जॉन लॉगी बेअर्ड (१८८८-१९४६)

7bbbc_article-2115264-001B608700000258-828_468x286एक साधरण सी घटना! रात के दस साढ़े दस बजे का समय! पाँच से छह लोगों का एक परिवार रात्रि के भोजन पश्‍चात हॉल में बैठा था। सभी की आँखें एक बात ही बात पर दृष्टि गड़ाए थी। अगले पूरे घंटे भर तक वह परिवार अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ था। इसके पश्‍चात उस परिवार की ४५ से ५० वर्षीय महिला उठी और अंदर वाले कमरे में गई। क्षणार्धात उस महिला की जोरों की चीख सुनाई दी।

चीखने की आवाज़ सुनकर परिवार के सभी लोग दौड़ते हुए कमरे में आये। कमरे का दृश्य देखकर सभी के सभी हक्काबक्का रह गए। कमरे का सारा सामान अस्त व्यस्त पड़ा हुआ था। दोनों अलमारियाँ खुली पड़ी थीं। उस घर में चोरी हुई थी। घर में सभी के होते हुए भी केवल घंटे भर में घटने वाली यह घटना थी। वह पूरे घंटे तक जिस चीज़ के सामने यह पूरा परिवार दृष्टि गड़ाये बैठा था, वह चीज थी टी.व्ही.। सर्वसामान्य भाषा में यदि हम कहते हैं तो टेलिव्हिजन अथवा दूरदर्शन आज भारत के ही नहीं तो दुनिया भर के अरबों लोगों को दिवाना बनाने वाले इस टेलिव्हिजन के जनक थे एक स्कॉटिश इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ‘जॉन लॉगी बेअर्ड’ स्कॉटलैंड राज्य के ग्लास्को शहर के पास वाले एक छोटे से उपनगर में एक धार्मिक फिर भी मुक्त माने जाने वाले परिवार में १३ अगस्त १८८८ के दिन जॉन का जन्म हुआ था।

बीसवी सदी के आरंभ की ही बात है। बिटन के स्कॉटलैंड राज्य का हेलेन्सबर्ग नामक उपनगर, इस उपनगर में ‘लॉज’ नामक एक बड़ा फार्म हाऊस मिश्रित घर था। एक बार घर के आस-पास कुछ छोटे बच्चों ने टेलीफोन  का खेल खेलना शुरू किया। छोटे टीन के डिब्बे और धागे का उपयोग करके वे बच्चे खेल रहे थे। लॉ में रहने वाले उस बच्चे को वह खेल कुछ खास अच्छा नहीं लगा। वह अपने मित्रों से बोला, ‘‘क्या इस टीन के डिब्बों से और धागे का उपयोग करके खेलना, हम सच्चा टेलीफोन  सर्व्हिस बनायेंगे।’’Television antigua[1]

उस लड़के ने कुछ इलेक्ट्रिक्स वायर्स का उपयोग करके स्वयं अपने घर के साथ अपने चार मित्रों के घरों को जोड़ने वाले इलेक्टॉनिक टेलीफोन  एक्सेंज तैयार किा। लेकिन उसका यह आनंद अधिक दिनों तक न रह सका। उसके द्वारा तैयार किए गए एक्सेंज वायरर्स के कारण एक गाड़ी का अपघात हो गया और उसी शिकायत के कारण उस लड़के को अपना एक्सेंज बटोरना पड़ना। परन्तु उस मेहनती लड़के ने हार नहीं मानी। उन्हीं वायरर्स का उपयोग करके उस लड़के ने अपने घर के पेट्रोल पर चलने वाले एक यंत्र की सहायता से विद्युत यंत्रणा बनाई। उसका घर हेलेन्सबर्ग का विद्युत व्यवस्था होने वाला पहला घर साबित हुआ।

साधारणतः १२ से १३ उम्र के उस मेहनती लड़के का नाम था ‘जॉन लॉगी बेअर्ड’। बचपन से ही अनेक चित्रविचित्र काम करने की जॉन को आदत सी पड़ गई थी। स्कूली जीवन में यह लड़का अत्यन्त शांत, विशेष गुण न होने वाला तथा शर्मिला किस्म के लड़के के रूप में जाना जाता था। मात्र घर में तथा पास-पड़ोस में वह कोई न कोई करामात करते रहने वाले लड़के के रूप में जाना जाता था।

टेलीफोन  सर्व्हिस तथा बिजली का कारोबर उसके लिए काफी नही था। इसीलिए जॉन ने अपने मित्र गॉड फ्रे की मदद से एक ग्लायडर बनाकर उड़ने की भी कोशिश की थी। उस अनुभव के बारे में स्वयं जॉन बेअर्ड ने अपने आत्मकथा में, लिखा है कि इस घटना का उनके जीवन पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था। इस कोशिश में उन्हें कामयाबी तो मिली नहीं अपितु जीवनभर के लि उनके मन में विमान उडान का डर बना रहा।

