अँड्रिया व्हेसेलियस (१५१४-१५६४)

vesalius04दो मित्र काफी समय बाद मिले थे। दोनों ने भोजन के पश्‍चात घुमने जाना निश्‍चित किया। घुमते-घुमते वे दोनों गाँव के बाहर वाली श्मशानभूमि के पास जा पहुँचे। रास्ता जाना-पहचाना होने के कारण गप्पा मारते-मारते वे दोनों जहाँ कहीं राह निकलती चल रहे थे। अचानक बिजली चमकी और सामनेवाला दृश्य देख उन दोनों में से एक घबराकर उलटे पाँव भाग खड़ा हुआ और दूसरा आश्‍चर्य चकित हो जहाँ का तहाँ खड़ा रह गया। क्षणभर के लिए चमकने वाली बिजली के प्रकाश में उन दोनों को ही जो दृश्य दिखायी दिया था उससे किसी के भी मन में धड़का बैठ सकता था। उन दोनों ने ही एक ऊँचे खंबे पर मानवी अस्थिपंजर को लटकते हुए देखा था।

यह घटना है इ.स.१५३६ की, यूरोप के बेल्जियम देश के लोवेन नामक गाँव की, मध्यरात्रि के समय अंधकार में भटकने वाले इन दोनों नौजवानों के नाम थे, अँड्रिया व्हेसेलियस एवं गॅमा, डरकर भागने वाले मित्र का नाम गॅमा था। और मानवी अस्थिपंजर देखकर जगह के जहग पर ही खड़े रह जाने वाले थे, संपूर्ण जगत को मानवी अस्थिसंरचना की योग्य जानकारी प्रदान करने वाले असामान्य संशोधक ‘अँड्रिया व्हेसेलियस’।

अँड्रिया व्हेसेलियस का जन्म ३१ दिसंबर १५१४ के दिन ब्रुसेल्स में हुआ था। अँड्रिया के पिता  स्वयं एक वैद्यकीय अधिकारी थे। अपने वैद्यक शास्त्र की जिम्मेदारी उठाकर उनका बेटा दुनियाभर में कीर्ति प्राप्त करे ऐसी उनकी महत्त्वाकांक्षा थी। इसके लिए उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा था। मात्र अँड्रिया की माँ को अपने बेटे की बहुत चिंता लगी रहती थी।

यद्यपि चिंता का कारण भी कुछ ऐसा ही था। बचपन से ही उनके बेटे का शौक रहा था हड्डियों को जमा कर उस में कुछ न कुछ ढूँढ़ते रहने का। इसके लिए अँड्रिया कई बार श्मशान भूमि में अथवा अन्य खुले स्थानों पर रातों को भटकते रहता था। अँड्रिया की माँ को कई बारा यह चिंता सताती रहती थी कि कहीं उनका बेटा जादू-टोना (काला जादू) के मार्ग पर तो नहीं ना चला जायेगा।

उलटे-सीधे अजीब प्रकार का शौक रखने वाला उनका बेटा अँड्रिया पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार था। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उसने फ्रेंच, अरेबिक, ग्रीक तथा लैटिन इन चारों भाषाओं पर उसने प्रभुत्व हासिल कर लिया था। उम्र के पंद्रहवे वर्ष ही अँड्रिया ने विश्‍वविद्यालय में कला शाखा के अध्ययन के लिए प्रवेश प्राप्त कर लिया। मात्र कुछ ही कालावधी के उपरान्त अचानक उनके पिता का तबादला हो जाने के कारण उसने पैरिस विश्‍वविद्यालय में जाकर वैद्यकीय शिक्षा आरंभ कर दी। उस समय में यूरोप में गाले अथवा ग्रीक (वैद्यक शास्त्रियों) वैद्यकविशेषज्ञों द्वारा शरीर रचना से संबंधित प्रस्तुत किये जाने वाले मतों को सर्वमान्य माना जाता था। मात्र उनके द्वारा किया जाने वाला अध्ययन प्रत्यक्ष मानवीय अस्थिपंजर पर आधारित न होकर विविध प्राणियों के अस्थिपंजर का अध्ययन कर उनके अनुमान पर आधारित होता था। अर्थात विविध प्रकार के धार्मिक बंधनों के कारण तथा रुढ़ीवादिता के कारण उस समय में मानवी अस्थिपंजर उपलब्ध होना असंभव था। इसी कारण कालांतर में गले द्वारा प्रस्तुत किया गया ज्ञान रुढ़ माना जाने लगा। उस समय में यह ज्ञान इतना अधिक रुढ़ हो चुका था कि उसके बगैर वैद्यकशास्त्र का विचार भी करना संभव नहीं था।

