नार्सिस एस्तॅरिओल – भावना से आविष्कार

इसी शरीर के साथ इन्हीं आँखों से किसी की मृत्यु को देखना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं होता। दूसरों की मृत्युपीडा को देख तड़प उठनेवाले लोगों की संख्या इतिहास में दिखाई देती है। लोगों की मृत्युपीडा एवं कष्टों को कम करने के लिए संशोधन का रास्ता अपनाने वालों की संख्या आज के वैज्ञानिक युग में कम नहीं हैं। इनमें से ही कुछ लोगों को हम याद करते हैं तो निश्‍चित ही उन्हें प्राप्त हुई प्रसिद्धि के ही बल पर। वहीं आज भी प्रसिद्धि न प्राप्त होने के कारण कालचक्र के परदे के पीछे गुम हो जानेवाले संशोधकों की संख्या भी कोई कम नहीं है। उनमें से एक नाम है- नर्सिस माँतेरिओल एस्तॅरिओल!

नार्सिस एस्तॅरिओलनर्सिस एस्तॅरिओल ये स्पेन के कॅतॅलोनिया नामक प्रांत के मूल निवासी थे। वहाँ के फिगुएरेस शहर में २८ सितंबर १८१९ में नर्सिस का जन्म हुआ। १८४५ तक उन्होंने बार्सिलोन में कानूनी शिक्षा पूर्ण की। वकालत की उपाधि प्राप्त होने के बावजूद भी व्यावसायिक तौर पर उन्होंने इस उपाधि का उपयोग कभी नहीं किया। इसी दौरान अ‍ॅबडो टेरॉड के साथ होनेवाली मित्रता के कारण नर्सिस एस्तॅरिओल ने राजनीति में प्रवेश किया। रिपब्लिक पक्ष के साथ जुड़ चुके नर्सिस एस्तॅरिओल ने आगे चलकर कम्युनिस्ट आंदोलन में प्रवेश किया। इस आंदोलन से १८४८ में उन्हें बाहर निकलना पड़ा। इसी दौरान उन्होंने टाईपसेटर का पद संपादन किया। इसी आंदोलन से ही उन्होंने स्पेन में ‘ला मॅड्रे डी फॅमिलिआ’ एवं ‘ला फॅटरनिदाद’ नामक प्रथम कम्युनिस्ट वृत्तपत्रिका का संपादकीयत्व का स्वीकार किया। तब तक नर्सिस एस्तॅरिओल का संशोधन के साथ रत्ती भर भी संबंध नहीं था।

कॅडॅकस के निवास काल के दौरान नर्सिस एस्तॅरिओल के जीवन को मोड़ देने के लिए कारणीभूत साबित हुआ। यहाँ पर रहते हुए नर्सिस एस्तॅरिओल को पानी की गहराई से मूँगे आदि निकालने की प्रक्रिया देखने का अवसर प्राप्त हुआ। इस खतरनाक काम के चलते समय ही मूँगा निकालने के लिए पानी में जानेवाले कर्मचारी की डूब कर मृत्यु हो गई। पेट की भूख मिटाने के लिए गहरे पानी में जाकर मूँगे आदि निकालने वाले मजदूर कीस्वयं की आँखों के समक्ष होनेवाली मृत्यु नर्सिस एस्तॅरिओल के मन को छू गई।

नार्सिस एस्तॅरिओलइन मजूदरों की मृत्यु को देखने से विचारों में डूबे हुए नर्सिस एस्तॅरिओल के दिमाग में विचारचक्र शुरु हो गया। खतरा मोल लेते हुए मूँगे निकालने के लिए गहरे पानी में जानेवाले इन मजदूरों की जान को होनेवाला खतरा कम करने के लिए कुछ तो सुरक्षित साधन होना चाहिए, यह विचार उनके मन में घूमने लगा। इन्हीं विचारों में नर्सिस एस्तॅरिओल दिन-रात घिरे रहते थे। इन्हीं विचारों में १८५७ में वे बर्सिलोन में लौट गए। यहाँ पर पहुँचते ही उन्होंने कोरे दस हजार पिसेटस् के बदले में माँच्युरिओल, फोंट, अल्टाडिली नामक संस्था का निर्माण किया। मूँगे निकालनेवाले मजदूरों के लिए कोई सुरक्षित साधन विकसित करने का उद्देश्य इस संस्था के समक्ष था। १८५८ में इसी संस्था के माध्यम से नर्सिस एस्तॅरिओल ने ‘इक्तेनिओ’ अर्थात ‘फिश-शिप’ नामक प्रकल्प वैज्ञानिक प्रबंध के माध्यम से प्रस्तुत किया।

इस प्रबंध में प्रस्तुत की गई योजना नर्सिस एस्तॅरिओल के अनुसार १८५९ में प्रत्यक्ष रूप में साकार हुई। इस योजना के अनुसार उन्होंने मूँगों को निकालने के लिए सुरक्षित वाहन की निर्मिति की। यह वाहन समुद्र के पानी में भी प्रवास करने में समर्थ था। उस समय तक इस संबंध में होनेवाले प्रयोग सफल नहीं हुए थे। परन्तु नर्सिस एस्तॅरिओल का प्रयोग यशस्वी होने के कारण ‘पाणडुब्बी’ का जन्म हुआ।

