श्‍वसनसंस्था भाग – ३८

जब कोई भी व्यक्ति व्यायाम करता है तब उसके शरीर में प्राणवायु का उपयोग और कर्बद्विप्रणिल वायु की निर्मिति दोनों बढ़ जाती हैं। यह बाढ़ सामान्य स्थिति की तुलना में लगभग बीस गुना होती है। किसी खिलाड़ी (Athlete) में यह बदलाव जब आता है तब उसका शरीर के मेटॅबोलिझम से भी संबंध होता है।

व्यायाम करते समय क्या होता है? आँखों से देखकर ही हम बता सकते हैं कि व्यायाम करते समय श्वास की गति बढ़ जाती है। व्यायाम के दौरान शरीर में कर्बद्विप्रणिल वायु और हॅड्रोजन दोनों की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही प्राणवायु की मात्रा कम हो जाती है, यह एक सर्वसाधारण निष्कर्ष है। परंतु अक्षरश: ऐसा नहीं होता। व्यायाम के दौरान रक्त की PCO२, PO२ और pH इन तीनों में नॉर्मल स्थिति की तुलना में कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। यानी इनमें से कोई भी चीज़ श्वसन की गति पर सीधा असर नहीं करती। फिर भी व्यायाम के दौरान श्वसन की गति तेज़ हो जाती है, यह सत्य है। इसके पीछे दो चीज़ें कारणीभूत होती हैं। उनकी संक्षिप्त जानकारी लेते हैं।

१) व्यायाम के दौरान स्केलेटल स्नायुओं का आकुंचन जोर से होता है। स्नायु को आकुंचित करनेवाले संदेश मस्तिष्क से आते हैं। मस्तिष्क से जब से संदेश स्नायु के लिए निकलते हैं, तभी कुछ संदेश श्वसन केन्द्रों के पास भी जाते हैं। ये संदेश श्वसन केन्द्र को कार्यरत करते हैं और श्वसन का वेग बढ़ जाता है।

२) व्यायाम के दौरान हमारे हाँथों और पैरों में हलचल होती है। हमारे जोड़ों और स्नायुओं के बीच में विशेष रिसेप्टर्स होते हैं। जो इन हलचलों की संवेदना सहजतापूर्वक ग्रहण करते हैं। इन रिसेप्टर्स में से श्वसन केन्द्रों को संदेश जाते हैं और श्वसन केन्द्र कार्यरत हो जाते हैं।

व्यायाम के दौरान प्राणवायु का उपयोग तीस गुना बढ़ जाता है तथा कर्बद्विप्रणिल वायु की निर्मिति भी तीस गुना बढ़ जाती है। ऐसा होने के बावजूद भी रक्त की PO२ कम नहीं होती और PCO२ बढ़ती नहीं। भला यह कैसे संभव होता है? व्यायाम के दौरान श्वसन का वेग बढ़ जाता है सिर्फ मस्तिष्क और स्नायुओं से श्वसन केन्द्र को जानेवाले संदेशों के कारण ही। चेतासंस्था से आनेवाले संदेश और रक्त में वायु के स्तर में होनेवाले बदलाव (रासायनिक घटक) के बीच के संबंध की जानकारी लेते हैं।

व्यायाम करने की शुरुआत करने के साथ ही मस्तिष्क से श्वसन केन्द्र को संदेश पहुँचते हैं और श्वसन का वेग बढ़ जाता है। श्वसन के बढ़े हुए वेग का एकमात्र उद्देश्य होता है व्यायाम करनेवाले स्नायुओं को आवश्यक प्राणवायु की आपूर्ति करना और बढ़ी हुई कर्बद्विप्रणिल वायु को बाहर निकालना। कभी-कभी मस्तिष्क से श्वसन केन्द्र को आनेवाले संदेश कमजोर (weak) होते हैं। फलस्वरूप श्वसन का वेग नहीं बढ़ता और रक्त की कर्बद्विप्रणिल वायु और हायड्रोजन का प्रमाण बढ़ जाता है। इन दोनों वायुओं की बढ़ी हुई मात्रा, श्वसनकेन्द्र को कार्यरत करती हैं और श्वसन का वेग बढ़ जाता है। तात्पर्य यह है कि चेतासंस्था और रासायनिक घटक, एक-दूसरे का पूरक कार्य करते हैं।

सर्वसाधारण परिस्थिति में व्यायाम शुरू होते ही श्वसन का वेग बढ़ जाता है। प्रारंभ के कुछ मिनटों में कर्बद्विप्रणिल वायु की निर्मिति ज्यादा नहीं बढ़ती, परन्तु श्वसन के बढ़े हुए वेग के कारण इस वायु के बाहर निकालने का प्रमाण बढ़ जाता है। फलस्वरूप इस दौरान रक्त में PCO२ कम हो जाता है। धीरे-धीरे PCO२ पूर्वस्थिति में यानी ४० mm Hg पर आ जाती है। इसका कारण है – ‘हमारा मस्तिष्क आगे आनेवाली परिस्थिति पहले ही Anticipate कर लेता है और उसी आधार पर शीघ्रता से कार्यवाही करता है।’

परिस्थिति anticipate करके उस पर कार्यवाही करने की मस्तिष्क की क्षमता ही मूलगामी क्षमता नही हैं। मस्तिष्क यह क्षमता अभ्यास से हासिल करता है। यह क्षमता मस्तिष्क के ऊपरी भाग जिसे कॉरटेक्स कहते हैं, उस भाग के पास होती है। श्वसन केन्द्र मस्तिष्क के निचले भाग में होते हैं। इस भाग के पास यह क्षमता नहीं होती। मस्तिष्क के इस ऊपरी भाग को यदि सुन्न कर दिया जाये तो व्यायाम के दौरान श्वसन केन्द्र अच्छी तरह कार्यरत नहीं होते और रक्त की PO२, PCO२ की मात्रा नॉर्मल नहीं रह पाती।(क्रमश:)

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