का पालन होना अहम है, ऐसी स्पष्ट भूमिका रखी थी। तुर्की ने इस पर अमल करने के लिए किया हुआ विरोध देखकर रशियन दूतावास ने किया बयान बड़ी अहमियत रखता है।

कुल १९३ वर्ष पहले रशिया, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रान्स के संयुक्त दल ने ‘नैवैरिनो’ की खाड़ी में तुर्की और इजिप्ट की नौसेनाओं का बुरा हाल किया था। मित्रदेशों की नौसेनाओं को प्राप्त हुई यह जीत, ग्रीस की आज़ादी का एक अहम कारण बना था, यह ट्विट रशिया के विदेश मंत्रालय ने किया है। रशियन विदेश मंत्रालय का यह ट्विट ध्यान आकर्षित करनेवाला साबित हुआ है और ग्रीस के विरोध में जारी संघर्ष के मुद्दे पर रशिया ने तुर्की को यह सूचक इशारा दिया है, यह समझा जा रहा है।

Russia-Turkey२० अक्तुबर, १८२७ के दिन हुए ‘बैटल ऑफ नैवैरिनो’ में रशिया, ब्रिटेन और फ्रान्स ने ‘ऑटोमन साम्राज्य’ एवं इजिप्ट की नौसेना को बड़ी शिकस्त दी थी। ‘आयओनियन सी’ के क्षेत्र में हुए इस युद्ध के दौरान रशिया समेत मित्रदेशों की नौसेनाओं ने तुर्की और इजिप्ट के ६० जहाज़ डुबाए थे। इस दौरान तीन हज़ार से अधिक नाविक और नौसैनिक मारे गए थे। ‘सेलिंग शिप्स’ के इतिहास की यह आखिरी बड़ी लड़ाई समझी जाती है। इस युद्ध के बाद उस समय के तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की ग्रीस पर बनी पकड़ कमज़ोर होने लगी थी। ‘बैटल ऑफ नैवैरिनो’ के बाद वर्ष १८२८-२९ के दौरान हुए रूसो-तुर्कीश वॉर और फ्रान्स ने किए हमले की वजह से ऑटोमन साम्राज्य ग्रीस को स्वतंत्रता बहाल करने के लिए मज़बूर हुआ था।

Russia-Turkeyबीते कुछ वर्षों में रशिया के तुर्की के साथ बने संबंध संमित्र स्वरूप के रहे हैं। रशिया से ईंधन और हथियारों की खरीद कर रहा तुर्की अब सीरिया और लीबिया में रशियन हितसंबंधों के विरोध में खड़ा है। फिर भी रशिया ने अन्य मुद्दों पर तुर्की के साथ जारी सहयोग बंद नहीं किया है। लेकिन, आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध में तुर्की की भूमिका रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन की बर्दाश्‍त करने की क्षमता की कसौटी लेनेवाली साबित हुई है। वह तुर्की और उसके हितसंबंधों के विरोध में संघर्ष करने का बेझिझक निर्णय कर सकते हैं, यह इशारा रशियन विश्‍लेषक दे रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि पर तुर्की ने कुछ दिन पहले पुतिन के लिए संवेदनशील मुद्दा समझे जा रहे युक्रैन और क्रिमिया के विषय में भी आक्रामक भुमिका अपनाने की बात सामने आयी थी। यही बात रशिया और तुर्की के बीच संघर्ष का कारण बन सकती है, यह समझा जा रहा है।

ऐसे में रशिया के विदेश विभाग ने सीधे दो शतक पहले हुए युद्ध की याद तुर्की को दिलाना ध्यान आकर्षित कर रहा है। तुर्की ने ग्रीस के विरोध में अपनाई भूमिका पर अमरीका और यूरोपिय देशों ने पहले ही तीव्र नाराज़गी व्यक्त की है। यूरोपिय देशों ने तो स्पष्ट तौर पर ग्रीस के पक्ष में खड़े होने के संकेत दिए हैं। अब रशिया ने भी इस मसले में प्रवेश करके अपना समर्थन ग्रीस को रहेगा, यह स्पष्ट संकेत दिए हैं। इस वजह से भूमध्य समुद्री क्षेत्र के मुद्दे पर तुर्की अब अच्छी खासी घेराबंदी में फंसने के आसार दिखाई दे रहे हैं।

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