श्‍वसनसंस्था भाग – ३२

हम अपनी श्‍वसनसंस्था और उसके कार्यों की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। रक्त के माध्यम से प्राणवायु का वहन कैसे होता है, यह हमने देखा। प्राणवायु का रक्त की हिमोग्लोबिन से रहनेवाला दृढ़संबंध भी हमने देखा। श्वास के माध्यम से अंदर लिया गया प्राणवायु को शरीर की प्रत्येक पेशी (कोशिका) तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण कार्य हिमोग्लोबिन करता है। हिमोग्लोबिन की मदत करनेवाले अन्य घटक भी शरीर में होते हैं। पिछले लेख में हमने देखा कि जब Po2 की मात्रा ज्यादा होती है, तब प्राणवायु-हिमोग्लोबिन का जोड़ दृढ़ होता है और जब Po2 की मात्रा कम हो जाती है तो प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग हो जाती है। Po2 के अलावा अन्य कुछ घटक भी ऊपरोक्त क्रिया में सहायक होते हैं। ये घटक कौन-कौन से हैं, इसकी जानकारी अब हम प्राप्त करेंगें।

१) रक्त का PH – किसी भी द्राव का PH उस द्राव में आम्ल और अल्कली की मात्रा पर निर्भर करता है। द्राव में आम्ल की मात्रा ज्यादा हो जाने पर उस द्राव का PH कम हो जाता है और द्राव में अल्कली की मात्रा कम हो जाने पर द्राव का PH बढ़ जाता है। हमारे रक्त का PH ७.४ होता है। जब रक्त का PH कम हो जाता है तब प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग हो जाती है। रक्त PH ७.४ से ज्यादा हो जाने पर बड़ी मात्रा में प्राणवायु को हिमोग्लोबिन से जोड़ा जाता है। फेफड़ों की केशवाहनियों में रक्त का PH बढ़ता है। इसीलिए प्राणवायु हिमोग्लोबिन की ओर आकृष्ट होती है। उनमें रहनेवाली केशवाहनियों में PH कम होता है और प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग हो जाती है।

२) रक्त में कर्बद्विप्रणिल (Co2) वायु की मात्रा – रक्त में कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा बढ़ जाने पर प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग होती है। कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा कम हो जाने पर प्राणवायु ज्यादा मात्रा में हिमोग्लोबिन से जुड़ जाती है। यह कैसे होता है, अब इसे संक्षेप में समझेंगे।

वेनस रक्त जब फेफ़ड़ों में पहुँचता है तब उसमें कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा ज्यादा होती है। यह वायु रक्त में उपस्थित आम्ल रिऍक्ट होता है और उसका रूपांतर कार्बोनिक आम्ल में हो जाता है। फलस्वरूप रक्त का PH कम हो जाता है, फेफड़ों में यह वायु रक्त से अलविओलास में डिफ्यूज होता है। जैसे ही रक्त में इसकी मात्रा कम होती है वैसे ही कार्बोनिक आम्ल की मात्रा भी घट जाती है और रक्त का PH बढ़ जाता है। रक्त का PH बढ़ जाने पर प्राणवायु हिमोग्लोबिन की ओर आकृष्ट होती है। इससे हम यह समझ सकते हैं कि अलविओलाय से रक्त में आयी प्राणवायु बड़ी मात्रा में हिमोग्लोबिन से जुड़ जाती है। यह सब फेफड़ों की केशवाहनियों में घटित होता है। उत में रहनेवाली केशवाहनियों में बिलकुल इससे विपरित क्रिया घटित होती है। पेशी में तैयार हुई कर्बद्विप्रणिल वायु रक्त में प्रवेश करती है। रक्त में इसकी मात्रा बढ़ जाने पर रक्त का PH कम हो जाता है। रक्त का PH कम हो जाने पर प्राणवायु मुक्त होकर रक्त से निकल जाता है। इस प्रकार, अप्रत्यक्ष रुप में, कर्बद्विप्रणिल वायु प्राणवायु के वहन में सहायता करता है।

३) रक्त का तापमान – रक्त का तापमान बढ़ने पर प्राणवायु मुक्त होकर रक्त से बाहर निकल जाता है।