प्रथम कोशिश के दरमियान नर्सिस ने ‘इक्तिनिओ-१’ नामक पणडुब्बी प्रस्तुत की। ७ मीटर लंबी, ढ़ाई मीटर चौड़ी तथा साढ़े तीन मीटर गहराईवाली इस पणडुब्बी को देखकर स्वाभाविक है कि सहज ही सबने दाँतों तले उंगली दबा लीं। मूँगों को ढूँढ़ने के लिए पानी में उतरनेवाले लोगों की जान को होनेवाले खतरे को टालने के लिए इस पणडुब्बी का जन्म हुआ था। पानी में डुबकी लगाने पर पानी के दबाव को सह सकने के लिए नर्सिस ने इस पणडुब्बी का बाह्य हिस्सा गोलाकार रखा था। इस पणडुब्बी का आकार सहज ही पानी में संचार करनेवालीं मछलियों के आकार का ही रखा गया था।

नर्सिस की पणडुब्बी के नाम की चारों ओर धूम मची हुई थी। उस समय की उनकी पणडुब्बी व्हिल्हेम बेऊर नामक संशोधक के द्वारा बनाये गए ‘ब्रँडटॉचर’, अब जर्मन के फौजी ड्रेसडन नामक संग्रहालय में जतन करके रखा गया है।

नर्सिस एस्तॅरिओल द्वारा विकसित की गई पणडुब्बी में दो टंकियों में ऑक्सिजन और हायड्रोजन की टंकियाँ बिठायी गईं थीं। इनमें से ऑक्सिजन की टंकी का उपयोग पणडुब्बी में प्रवास करने वाले प्रवासियों को प्राणवायु की आपूर्ति करने के लिए किया जाता था और हायड्रोजन का उपयोग पानी की गहराई में जाने पर मार्ग ढूँढ़ने के लिए दीप जलाने के लिए उपयोग में लाया जाता था।

नर्सिस द्वारा विकसित की गई ‘इक्तिनिओ-१’ नामक पणडुब्बी को प्रवाहित करने के लिए फैला हुआ पंखा उसमें बिठाया गया था। इस पंखे को चलाने के लिए नर्सिस ने चार लोगों का संघ रखा था। दोनों ओर से घूमने के लिए तथअ इस पणडुब्बी को पानी में स्थिर रखने के लिए नर्सिस ने पंप का उपयोग किया था। इस जोड़ी को ही मूँगे चुनने के लिए सभी वस्तुओं का सेट भी रखा गया था। अपनी इस सफलता से संबंधित पत्र भी नर्सिस ने सरकार को लिखा। लेकिन उदासीन सरकार ने उनके इस प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया। आखिरकार नर्सिस ने प्रयत्नपूर्वक स्पेन एवं क्युबा की जनता की सहायता से तीन लाख पिसेटस् की पूँजी जमा कर ली। इस पैसे से उन्होंने ‘लॉ नेव्हिगेशन सबमरिन’ नामक कंपनी शुरू की। इस कंपनी ने ‘इक्तिनिओ-२’ पणडुब्बी विकसित की। नर्सिस के इस ‘इक्तनिओ-१’ की सुधार की गई आवृत्ति आज भी बर्सिलोन के सागरी संग्रहालय में सबसे आगे रखी हुई दिखाई देती है।

‘इक्तेनिआ-२’ पणडुब्बी में सुधार करते हुए नर्सिस ने स्वयंचलित यंत्र का उपयोग किया। १४ मीटर लंबी, २ मीटर चौड़ी और ३ मीटर की गहराईवाली यह पणडुब्बी बनाते समय उसके पृष्ठभाग के लिए गीली लकड़ियों का उपयोग किया गया। इस पणडुब्बी में लगाये गए यंत्र को चलाने के लिए मँगेनिझ पॅरॉक्साईड, इंक एवं पोटॅशियम क्लोरेट मिश्रित रसायन का इंधन के रूप में उपयोग किया गया था। इस औष्णिक पणडुब्बी का इंजन भाप पर चलता था। रासायनिक इंजन को जलाकर उसकी उष्णता से इंजन को गति मिलती थी। दूसरी ओर इंधन से निकलनेवाला वायुरूपी ऑक्सिजन टंकी में जमा करके पणडुब्बी के मजदूरों को श्‍वसनक्रिया हेतु दिया जाता था। आगे चलकर आर्थिक तंगी के कारण १८६८ में ‘इक्तेनिओ-२’ पणडुब्बी को नर्सिस को भंगार के सामान में बेचना पड़ा। अब इस पणडुब्बी की प्रतिकृति वार्सिलोन के संग्रहालय में रखी गई है।
इसके पश्‍चात् १९४० तक पणडुब्बी का विकास कुछ विशेष रूप में नहीं हो सका। नर्सिस के यंत्र का उपयोग करके १९४० में जर्मन नौसेना ने पणडुब्बी की रचना करके उसका परीक्षण किया। इसके पश्‍चात् फौज में इसका उपयोग करने के लिए जर्मनी ने ‘वी-८०’ और ‘यु-७९१’ पणडुब्बियाँ विकसित की। इसके आगे बढ़ते हुए अमरिकन नौसेनाने अणुशक्ति पर चलनेवाली ‘यूएसएस नॉटिलस’ पणडुब्बी विकसित की।

केवल मूँगा चुननेवाले कर्मचारियों की मृत्यु होते देख तड़प उठनेवाले नर्सिस ने भावावेश में आकर कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु शुरू किए प्रयत्नों से पणडुब्बी का आविष्कार हुआ। आज के युग में यही पणडुब्बी संहारक कार्यहेतु उपयुक्त साबित होती देख नर्सिस एस्तॅरिओल की रूह को यकीनन ही बहुत दुख हो रहा होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published.