स्कूली जीवन में विशेष पहचान न छोड़ने वाले जॉन को इस बात हा उनके अपने भावी जीवन में कोई खेद न रहा। यांत्रिक बातों में रूचि रखने वाले जॉन ने इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त करने की इच्छा भी थी। परन्तु उसी समय प्रथम विश्‍व युद्ध का आरंभ होने के कारण उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गयी। इसके पश्‍चात् बेअर्ड ने फ़ौज  में शामिल होने के लि भी कोशिश की मात्र वे अयशस्वी रहे।

फ़ौज  में नाकामयाबी मिलने के बाद जॉन ने कुछ समय तक इंजीनियर के रूप में भी काम करने का प्रयास किया परन्तु इसमें भी उनकी रूचि न होने के कारण वे ऊब गए। और अपने उस उद्यमशील स्वभावानुसार जॉन अंत में संशोधन की ओर मुड़ गए। अपने उम्र का तीसवां साल पार करने के बाद बेअर्ड ने टेलिव्हिजन के संदर्भ में संशोधन करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते बेअर्ड का घर सुई, भिंग, मोम, चाय को बॉक्स आदि विभिन्न प्रकार की चीजों से भर गया।

जॉन बेअर्ड ने अपना आरंभिक प्रयोग निपकॉ डिस्क की सहायता से शुरू किया। यह डिस्क साधारण चित्र स्कैन करने के लिए उपयोग में लाई जाती थी। उस पर प्रयोग करते समय जॉन को इस बात का अहसास हुआ कि मैं अपनी संकल्पना को साकार करने में असमर्थ हूँ। इसलिए उन्होंने मदद के लिए विक्टर मिल्स एवं नार्मन लॉक्सडेल इनकी मदद ली।

लगातार तीन से चार वर्ष तक अथक कोशिश के पश्‍चात जॉन की अपनी कोशिशों में यश मिल रहा है ऐसा प्रतीत होने लगा। एक स्थिर क्रॉस की छाया प्रक्षेपित करने में उन्हें यश भी मिला। परन्तु प्रत्यक्ष मनुष्य का छायाचित्र रेखांकित हुए बगैर उसपर कोई विश्‍वास करने को तैयार न था।

वह दिन था २ अक्तूबर १९२५ , बेअर्ड की हेस्टिंज उपनगर की प्रयोगशाला। हाथ में गु़ड्डा लेकर जॉन कैमरे के सामने बैठा था। प्रयोगशाला में रिसिव्हर, स्कैनर आदि सभी साधन सामग्री तैयार रखकर जॉन सज्ज था। कुछ समय तक बैठने के पश्‍चात् जॉन के सामने परदे पर चित्र उमटता हुआ दिखाई दिया।

जॉन बहुत अधिक उत्साहित हो उठा तुरन्त उठकर दौड़ते हुए वह सामनेवाले ऑफिस  में गया उसने विल्यम नामक लड़के को जबरदस्ती लाकर कैमरे के सामने बिठा दिया। कुछ ही पल में उसका चेहरा परदे पर उभर आया। जॉन दूरदर्शन पर मानवी चेहरे का प्रक्षेपित करने में यशस्वी हो गया था।

कुछ महीनों पश्‍चात् जॉन ने यह प्रयोग रॉयल सोसायटी के शास्त्रज्ञों के सामने यशस्वी रूप में कर दिखाया। इस प्रयोग के पश्‍चात् ‘टेलिव्हिजन के यंत्र’ सही मायने में विकसित होनेशुरू हो गए। इसके पश्‍चात् विविध देशों के संशोधकों ने टेलीव्हिजन में अनेक प्रकार से सुधार किया। इन संशोधकों में चार्ल्स जेनकिन्स फिलो फांसबर्थ, डेव्हिड सनोर्फ इन सब का उल्लेख विशेष तौर पर करना चाहिए।

आज टेलीव्हिजन का जन्म होकर आठ दशक बीत गए हैं। दुनिया के कोने-कोने तक पहुँच चुके तंत्रज्ञान के रूप में टेलीव्हिजन का उल्लेख किया जाता है। सही मायने में बीसवी सदी में एक क्रांतिकारी तंत्रज्ञान के रूप में जाने पहचाने जाने वाले इस संशोधन के लिए हमें निश्‍चित ही जॉन बेअर्ड का ॠणी होना पड़ेगा।

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