४) रक्त के २-३ डायफॉस्फोग्लिसरेट की मात्रा – २-३ डायफॉस्फोग्लिसरेट अथवा D.P.G. नामक एक रासायनिक पदार्थ हमारे रक्त में रहता है। यह पदार्थ प्राणवायु को हिमोग्लोबिन से अलग करने में सहायता करता है। रक्त में जब प्राणवायु की मात्रा कम हो जाती है तब उस स्थिति को Hy-poxia कहते हैं। ऐसी अवस्था में पेशियों को उचित मात्रा में प्राणवायु नहीं मिलती है। यदि कुछ घंटो तक प्राणवायु की कमी बनी रहें तो रक्त में D.P.G. की मात्रा बढ़ जाती है। यह बढ़ी हुई D.P.G. हिमोग्लोबिन से ज्यादा से ज्यादा प्राणवायु मुक्त करता है। फलस्वरूप पेशी को मिलनेवाली प्राणवायु की मात्रा में वृद्धि होती है। तात्पर्य यह है कि प्राणवायु की कमी हो जाने पर पेशियों को पर्याप्त प्राणवायु की आपूर्ति करने का काम D.P.G. करता है।

शारीरिक व्यायाम करते समय शरीर के कार्यों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसकी जानकारी हमने पहले ही कई बार प्राप्त की हैं। व्यायाम करते समय स्नायुओं के लिए आवश्यक प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त के द्वारा उसकी पूर्ति भी की जाती है। इस लेख में हमने जिन बातों की चर्चा की है वहीं सब यहाँ काम आती हैं। व्यायाम के दौरान स्नायु तंतुओं में कर्बद्विप्रणिल वायु अधिक मात्रा में तैयार होती है। उसके साथ-साथ अन्य कुछ आम्ल भी तैयार होते हैं। इन सबके एकत्रित परिणाम स्वरूप वहाँ के रक्त का PH कम हो जाता है। स्नायुतंतु के कार्यों से उष्णता निर्माण होती हैं जिससे रक्त का तापमान बढ़ जाता है। उपरोक्त सभी बातें प्राणवायु को मुक्त करने में सहायक साबित होती हैं। यह मुक्त हुई प्राणवायु स्नायुपेशियों के कार्यों को उपलब्ध होती है।

रक्त के ऐसें विविध घटक प्राणवायु की उपलब्धता के लिए पूरक साबित होते हैं। हमारे आसपास के कुछ घटक प्राणवायु की उपलब्धता में बाधा उत्पन्न करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा घातक साबित होती है कार्बन मोनॉक्साइड (CO), वाहनों से निकलनेवाला धुआं, रासायनिक उद्योंगो से निकलनेवाला धुआं इनमें यह वायु ज्यादा मात्रा में होती है। रक्त में प्रवेश करने के बाद यह वायु भी हिमोग्लोबिन की ओर आर्कषित हो जाती है। हिमोग्लोबिन के हिस्से से प्राणवायु जिस स्थान पर जोड़ी जाती है, उसी स्थान पर यह वायु भी जोड़ी जाती है। इसीलिये यह प्राणवायु की प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धी बन जाती है। प्राणवायु की तुलना में २५० गुना ज्यादा तीव्रता से यह वायु हिमोग्लोबिन की ओर आर्कषित होती है। उपरोक्त दोनों बातों के कारण यह वायु रक्त में प्रवेश करने के बाद ज्यादा वेग से हिमोग्लोबिन से जुड़ जाती है और यह वायु हिमोग्लोबिन से जुड़ी हुई प्राणवायु को भी अलग करके उसी जगह स्वयं ले लेती हैं। इस प्रकार प्राणवायु हिमोग्लोबिन से जुड़ ही नहीं पाती। फलस्वरूप पेशियों को प्राणवायु की कमी प्रतीत होती है। कार्बन मोनॉक्साइड़ की विषबाधा में यह धोखा ज्यादा होता है।

कार्बन मोनॉक्साइड़ की विषबाधा हो जाने पर उस व्यक्ति को शुद्ध प्राणवायु दी जाती है। बढ़े हुए दाब के कारण रक्त में डिफ्यूज हुई शुद्ध प्राणवायु कार्बन मोनॉक्साइड को हिमोग्लोबिन से दूर कर देती है।(क्रमश:)

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