जैसलमेर

कई मीलों तक फैला   हुआ रेगिस्तान। नजर डालें, वहाँ रेत ही रेत । सूरज की किरनों में चमचमाती हुई रेत। हमारे भारत का थर का रेगिस्तान ठीक  इसी तरह का है। यह रेगिस्तान यानि जैसे रेत का महासागर। ऐसे इस रेत के महासागर में बसा हुआ है एक शहर, जिसका नाम है ‘जैसलमेर’।

Jaislemer-001- जैसलमेरजैसलमेर की कहानी शुरु होती है, वह उसकी स्थापना से। ‘रावळ जैसलमेर’ नामक भाटी राजपूत वंश के राजा ने इस शहर को बसाया। स्थापनकर्ता ‘रावळ जैसल’ के नाम से ही इस शहर का नाम हो गया जैसलमेर। राजस्थान के पश्‍चिमी भाग में, थर के रेगिस्तान में रावळ जैसल नामक राजा ने १२ वी सदी में इस नगर की स्थापना की।  रावळ जैसल ने अपनी राजधानी के रूप में इस नगर को बसाया।

भाटी राजपूत वंश के लोग योद्धा थे और पंजाब से राजस्थान आ जाने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थानों पर अपने अपने राज्यों की स्थापना की। ‘देवराज’ नामक भाटी राजपूत राजपुत्र से जैसलमेर के राजवंश की शुरुआत हुई है ऐसा माना जाता है। साधारण रूप से ९ वी सदी की यह घटना मानी जाती है। इसी ‘देवराज’ नामक राजपुत्र से ‘रावळ’ यह उपाधी चली आ रही है।

देवराज ने ही ‘लोद्रवा’ नामक गांव में अपनी राजधानी बसायी,ऐसा कहा जाता है। ‘लोद्रवा’ यह गाँव जैसलमेर से लगभग १५-१६  कि.मी की दूरी पर है।

१२  वी सदी में राजा रावळ जैसल ने राजधानी के रूप में जैसलमेर शहर की स्थापना की। उन्होंने ‘त्रिकूट’ नामक टीले पर एक क़िले का निर्माण किया और इस क़िले में पूरा नगर बसाया।

पुराने जमाने में मध्य आशिया के प्रदेशों के साथ भारत के व्यापारी संबंध थें। उस समय आज के जैसे यातायात के साधन उपलब्ध नहीं थें। यातायात के साधन के तौर पर जानवरों का इस्तेमाल किया जाता था। जानवरों की पीठ पर माल लादकर व्यापारियों के समूह भारत से मध्य आशिया तक और मध्य आशिया से भारत तक माल की ढुलाई करते थें। इन व्यापारियों के आने-जाने के रास्ते का एक महत्त्वपूर्ण शहर था, जैसलमेर। जब तक इस रास्ते से चलनेवाला व्यापार तेजी में था, तब तक का समय इस शहर के लिए उत्कर्ष का काल था। व्यापारियों से प्राप्त होनेवाली चुंगी यह यहाँ  के राज्य की आमदनी का एक हिस्सा था।

थर के रेगिस्तान में बसे होने के कारण जैसलमेर शहर तक पहुँचना वैसे तो काफी  मुश्किल ही था। रेगिस्तान यह मानों जैसे इस शहर को प्राप्त हुई एक प्राकृतिक सुरक्षा ही थी और इसीलिए काफी  अरसे तक यह शहर विदेशी आक्रमणों से सुरक्षित रहा।

