श्वसनसंस्था भाग – ४१

ऊँचाई पर स्थित विरल वातावरण से हमारा शरीर अपने आप को किस तरह जोड़ लेता है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर रहे हैं। कम ऊँचाई पर रहनेवाला कोई व्यक्ति जब अधिक ऊँचाईवाले पर्वत पर जाता है, तब उन्हें किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, यह हमने पिछले लेखों में देखा। परन्तु संसार की पर्वतमालाओं में हमेशा ऊँचाई पर ही रहनेवाले व्यक्तियों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसका अब हम अध्ययन करेंगे।

प्राकृतिक Acclimatization : ऊँचे पर्वतीय शिखरों पर स्थायी रूप से रहनेवाले व्यक्तियों में यह प्राकृतिक Acclimatization होता है। परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढ़ाल लेने की प्रक्रिया बच्चे के जन्म के बाद से ही शुरु हो जाती है। शरीर की वृद्धि होने के दौरान छाती के पिंजरे में सर्वाधिक वृद्धि होती है। साथ ही इन बच्चों में हिमोग्लोबिन की मात्रा भी अधिक होती है। प्रौढ़ व्यक्ति में भी हिमोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा होती है। ऊँचाई पर रहनेवाले व्यक्तियों की आरटरीज के रक्त में Po2 सिर्फ 40 mm Hg होता है, फिर भी हिमोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा होने के कारण रक्त में प्राणवायु की मात्रा ज्यादा होती है। समुद्र के किनारे पर वाले प्रदेश में रहनेवाले व्यक्ति के रक्त में उपस्थित प्राणवायु की कुल मात्रा से यह ज्यादा होती है। ऊँचाई पर रहनेवाले व्यक्ति के हृदय का दाहिना हिस्सा अन्य लोगों की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है और उस हिस्से के स्नायु भी ज्यादा शक्तिशाली होते हैं। फलस्वरूप फेफड़ों में रक्त का दबाव ज्यादा होता है और फेफड़ों की सभी रक्तवाहनियों में रक्तप्रवाह शुरु रहता है।

समुद्रतल से जैसे-जैसे ऊँचाई पर जाते हैं, वैसे-वैसे शरीर की कार्य करने की क्षमता कम होती जाती है। मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता घट जाती है। यह हमने पहले ही देखा है। शरीर और हृदय के स्नायुओं की क्षमता कम हो जाती है। कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट कम हो जाता है। समुद्र-तल पर रहनेवाले व्यक्ति की तुलना में यह क्षमता कितने प्रतिशत होती है, यह निम्नलिखित सारणी में देखते हैं –

सर्वसाधारण क्षमता की तुलना में कितने प्रतिशत
१) Unacclimatized व्यक्ति ५० प्रतिशत
२) २ महिने acclimatized व्यक्ति ६८ प्रतिशत
३) ऊँचाई पर जन्मा व्यक्ति ८७ प्रतिशत

उपरोक्त सारणी में देखने से पता चलता है कि ऊँचाई पर रहने गये व्यक्ति की कार्यक्षमता ऊँचाई पर जन्मे और रह रहे व्यक्ति की तुलना में कम ही होती है।

समुद्रतल से ऊँचाई पर जाने पर और परिस्थिति से जुड़ जाने के बाद भी उस व्यक्ति को गंभीर बीमारी हो सकती है। इस बीमारी को Mountain sickness कहते हैं। कुछ समय तक ऊँचाई पर रहने के बाद जब ऐसे व्यक्ति को बीमारी होती है तो उसे Chronic Mountain sickness :
१) लाल रकत पेशियों की संख्या उचित मात्रा से ज्यादा बढ़ जाती है। फलस्वरूप रक्त की विसकॉसिटी बढ़ जाती है और रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है।
२) फेफड़ों की रक्तवाहनियों में रक्त का दबाव काफी बढ़ जाता है।
३) हृदय का दाहिना हिस्सा उचित मात्रा से ज्यादा बढ़ जाता है।
४) शरीर की केशवाहनियों में रक्तचाप कम हो जाता है।
५) Congestive heart failure निर्माण होता है। हृदय में शिथिलता आ जाती है।
६) उपचार न होने पर मृत्यु की संभावना हो जाती है।

उपरोक्त सभी घटनाये प्राणवायु की कमी के कारण होती है। पेशियों (कोशिकाओं) को उचित मात्रा में प्राणवायु नहीं मिलती है। ऐसे बीमार व्यक्ति को फौरन कम ऊँचाई पर ले जाकर उसका इलाज करना पड़ता है। समय पर उपचार हो जाने पर व्यक्ति की बीमारी ठीक हो सकती है।

Acute mountain sickness :
यदि कोई व्यक्ति कम समय में ज्यादा ऊँचाई पर जाता है तो यह बीमारी हो सकती है। अत्यंत गंभीर ऐसी इस बीमारी में यदि उस व्यक्ति को फौरन प्राणवायु की आपूर्ति करके नीचे ना लाया जाए तो उसकी मृत्यु हो सकती है। ऐसे व्यक्ति में दो प्रमुख बदलाव होते हैं।

अ) मस्तिष्क में सूजन आ जाना (Acute Cerebral edema)
प्राणवायु की कमी के कारण मस्तिष्क की रक्तवाहनियाँ डायलेट हो जाती है। केशवाहनियों में रक्तचाप बढ़ जाता है। फलस्वरूप रक्त का दबाव बाहर आने से मस्तिष्क में सूजन आ जाती है।

ब) फेफड़ों में सूजन (Acute Plumonary edema)
यहाँ पर भी मस्तिष्क की रक्तवाहनियों की तरह ही होता है और फेफड़ों में सूजन आ जाती है। प्राणवायु की आपूर्ति करने पर मस्तिष्क और फेफड़ों की सूजन तुरंत कम हो जाती है। कुछ व्यक्तियों के फेफड़ों की रक्तवाहनियाँ प्राणवायु की कमी को कुछ ज्यादा जोरदार प्रतिक्रिया देती हैं। ऐसा व्यक्ति यदि ऊँचे स्थान पर जाता है तो उसे तुरंत तकलीफ होने लगती है। फेफड़े सूज जाते हैं। आज हमने पहाड़ों पर चढ़ने में घटित होनेवाली घटनायें देखी। अगले लेख में देखेंगे कि अवकाश में जाने के बाद क्या होता है और गति के शरीर पर क्या परिणाम होते हैं।

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