श्वसनसंस्था भाग – ४६

उच्च दबाव वाली हवा जब हम श्वास के माध्यम से अंदर लेते हैं तो उसका शरीर पर क्या परिणाम होता है। अब हम इसका अध्ययन करेंगे। हवा में प्रमुख रूप से तीन प्रकार की वायु होती हैं। नायट्रोजन, ऑक्सिजन और कार्बनडायऑक्साइड। इन सभी वायुओं का दबाव यानी प्रेशर हमारे शरीर के कार्यों पर विभिन्न परिणाम करते हैं। अब हम इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

१) नायट्रोजन अथवा नत्र वायु के परिणाम :
उच्च दबाव वाली नत्रवायु शरीर पर जो दुष्परिणाम करती है, उसे नायट्रोजन नारकोसिस कहते हैं।

कुल हवा का ४/५ भाग नत्रवायु होती है। समुद्र तल पर इस वायु के कोई भी दुष्परिणाम नहीं दिखायी देते। जब हम पानी के नीचे उच्च दबाव की हवा अंदर लेते हैं तब इसके दुष्परिणामों का पता चलता है। पानी के नीचे पहले एक घंटे में इसके दुष्परिणाम नहीं दिखायी देते। यदि एक घंटे से ज्यादा समय तक पानी के अंदर रहें तो निम्नलिखित परिणाम दिखायी देते हैं। पानी के १२० फीट नीचे डायवर के होने पर उसके व्यवहार में बदलाव हो जाता है। वो पहले ज्यादा आनंदी और उत्साही बनता (Jovial)। उसे किसी भी बात की चिंता नहीं होती (care free)। १५० फुट तक नीचे जाने पर उसे झपकी आने लगती है। २०० से २५० फुट की गहराई पर उसके शरीर की शक्ति क्षीण होने लगती है और उसको सौंपा गया कार्य कर पाना असंभव हो जाता है। २५० फुट से अधिक गहराई पर डायवर पूरी तरह निष्क्रिय हो जाता है। वह कोई भी कार्य नहीं कर पाता।

दारू (शराब) के कारण होनेवाले दुष्परिणाम और नत्रवायु नारकोसिस में साधर्म्य हैं। दारू पीने के बाद शुरुआत में व्यक्ति इसी प्रकार आनंदी, उत्साही बनता है। अचानक वीरता का संचार होने लगता है। जैसे-जैसे दारू चढ़ती जाती है, वैसे-वैसे दारू पीनेवाला शिथिल होता जाता है। ऐसा होने का कारण यह है कि नत्रवायु स्निग्धांश में फौरन घुल जाती है (Liquid soluble)। फलस्वरुप वो ब्लड ब्रेन बॅरिअर में से सहजतापूर्वक मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती है। मस्तिष्क में जाकर यह चेतापेशियों की संवेदना और क्रियाशक्ति कम कर देती है। इसीलिए उपरोक्त असर होता है।

२) ऑक्सिजन अथवा प्राणवायु के दुष्परिणाम :
उच्च दबाव वाली प्राणवायु जब अलविओलाय में प्रवेश करती है तो उसके निम्नलिखित दुष्परिणाम होते हैं (High PO2)
अ) प्राणवायु का रक्त में वहन (Transport of O2) :
पिछले लेखों में हमने देखा है कि रक्त में प्राणवायु का वहन दो तरीकों से होता है – पहला यानी हिमोग्लोबिन से जुड़कर और दूसरा रक्त के द्रव (पानी) में घुलकर। जब रक्त में PO2 100 mm Hg से कम होता है (सर्वसाधारण परिस्थिति में) तब बिलकुल कम मात्रा में रक्त पानी में घुलता है। जैसे ही रक्त का PO2 100 mm Hg से ज्यादा बढ़ने लगता है वैसे ही रक्त के पानी में ज्यादा मात्रा में प्राणवायु घुलने लगती हैं। फलस्वरूप रक्त में प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है।

ब) ऊतकों में प्राणवायु का पार्शल प्रेशर (Tissue PO2) :
उच्च दबाव वाली प्राणवायु का श्वसन करने पर रक्त में प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है। प्रत्येक १०० मिली रक्त से सिर्फ ५ मिली प्राणवायु पेशी लेती हैं। रक्त में बढ़ी हुई प्राणवायु वैसी ही रह जाती है। पानी के नीचे हिमोग्लोबिन-प्राणवायु बफर प्रणाली काम नहीं करती। जिसके कारण ऊतको की PO2, 20 से 60 mm Hg की नॉर्मल और सुरक्षित स्तर पर नहीं रह पाती। उसकी मात्रा काफी बढ़ी हुई होती है। यह बढ़ी हुई PO2, पेशियों के लिए घातक साबित होती है। उसे प्राणवायु की विषबाधा (Oxygen Toxicity) कहते हैं। यब बाधा दो प्रकार से होती है। शीघ्रता से होनेवाली यानी अक्यूट और कुछ समय बाद तथा दीर्घकाल में होनेवाली यानी क्रॉनिक।