लेकिन १३ वी सदी में मुग़लों ने इस शहर पर हमला बोल दिया। इस आक्रमण के बारे में एक  कथा प्रचलित है। उस समय जैसलमेर पर ‘रावळ जेठसी’ नामक राजा की सत्ता थी। मुग़लों ने धावा बोल देते ही राजा की सेना ने उनका मुक़ाबला करना शुरु कर दिया। उस समय राजाने सूझ-बूझ के साथ छोटे बच्चों, बीमार लोगों और वृद्धों को अन्यत्र सुरक्षित जगह भेज दिया। दुश्मन का सामना करते समय ही राजा ने अपने क़िले में अनाज संग्रहित करना शुरु कर दिया। यह कहा जाता है कि लगभग ८ साल तक यह संग्राम चलता रहा। इस दौरान राजा जेठसी का निधन हो गया और उनके बेटे ने राजगद्दी सँभाल ली। लेकिन आख़िर जब हार के आसार साफ़ साफ़ ऩजर आने लगे, तब क़िले के दरवाज़ो को खोलकर बाहर निकल कर दुश्मन के साथ आमनेसामने भिडने से पहले क़िले में स्थित शहर कि सभी महिलाओं ने चिता में आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार की घटना  को ‘जौहार’ कहा जाता है। इसके बाद फ़ौरन ही वहाँ के वीर योद्धाओं ने किले के दरवाज़े खोल कर दुश्मन के साथ आमनेसामने युद्ध किया, लेकिन दुर्भाग्यवश आख़िर उन्हें हार नसीब हुई और जैसलमेर पर विदेशियों की सत्ता स्थापित हो गयी।

१५ वी सदी में फिर एक बार भाटी राजपूतों की सत्ता जैसलमेर पर स्थापित हो गयी। अंग्रेंज़ो के जमाने में जैसलमेर भारत के वैभवशाली संस्थान के रूप में रहा और भारत को आज़ादी मिलने के बाद यह संस्थान आज़ाद भारत में शामिल हो गया । आगे चलकर १९४९ में अन्य कुछ संस्थानों के साथ-साथ जैसलमेर यह राजस्थान का एक हिस्सा बन गया।

जब तक भारत में मुंबई और गुजरात के कुछ बंदरगाहों को विकसीत नहीं किया गया था, तबतक जैसलमेर यह व्यापारियों की सफर का एक महत्त्वपूर्ण शहर था। लेकिन बन्दरगाहों से यातायात शुरू हो जाने के कारण और जहा़ज जैसा माल की ढुलाई का सुविधाजनक साधन उपलब्ध हो जाने के कारण जैसलमेर से गुजरनेवाले रास्ते की उपयोगिता नहीं रही।

थर के रेगिस्तान में स्थित होने के कारण दिन में ते़ज धूप और रात में ठण्ड, बारिश बहुत ही कम होने के कारण यहाँ पर पानी की काफी  क़िल्लत रहती थी। लेकिन पंजाब की नदियों से बनायी गयी नहर के द्वारा इस रेगिस्तानी प्रदेश को जल की आपूर्ति की जाती है। ‘इन्दिरा गाँधी नहर’ इस नाम से मशहूर रहनेवाली यह नहर इस प्रदेश की पानी की क़िल्लत को कम करके इस रेगिस्तान को हराभरा कर देती है।

जैसलमेर की स्थापना करनेवाले रावळ जैसल राजा ने इस नगर की स्थापना के साथ साथ एक क़िले का भी निर्माण किया। ‘जैसलमेर का क़िला’ इस नाम से यह क़िला पहचाना जाता है। स्थापत्य और सुन्दरता की दृष्टि से यह एक बेहतरीन क़िला है। पीले रंग के वालुकापाषाणों से बना यह क़िला ‘त्रिकूट’ नामक टिले पर स्थित है। सूरज की स्थिति के अनुसार (सुबह-दोपहर-शाम) यहाँ की रेत और इस क़िले के वालुकापाषाण विभिन्न रंगों से निखरने लगते हैं। कभी चमकते स्वर्णजैसे पीले रंग को धारण कर लेते हैं, तो कभी मधुर शहदजैसे पीले रंग को। इस क़िले के कुल मिलाकर ९९    बु़र्ज हैं। क़िले पर कईं महल तथा मन्दिर हैं। इस पूरे शहर के चारों ओर एक पत्थर की चहारदीवारी का निर्माण किया गया है और इसके चारों तरफ  चार दरवाजें भी हैं। पहले जैसलमेर यह शहर पूरी तरह इस क़िले के भीतर बसा हुआ था; लेकिन बढ़ती आबादी के कारण अब सिर्फ इस क़िले के भीतर ही नहीं, बल्कि बाहर भी लोग बस चुके हैं।

