आधुनिक संगणक के संशोधक हॉवर्ड आईकन और ग्रेस हॉपर हॉवर्ड आईकन भाग – १

मानव की जिज्ञासा और संशोधन वृत्ति से पृथ्वी पर यांत्रिक युग का आगमन हुआ। कुछ ही दशकों पूर्व यंत्रों के बल पर आगमित औद्योगिक क्रांति के इस पर्व में दुनियाभर में व्यावसायीकरण एवं आर्थिक विकास के उतार चढ़ाव का दौर आया। ऐसे में ही मानवी बुद्धि के द्वारा साकार किए गए संगणक ने यांत्रिकीकरण को अचूकता का जोड़ देते हुए कार्यपूर्ति तीव्रगति के साथ करने का साधन दे दिया। आज की तारीख में संगणक का उपयोग सभी क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रहा है। अनेक देशों के विकास की नाड़ी भी संगणक क्षेत्र के साथ जुड़ी हुई है।

यूरोपीय राष्ट्रों के साथ अमरिका आदि देश संगणक क्षेत्र के विकास के कारण एशिया के भारतचीन के समान देशों में कार्यों का आऊटसोर्सिंग कर रहे हैं। इसी कारण अमरीका की नामचीन कंपनियों की बागडोर भारत एवं चीन में तुलना में कम मुआवज़ा लेनेवाली युवा पीढ़ी संभालते हुई दिखाई देती है। इसी कारण भारत चीनसहित अनेक विकसित राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में संगणक क्षेत्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण साबित होती है।

संगणक का आविष्कार होते ही विकास प्रक्रिया शुरु हो गई। इस विकास प्रक्रिया के अन्तर्गत ही अब मानवी जीवन में संगणक का उपयोग काफी बड़े पैमाने में बढ़ रहा है। संपूर्ण विश्‍व का व्यापार चुटकी बजाते ही करना संभव करने की क्षमता रखनेवाला संगणक ईबैकिंग, कॉमर्स के पर्व में हमें ले आया है।

संगणक यांत्रिक ज्ञान एवं विज्ञान ये विदेश से भारत में आया है फिर भी भारत में इस यांत्रिक ज्ञान का बखूबी उपयोग करनेवाले एवं इस क्षेत्र के विदेशों में जाकर भी विकास करनेवाली पीढ़ी में भारतीय युवाओं की संख्या बढ़ रही है। आज के लॅपटॉप के जमाने में रेल्वे तथा फिल्मों के टिकटों का आरक्षण, बैंक व्यवहार, मोबाईल का बील भरना इस प्रकार के अनेक काम भी संगणक की सहायता से घर बैठे ही करना हमारे लिए संभव हो गया है। इसी कारण केवल जानकारी हासिल करने के लिए अथवा कुछ प्रोग्रॅम बनाने के लिए संगणक का उपयोग करने का दिन अब काफी पीछे रह गया है।

पर्सनल कॉम्प्यूटर्स, लॅपटॉप के पश्‍चात् आजकल संगणक का आकार बिलकुल हाथों पर लिया जा सके इतना अधिक छोटा हो गया। आज भी तेज़ी से इसका उपयोग किया जाने के कारण यहाँ तक तो इसके आकारप्रकार की जानकारी हमें प्राप्त है। सर्वप्रथम उपयोग में लाया जानेवाला अत्यानुधिक संगणक काफ़ी बड़ा एवं अंदर से बहुत अधिक खोखलापन बनाये रखता था। इस संबंध में काफ़ी कम लोगों को जानकारी होगी। गहराई बनाये रखनेवाले इस महाकाय संगणक को ‘मार्क १’ नाम दिया गया था। आय. बी.एम. कंपनी ने इस संगणक के निर्माण हेतु आर्थिक सहायता की थी। साथ ही अमरीकी नौदल के हॉवर्ड आईकन एवं ग्रेस हॉपर इन दो संशोधनकर्ताओं ने इस संगणक के निर्माण में काफी बड़ा योगदान दिया था।

इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग की उपाधिप्राप्त हॉवर्ड को इलेक्ट्रोमॅकनिकल उपकरण बनाने में काफी अधिक रुचि थी। आयबीएम की ओर से संगणक बनाने का काम हाथ में लेने के पश्‍चात् हॉवर्ड के नेतृत्व में तीन इंजिनियरों के समूह को सहायक के रुप में उन्हें सौंपा गया था। इस समूह में ग्रेस हॉपर नामक एक कर्मनिष्ठ महिला का भी समावेश था।

अमरीका के नौदल में विराजमान हॉवर्ड को अकसर उलझेसुलझे समीकरणों को सुलझाना पड़ता था। इन सब में उनका काफी समय बर्बाद होता था। ऐसे में इन अंकों की समस्या का समाधान तुरंत करने के लिए ऐसा कोई इलेक्ट्रो मेकनिकल यंत्र होना चाहिए, ऐसा विचार हॉवर्ड के सामने अकसर उठ खड़ा होता था। और इसी के आधार पर १९४४ में ५५ फुट चौड़ा एवं ८ फुट लंबा ऊँचाईवाले बहुत बड़े यंत्र की निर्मिति हुई। इस काफी अधिक गहराई व्याप्त यंत्र का आवाज भी काफी बड़ा था।

लगभग ७,६०,००० प्रकार के अलगअलग हिस्सों को जोड़कर ५ टन वजन का यह यंत्र तैयार किया गया था। मनुष्य की गति की अपेक्षा जलद गति के साथ काम करनेवाला मार्क १ नामक यह संगणक १९५९ तक अमरिकी नौदल के सेवा में कार्यरत था। प्रीपंचड् पेपर टेप की सहायता से यह संगणक नियंत्रित किया जाता था। इसी टेप की सहायता से जोड़घटाना, गुणाकार, भागाकार आदि के तत्त्वों को सुलझाया जाता था। इसका फायदा हॉवर्ड ने अमरीकन नौदल को काफ़ी बड़े पैमाने पर करवाया।

इसके अलावा अकसर उपयोग में लाये जानेवाले घातांक गणित (लॉगॅरिदम्स) त्रिकोणमिति (ट्रिगनॉमेट्री) जैसे अनगिनत समीकरणों के समाधान हेतु प्रोग्रॅम्स इस संगणक में फीड़ किए गए। कुल मिलाकर २३ दशांशों तक के आँकड़ों को इसमें दर्शाया जाता था। मार्क १ में डेटा का संग्रह करने के लिए एवं मापन करने हेतु कुल ३ हजार डेसिमल स्टोरेज व्हील्स, १४०० रोटरी डायल स्विचेस एवं ५०० मैल वायर्स आदि चीजों का उपयोग किया गया था। इसके पश्‍चात् हॉवर्ड ने मार्क संगणक की शृंखला तैयार की। इसे मार्क २, मार्क ३ इस प्रकार के नाम दिए गए। हर एक नये संगणक को आधुनिक यांत्रिक ज्ञान के साथ हॉवर्ड ने जोड़ा और मार्क संगणक जोड़घटाने आदि गणितों को सुलझाने हेतु इसे अधिकाधिक उपयोगी बनाया।

इस समय के दौरान मार्क वन के द्वारा आनेवाले आऊटपूट प्रिंट करने के लिए इलेक्ट्रीक टाईपरायटर की सहायता ली गई। मार्क वन को गुणाकार के समान तत्त्वों को सुलझाने के लिए ३ से ५ सेकंद का समय लगता था। कोई कहेगा कि आज के समय में मार्क वन बिलकुल बेकार साबित होगा, परन्तु १९४४ के दौरान मार्क वन का महत्त्व आज के लॅपटॉप के समान ही था।

मार्क के यश में केवल हॉवर्ड का ही नाम जोड़ना अनुचित साबित होगा। हॉवर्ड के साथ साथ अमरीकी नौदल की महिला अधिकारी ग्रेस हॉपर ने भी इस कार्य के लिए मेहनत की थी। संगणक केवल गणिती उलझनों को ही सुलझाने के लिए है, इस संकल्पना को उन्होंने सर्वप्रथम नया मोड़ दिया और संगणक मानवी भाषा समझने लगा। कैसे? वह देखेंगे अगले लेख में।

(क्रमश:- )

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