पॅराशूट का संशोधक – लुईस सॅबेस्टीएन लेनॉर्मंड (१७५७-१८३७)

गुरुत्वाकर्षण (ग्रॅव्हिटेशन) के नियम अनुसार हवा में ऊँचाई पर जानेवाली कोई भी वस्तु तेज़ी से नीचे आती है, यह स्वाभाविक ही है। गुरुत्वाकर्षण के कारण ही मानव पक्षियों की तरह हवा में उड़ने का अनुभव नहीं ले सकता। किन्तु फिर भी हमेशा से ही मनुष्य ने इसके लिए नवीन खोज करते हुए हवा में उड़नेवाले पॅराशूट की खोज की और धीमी गति से हवा से पृथ्वी पर आने का उपाय खोज़ा।

पॅराशूट यह शब्द मूलरूप से फ्रेंच भाषा से आया है। इसके अनुसार ‘पॅरा’ इस शब्द का अर्थ ‘विरुद्ध’ (अंग्रेज़ी में अगेन्स्ट) ऐसा है। तो ‘शूट’ क अर्थ ‘गिरना’ (फॉल) है। इस शब्दों को जोड़कर ‘पॅराशूट’ शब्द बनता है। अत एव ‘पॅराशूट’ का अर्थ ‘गिरने के विरूद्ध’ (अगेन्स्ट द फॉल) ऐसा है।

शुरु शुरु में काफी भारी लगनेवाले पॅराशूट का स्वरूप कालांतर में हलका और आकर्षक होता गया। एक घड़ी बनानेवाले कारीगर के बच्चे ने पॅराशूट बनाने में सफलता हासिल की। सन् १७५७ में मॉन्टपिलर में जन्में लुईस सॅबेस्टीएन लेनॉर्मंड को भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र इन दोनों विषयों में काफ़ी दिलचस्पी थी। सन् १७७५-८० में लुईस ने इन दोनों विषयों का विशेष पाठ्यक्रम पूरा किया।

लुईस सॅबेस्टीएन लेनॉर्मंडपाठ्यक्रम पूर्ण करने के बाद लुईस ने अपने पिता की घड़ी की दुकान में काम करना शुरु कर दिया। यहीं पर लुईस की पॅराशूट बनाने की संकल्पना साकार होने लगी। लुईस को थाय इक्विलिब्रिस्ट को देखकर पॅराशूट की कल्पना सूझी। फिर पॅराशूट बनाने के बाद लोगों के सामने उसका प्रदर्शन करने के पहले लुईस ने स्वयं कई बार पॅराशूट का परीक्षण किया। पहले पॅराशूट बनाने के लिए कपड़े और लकड़ियों का उपयोग किया जाता था। और फिर पहले के समय में आज की तरह तंत्रज्ञान का विकास न होने के कारण उपयोग में लायी जाने वाली लकड़ी और पॅराशूट का आकार आवश्यकता के अनुसार अचूक नहीं था।

इस पॅराशूट को यदि गलत पद्धति से बंद कर दिया जाये तो उसके खराब हो जाने का ड़र था। यदि एक बार गलत पद्धति से पॅराशूट बंद कर दिया गया तो उसे फिर से उपयोग में नहीं ला सकते थे। इसके बाद धीरे धीरे पॅराशूट में परिवर्तन होते गये। क्योंकि इसमें अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होकर मृत्यु भी हो सकती थी। कालांतर में स्क्वेअर (चौकोर) आकार वाले पॅराशूट बनाने के लिए आवश्यक कपड़े बनाते समय उत्पादकों ने तननेवाले (स्ट्रेचेबल) कपड़े या अधिक तनने की क्षमता को सह सकने वाले कपड़े बनाने की कोशिश की। इस प्रकार के कपड़े बनाते समय उन्होंने उच्च दर्जे के साहित्य का उपयोग करने की सावधानी बरती।

यह प्रयत्न होने के पहले पॅराशूट जैसी वस्तु की सहायता से ऊँचाई पर से कूदने का सबसे पहला प्रयत्न ९ वें शतक में किया गया था, ऐसा उल्लेख कुछ जगह पर मिलता है। इसके बाद सन् १४७० में इटली में कोनिकल पॅराशूट बनाने का प्रयत्न किया गया था। किन्तु इस पॅराशूट का उपयोग यशस्वी होने का सबूत नहीं मिला। इसी लिए इसे पॅराशूट न कहते हुए पॅराशूट बनाने का प्रयत्न किया गया था, यही कहना उचित होगा।

इसके बाद सिर्फ आधुनिक पॅराशूट का जनक सही मायने में लुईस सॅबेस्टीएन लेनॉर्मड को ही माना गया है। पॅराशूट तैयार करने के लिए उनके द्वारा उपयोग में लाई गई पद्धति ही अब तक प्रचलित है। यह पॅराशूट बहुत ही लोकप्रिय हुआ। केवल हवा में उड़ने का छंद होने के कारण उड़ने के लिए बनाए गए इस पॅराशूट का उपयोग आगे चलकर आवश्यकतानुसार देश-विदेश के सुरक्षा दलों ने भी करना शुरु कर दिया। आज कई देशों में सैनिक दलों में पॅराशूट की सहायता से हवा में उड़नेवाली सैनिकी तुकड़ी भी है। हेलिकॉप्टर या हवाई जहाज में से इस पॅराशूट के उपयोग के द्वारा कूदनेवाले कुशल सैनिक निश्‍चित जगह पर उतरने का कौशल्य रखते हैं। आक्रमण के लिए यह पॅराशूट उपयोगी साबित हुआ है। इसके अलावा तो कई बार समय पड़ने पर बाढ़ के समय में खाने-पीने की तथा अन्य वस्तुओं को आपदाग्रस्त भागों में ऊपर से ड़ालने के लिए भी यह पॅराशूट उपयुक्त साबित हुआ है। यह पॅराशूट सर्व सामान्य लोगों के लिए कुतूहल का विषय होने पर भी आपात्कालीन परिस्थिति में पॅराशूट की उपयुक्तता सिद्ध हो चुकी है। और यह सिद्धता लुईस सॅबेस्टीएन लेनॉर्मंड के कौतूहल का ही परिणाम है।

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