प्राणवायु की अक्यूट विषबाधा :
यह ऊतको में उच्च (Tissue PO2) शरीर की सभी पेशियों के लिये घातक साबित होती है। फिर भी चेतासंस्था पर एवं चेतासंस्था पर इसके ज्यादा घातक परिणाम होते हैं। चार ऍटमॉसफेरिक दाब के नीचेवाली प्राणवायु को यदि ३० मिनट से ज्यादा समय तक अंदर लिया जाए तो उस व्यक्ति को बिना किसी पूर्वसूचना के आकड़ी (Seizures) आती है। आकड़ी के फौरन बाद वह व्यक्ति कोम में चला जाता है। पानी के नीचे रहनेवाले किसी व्यक्ति को यदि आकड़ी आ जाए और वह बेहोश हो जाए तो फिर उस व्यक्ति का क्या होगा, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। आकड़ी के अलावा कभी-कभी निम्नलिखित लक्षण दिखायी देते हैं। जी मचलता है, मांसपेशियों का अकड़ आना / स्नायुओं में मरोड, मांसपेशियों का फड़फडाना, दृष्टी कम हो जाना तथा परिस्थिति का अहसास कम हो जाना। ऐसी अवस्था में यदि वह व्यक्ति हलचल करता रहा तो उपरोक्त लक्षणों में वृद्धि होती है और लक्षण शीघ्र दिखायी देने लगते हैं।

अब हम यह देखेंगे कि उच्च दबाव वाली प्राणवायु के दुष्परिणाम किस कारण से होते हैं –
‘फ्री रॅडिकल्स’ शब्द आजकल काफी लोगों की जानकारी वाला है। रक्त के फ्री रॅडिकल्स शरीर के लिए घातक साबित होते हैं। फ्री रॅडिकल्स यानी प्राणवायु के अलग तरीके के अणु होते हैं। प्राणवायु का नॉर्मल अणु (O2) पेशियों के लिए घातक नहीं होता है। जब उसका रूपांतर ऍक्टिव फॉर्म में हो जाता है तब उसे फ्री रॅडिकल्स कहते हैं। रक्त में मुख्यत: दो प्रकार के फ्री रॅडिकल्स होते हैं। सुपर ऑक्साइड (O2) और पॅराक्सॉइड के रूप में। शरीर की पेशियों के आवरण में प्रमुख रूप से स्निधांश (Lipids) होते हैं। उनमें भी Polyunsaturated Fatly acids की मात्रा ज्यादा होती है। ये ऑक्सिडंट फ्री रॅडिकल्स इस फॅटी ऍसिड को ऑक्सिडाइज करके निष्क्रिय कर देते हैं। साथ ही साथ पेशी के अन्य महत्त्वपूर्ण एन्झाइम्स को ऑक्सीडाईज करके उन्हें भी निष्क्रिय बना देते हैं।

जब ऊतकों में PO2 उसके नॉर्मल स्तर (20 mm to 60 mm Hg) होता है, तब फ्री रॅडिकल्स की मात्रा बिल्कुल कम होती है। फ्री रॅडिकल्स को निष्क्रिय करनेवाले एनझाइम्स (विचंतक) शरीर में होते हैं। वे इन रॅडिकल्स को तुरंत निष्क्रिय कर देते हैं। पानी के नीचे ऊतको में PO2 उचित मात्र से ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि हिमोग्लोबिन-प्राणवायु की बफर प्रणालि अकार्यक्षम हो जाती है। ऐसी हालत में फ्री रॅडिकल्स काफी मात्रा में तैयार होते हैं। शरीर के एन्झाइम्स उन्हें निष्क्रिय करने में असमर्थ साबित होते हैं। रक्त में मुक्त रूप से घूमनेवाले ये अणू पेशियों के लिए मारक साबित होते हैं। चेतापेशी के आवरण में पॉलीअनसॅचुरेटेड फॅटी ऍसिड की मात्रा सर्वाधिक होती है, इसीलिए फ्री रॅडिकल्स का सबसे ज्यादा नुकसान इन पेशियों को होता है। श्वसन मार्ग के आवरण पर असर होने के कारण फेफड़ों में सूजन आ जाती है, फेफड़े collapse होने (atelectasis) जैसी बीमारियाँ होती हैं।

एक ऍटमॉसफेरिक दबाव वाली प्राणवायु का श्वसन शरीर के लिए घातक साबित नहीं होता, परंतु यदि एक ऍटमॉसफेरिक दबाव वाली प्राणवायु का श्वसन ज्यादा देर तक (बारह घंटे से ज्यादा) किया जाए तो उसके दुष्परिणाम फेफड़ों पर दिखायी देते हैं, क्योंकि इतने दबाव में ऊतको में PO2 बढ़ता नहीं है।

३) कर्बद्विप्रणिलवायु के दुष्परिणाम : पानी के नीचे चाहे जितनी भी गहराई तक जाए तो भी इस वायु के दुष्परिणाम पता नहीं चलते, क्योंकि शरीर में जितनी कर्बद्विप्रणिल वायु तैयार होती है उतनी बाहर निकाल दी जाती है। यदि गोताखोरों ने गलत वेष परिधान किया तो रक्त में इस वायु की मात्रा बढ़ जाती है। प्रारंभ में श्वसन की गति बढ़ने से शरीर इस बढ़ी हुई कर्बद्विप्रणिल वायु को बाहर निकालता है, परन्तु इसकी मात्रा 80 mm Hg से ज्यादा हो जाने पर इसके दुष्परिणाम दिखायी देते हैं। सर्वप्रथम श्वसन केन्द्र के कार्य धीमे पड़ जाते हैं। फलस्वरूप गोताखोर की श्वासोच्छवास धीमी पड़ जाती है, रक्त का PH कम हो जाता है (ऍसिडोसिस)। मस्तिष्क पर इसका नारकोसिस जैसा असर होता है।(क्रमश:)

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