इसी कारण वैद्यकीय शिक्षा का आरंभ करने वाले अँड्रिया व्हेसेलियस ने भी आरंभ में गाले इस वैद्यकशास्त्रज्ञ द्वारा प्रस्तुत किए गए शरीर रचना शास्त्र का अध्ययन आरंभ किया। इस अध्ययन के लिए उन्हें पैरिस विश्‍वविद्यालय में जॅकबस सिल्व्हीयस और जीन फ़र्न  इन शिक्षकों ने विशेष सहायक सिद्ध होने वाले मार्गदर्शन किए। उनके मार्गदर्शन में अध्ययन करते करते अँड्रिया मन में धीरे-धीरे शरीर रचनाशास्त्र के प्रति कौतुहल निर्माण होने लगा। किंबहुना उनके बचपन का शौक ही उन्हें इस क्षेत्र में खींच लाया ऐसा कहना भी गलत न होगा।

अँड्रिया को शरीरशास्त्र के बारे में संशोधन करते समय गाले द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी गलत है इस बात का अहसास होने लगा। अँड्रिया के अनुसार प्रत्यक्ष मानवीय शरीर की अंतर्रचना का अध्ययन किए बिना उसके बारे में जानकारी का लेखा-जोखा करना गलत था। इसीलिए उन्होंने मानवीय अस्थिपंज्जर प्राप्त करने की कोशिश शुरु कर दी। उस समय यह सब कुछ करना इतना आसान न था। परन्तु अँड्रिया ने अपनी जिद्द कायम रखी और अंतत: अचानक घटित होने वाली एक घटना के कारण उन्हें अपने संशोधन कार्य के लिए अस्थिपंज्जर प्राप्त हो ही गया।

लगभग छ: से सात वर्ष के अखंड परिश्रम के पश्‍चात् अँड्रिया ने अपना सारा ज्ञान एवं कौशल्य  को दाव पर लगाकर मानवीय अस्थिपंज्जर खड़ा कर दिया। मानवीय शरीर में रहनेवाली हड्डियाँ एवं स्नायुसंस्था के सचित्र जानकारी का पता दुनिया को चल सके इसी दृष्टिकोन से अँड्रिया ने कॅल्कर नामक एक चित्रकार से सहायता ली।

आखिरकार १५४३ में अँड्रिया व्हेसेलियस ने अपनी महत्त्वाकांक्षा को लगभग सात खंडो में विभाजित किया गया ‘ऑन द स्ट्रक्चर ऑफ  द ह्युमन बॉडी’ नामक ग्रंथ प्रसिद्ध किया। मात्र गाले के प्रभाव में रहनेवाले विद्वानों को उसी प्रकार सामाजिक वैद्यकशात्रज्ञों को अँड्रिया व्हेसेलियस के विचारों के साथ उनके विचार का मेल जोल आरंभ में न हो सका। अँड्रिया को प्रत्यक्ष अपने गुरु के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

परन्तु जैसे-जैसे अँड्रिया व्हेसेलियस का संशोधन प्रत्यक्ष में उपयोगी साबित होने लगा वैसे-वसे उनके प्रति होने वाला विरोध भी कम होने लगा। अँड्रिया व्हेसेलियस ने स्वयं ही अपने संशोधन के महत्त्व को साबित करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर प्रवास किया। जगह-जगह पर रहने वाले नागरिकों पर उपचार किया और स्वयं अपनी कृति से अपने ज्ञान के महत्त्व को सफल सिद्ध किया।

अँड्रिया व्हेसेलियस के संशोधन से मानव-शरीर-रचनाशास्त्र का गूढ़ार्थ लोगों के सामने प्रस्तुत हो सका था। उसे विज्ञान की शाखा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। वैद्यकशास्त्र पर एवं विकल्पात्मक रूप में मानवजाति पर व्हेसेलियस के अनंत उपकार हैं। उन के द्वारा किये गये संशोधन कार्य का फायदा आज के दौर में लगभग हर के मनुष्य उठा रहा है। ऐसे ज्ञानयोगी आविष्कारक के प्रति हमें अनंतकाल तक कृतज्ञ रहना चाहिए।

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