श्वसनसंस्था भाग – ४५

पिछ्ले लेख में हमने विमान (हवाई जहाज) प्रवास, अंतरिक्ष प्रवास किया। इन प्रवासों के दौरान संभावित खतरों की जानकारी प्राप्त की। आज से हम पानी में उतरेंगे। पनडुब्बियों के संसार की जानकारी प्राप्त करेंगे। सी-डाइवर्स, स्कूबा डाइवर्स किन-किन परिस्थितियों का सामना करते हैं, इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे। इन ची़ज़ों की ओर आज कल ‘खेल के एक प्रकार’ की दृष्टि से भी देखा जाता है। अनेकों युवक-युवतियाँ, नवयुवक-नवयुवतियाँ और उम्र दराज लोग भी स्कूबा डायनिंग सीखते हैं। इसे सीखते समय, प्रत्यक्ष करते समय, कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए, इसका ज्ञान होना आवश्यक है। इसमें होनेवाले संभवित खतरों की कल्पना होना आवश्यक है।

अब हम देखेंगे कि जब कोई व्यक्ति समुद्र में गहराई तक जाता है तो क्या-क्या घटित होता है।

१) समुद्र के पानी में गहराई तक जाने पर जानेवाले व्यक्ति के शरीर को प्रचंड दबाव का सामना करना पड़ता है। समुद्र के पानी पर रहनेवाले वातावरण का दबाव (Atmospheric Pressure = 760 mm of Hg) और पानी का बढ़ा हुआ दबाव।

२) बढ़े हुए दबाव के कारण फेफड़े collapse हो जाते हैं। हमेशा की तरह श्वसन में हवा का दबाव उन्हें फुलाने में असमर्थ साबित होता है।

३) फेफड़ों को collapse होने से बचाने के लिए बाहर से उच्च दबाव वाली हवा की आपूर्ति करनी पड़ती है।

४) उच्च दबाव वाली हवा की आपूर्ति करने से अलविओलाय में हवा का दबाव भी बढ़ जाता है और इस बढ़े हुए दबाव का सामना फेफड़ों की रक्तवाहनियों एवं रक्त को करना पड़ता है। इस परिस्थिति को वैद्यकीय भाषा में Hyperbarsim (हैपरबेरिझम) कहते हैं।

५) हवा का बढ़ा हुआ दबाव एक निश्चित सीमा तक शरीर के लिए कष्टकारी साबित नहीं होता। यदि हवा का दबाव इस सीमा से ज्यादा बढ़ जाता है तो शरीर के कार्यों पर उसका विपरित असर होता है। यह असर कभी-कभी धोखादायक भी हो सकता है।

उपरोक्त पाँचों मुद्दों का सारांश यह है कि समुद्र के पानी में गहराई तक जाने पर वहाँ के बढ़े हुए दबाव के कारण फेफड़े सिकुड़ जाते हैं। हमेशा की तरह हमारा श्वासोच्छवास इसका सामना नहीं कर सकता। फेफड़ों के खुले और हवा से भरे रहने के के लिए हवा की आपूर्ति कृत्रिम रूप से करनी पड़ती है। यह आपूर्ति उच्च दबाव से करनी पड़ती है। उच्च दबाव से आपूर्ति की गयी हवा भी शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। तात्पर्य यह है कि यदि हवा की आपूर्ति की जाए तब भी शरीर को खतरा हो सकता है और यदि न भी की जाए तब भी शरीर को खतरा हो सकता है। यदि पानी में ज्यादा गहराई तक जाना ही हो तो इन दोनों का सुवर्णमध्य साध्य करना चाहिए। यह कैसे साध्य किया जाता है, इसकी जानकारी हम आगे प्राप्त करेंगे। तब तक इस विषय से संबंधित भौतिकशास्त्र के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

पानी की गहराई और शरीर पर पड़ने वाले दबाव में परस्पर संबंध :
३३ फुट गहराईवाला पानी वातावरण के दबाव के जितना दबाव निर्माण करता है, 760 mm of Hg। हम जब पानी में ३३ फुट तक नीचे जाते हैं, तब हमारे ऊपर रहनेवाला पानी शरीर पर एक Atmospheric दबाव के जितना दबाव निर्माण करता है। हम समुद्र के पानी में हैं। समुद्र के पानी पर भी वातावरण का दबाव तो है ही। तात्पर्य यह है कि जब हम प्रत्यक्षत: ३३ फुट गहरे पानी में होते हैं, तब हमारे शरीर पर कुल दो ऍटमॉसफेरिक दबाव जितना दबाव होता है। पानी पर रहनेवाला वातावरण का दबाव और ३३ फुट गहरे पानी के वजन का एक ऍटमॉसफेरिक दबाव। पानी के नीचे हर ३३ फुट के बाद दबाव में एक ऍटमॉसफेरिक दबाव बढ़ जाता है। ६६ फुट पर ३ ऍटमॉसफेरिक दबाव, ९९ फूट पर ४, इस तरह दबाव बढ़ता जाता है।

पानी की गहराई का हवा का (वायु के) वॉल्युम पर होनेवाला परिणाम :
उच्च दबाव के नीचे हवा अथवा वायु दबायी (compress) जाती है। उदा. समुद्र सतह पर एक लीटर वायु ३३ फुट पर compress होकर आधा लीटर हो जाती है। पानी के नीचे ८ ऍटमॉसफेरिक दाब पर वायु का स्तर सिर्फ १/८ शेष रह जाता है। यानी जैसे-जैसे दबाव बढ़ता है वैसे-वैसे हवा का वॉल्युम कम होता जाता है। भौतिकशास्त्र में इसे Boyle’s Law (बॉइल का नियम) कहते हैं। बॉइल नामक वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम यह संबंध स्थापित किया। इससे यह बात समझ में आती है कि उच्च दबाव में कार्य करनेवाली पनडुब्बियों को इस दबाव के दुष्परिणामों को भुगतना पड़ता है। वायु के compress हो जाने के कारण उसके वॉल्युम में होनेवाला बदलाव महत्त्वपूर्ण साबित होता है। उदाहरणार्थ – पानी के नीचे ३०० फुट पर १ लीटर वायु, समुद्रसतह पर १० लीटर वायु जितनी होती है।

अगले लेख में हम हवा में उपस्थित वायु के शरीर पर होनेवाले दुष्परिणाम का अध्ययन करेंगे। (क्रमश:)

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