श्‍वसनसंस्था – २७

हम फेफड़ों में होनेवाले वायु के आदान-प्रदान का अध्ययन कर रहे हैं। वायु का यह आदान-प्रदान और वायु का डिफ्युजन कुछ अन्य बातों पर भी निर्भर होता है। इसी लिए वायु की डिफ्युजन रेट कुछ भौतिक सिद्धांतों के आधार पर तय होती हैं। यहाँ पर निम्नलिखित चार चीजों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है –

१) श्‍वसनपटल की मोटाई, २) श्‍वसनपटल का क्षेत्रफल, ३) डिफ्यूज होनेवाली वायु का डिफ्यूजन कोइफिशंट, ४) श्‍वसनपटल के दोनों ओर की वायु के दबाव में रहने वाला अंतर (Pressure Difference) उपरोक्त प्रत्येक के बारे में अब हम सविस्तर जानकारी लेंगे।

१) श्‍वसनपटल की मोटाई :- नॉर्मल परिस्थिती में श्‍वसन पटल की मोटाई में कोई फर्क नहीं होता। परंतु फेफड़ों की बीमारियों में इसमें बदलाव होता है। फेफड़ों में एडिमा हो जाने पर अलविओलाय और इंटरस्टिशिअल जगह में पानी अथवा द्रव भर जाता है। ऐसी स्थिति में वायु को श्‍वसनपटल के साथ-साथ इस द्रव में से भी रास्ता निकालना पड़ता है। फलस्वरूप वायु के डिफ्यूजन में ज्यादा समय लग जाता है। फेफड़ों की कुछ बीमारियों में फेफड़ों की नॉर्मल पेशियों की जगह फायबरस पेशियां ले लेती हैं। इस प्रकार फायब्रोसिस हो गये भाग की मोटाई बढ़ जाती है। वायु की डिफ्युजन रेट व श्‍वसन पटल की मोटाई में विलोमानुपात (व्यस्त प्रमाण) होता है। अर्थात श्‍वसनपटल की मोटाई बढ़ने पर डिफ्युजन रेट कम हो जाता है।

२) श्‍वसन पटल का क्षेत्रफल :- यह क्षेत्रफल साधारणत: ७० sq.meters होता है। यह हमने पिछले लेख में पढ़ा है। इस क्षेत्रफल में वृद्धि नहीं होती परंतु अनेक चीजें इस क्षेत्रफल को कम करती हैं। उदा. यदि किसी व्यक्ति का एक फेफड़ा या उसका कोई हिस्सा शल्यक्रिया से निकाल देने पर श्‍वसनपटल का क्षेत्रफल कम हो जाता है। ‘एम्फिझिमा’ नाम की एक बीमारी कभी-कभी फेफड़ों में हो जाती है। इस बीमारी में अलविओलस की दीवारें नष्ट हो जाती है और अनेको अलवोलाय मिलकर एक बड़ा अलविओलस बना लेते है। यदि किसी व्यक्ति के श्‍वसन पटल का क्षेत्रफल २/३ से ३/४ की मात्रा तक कम हो जाए तो जब वो व्यक्ति आराम कर रहा होगा तब भी डिफ्युजन की रेट पर्याप्त नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को दम लगता है, श्‍वास जल्दी-जल्दी और जोर से लेना पड़ता है। श्‍वसनपटल का क्षेत्रफल कम होने पर वायु का डिफ्युजन और डिफ्युजन की रेट दोनों कम हो जाते हैं।

३) डिफ्युजन कोईफिशंट :- वायु की पानी में घुलनशीलता (विद्राव्यता) और उस वायु का मॉलेक्युलर वजन (अणू वस्तुमानांक) के आधार पर यह कोइफिंशट तय होता है। दी गयी वायु की घुलनशीलता जितनी ज्यादा होगी उतना ही ज्यादा कोइफिशंट होगा। जितना कोइफिशंट ज्यादा, उतना डिफ्युजन ज्यादा। परंतु मॉलेक्युलर वजन से इसका विलोमानुपात (व्यस्त प्रमाण) होता है। मॉलेक्युलर वजन जितना ज्यादा इतना कोइफिशंट कम और डिफ्युजन भी कम होता है। कार्बनडायऑक्साईड वायु का मॉलेक्युलर वजन प्राणवायु (ऑक्सीजन) से ज्यादा होता है। पानी में उसकी घुलनशीलता (विद्राव्यता) ज्यादा होने के कारण यह वायु प्राणवायु की अपेक्षा जल्दी डिफ्यूज होती है।

४) वायु दबाव में फर्क :- शरीर में जहाँ कहीं भी वायु होती है (अलविओलस अथवा रक्त में) वो वहाँ पर जो दाब निर्माण करती है उसे उस वायु का पार्शल प्रेशर कहते हैं। वायु की मात्रा जितनी ज्यादा होती है उतना ही उसका Partial Pressure ज्यादा होता है। ज्यादा पार्शल प्रेशरवाले भाग के वायु का डिफ्युजन कम पार्शल प्रेशरवाले भाग की ओर होता है।

प्राणवायु की मात्रा अलविओलाय में ज्यादा होती है और फेफड़ों की रक्तवाहिनियों में कम होती है। इसलिये प्राणवायु का डिफ्यूजन अलविओलाय से केशवाहनियों की ओर होता है। कार्बनडायऑक्साईद वायु की मात्रा केशवाहिनियों में ज्यादा तथा अलविओलाय में कम होती है। इसीलिए उसका डिफ्यूजन प्राणवायु के डिफ्यूजन की दिशा के विपरीत होता है।

डिफ्युझिंग कपॅसिटी :- हमने प्राणवायु और कार्बनडायऑक्साईड के डिफ्युजन की प्रक्रिया का अध्ययन किया। डिफ्युजन के लिये वायु के दाब में अंतर आवश्यक होता है। यदि हर अंतर १ mm of Hg मान लिया जाए तो प्रति मिनट, प्राणवायु की जितनी मात्रा रक्त में मिलती है उसे उस वायु की डिफ्युजन कपॅसिटी कहा जाता है। प्राणवायु की डिफ्युजन कपॅसिटी कितनी, तो प्रति मिनट २३० प्राणवायु रक्त में मिलती है। तरुण प्रौढ़ व्यक्तियों में यह मात्रा पायी जाती है।

व्यायाम करते समय तरुण व्यक्ति में यह कपॅसिटी ज्यादा से ज्यादा तीन गुना बढ़ती है। व्यायाम के दौरान फेफड़ों की रक्तवाहनियाँ डायलेट होती है और अन्य समय में अकार्यक्षम रक्तवाहिनियाँ भी कार्यक्षम हो जाती है। इसके साथ ही अलविओलार वेंटिलेशन बढ़ जाता है। इन दोनों के कारण प्राणवायु की डिफ्युझिंग कपॅसिटी बढ़ जाती है।

कार्बनडायऑक्साईड बड़ी तेज से डिफ्यूज होता है। नॉर्मल स्थिति में इसकी डिफ्युझिंग कपॅसिटी ४०० से ४५० मिली/मिनट/ १ mm of Hg होती है। (प्राणवायु के करीब-करीब बीस प्रतिशत)। व्यायाम करते समय यह कपॅसिटी भी तीन प्रतिशत बढ़ती है।(क्रमश:)

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