जैसलमेर यह भारत से मध्य आशिया के साथ चलनेवाले व्यापार के मार्ग पर स्थित एक प्रमुख शहर था। इसलिए इस शहर में व्यापारियों की बस्ती का होना यह स्वाभाविक बात है। पुराने समय में इस शहर में रहनेवाले व्यापारी उनके आवास के लिए राजमहल जैसी बड़ी हवेलियाँ बनवाते थें। ये हवेलियाँ बहुत ही विशाल होती थीं, इनमें कईं दालान, कईं खिड़कियाँ रहती थीं। सामने स्थित विशाल आँगन और पूरी हवेली में लकड़ी पर की गयी उत्कृष्ट कारीगरी यह इन हवेलियों की विशेषता थी। आज भी इन हवेलियों को उस समय की स्थापत्यकला के उत्कृष्ट नमूने के तौर पर देखा जाता है।

रेगिस्तान में रेत के कईं प्राकृतिक टिलों का निर्माण होता रहता है। लेकिन रेत के इन टिलों का तूफानी हवाओं के कारण स्थानान्तरण भी होता रहता है। आज जैसलमेर यह शहर पर्यटन के लिए मशहूर है। यहाँ के रेत के टिलों को ‘सँड ड्यून्स’ कहा जाता है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का विषय है। इन ‘सँड ड्यून्स’ के आसपास के इला़के में प्रतिवर्ष सर्दियों में जैसलमेर के ‘डेझर्ट फेस्टिवल’ का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम के द्वारा राजस्थान की परम्परा, कला, संस्कृति आदि विभिन्न पहलुओं से पर्यटकों को परिचित कराया जाता है।

पानी की हर एक बूँद कितनी क़ीमती होती है, इसका एहसास रेगिस्तान में होता है। इसी कारण राजस्थान में कईं जगह पानी का संग्रह करने के लिए तालाबों का निर्माण प्राचीन समय से किया जाता है। जैसलमेर में भी ‘घडसीसर’ नामक एक विशाल तालाब बनाया गया है।

जैसलमेर की दो विशेषताएँ हैं – ‘डेझर्ट नॅशनल पार्क’ और ‘वुड फॉसिल पार्क’।

‘डेझर्ट नॅशनल पार्क’ यह नाम सुनकर आप कईं ताअज्जुब में तो नहीं पड़ गये? रेगिस्तान में भला ऐसे कौनसे विशेषतापूर्ण जानवर पाए जाते हैं कि वहाँ नॅशनल पार्क का निर्माण किया जा सकता है? हर एक स्थान की प्राणिसृष्टि उस स्थान की भूमि और मौसम के अनुसार होती है। रेगिस्तान के इस रूखे और अत्यधिक तापमान में भी प्राणियों का आवास होता है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के गिरगिट, छिपकलियाँ, साँप ऐसे रेंगनेवाले प्राणि, गीदड़, चिंकाराजैसे चार पैरोंवाले प्राणि और पक्षियों की अनगिनत प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं।

कहा जाता है कि कभी इस विशाल रेगिस्तान की जगह पर बड़ा घना जंगल था। एक बार यहाँ बहुत बड़ी बाढ़ आयी और उस बाढ़ में पूरा जंगल डूब गया। अब कईं करोड़ों सालों के बाद भी इस जंगल में रह चुके कुछ पेड़ों को हम देख सकते हैं। लेकिन वह पेड़ हमें पेड़ के रूप में नहीं, बल्कि दूसरे रूप में दिखाई देते हैं। बाढ़ के समय इन पेड़ों पर पत्थर, मिट्टी या अन्य पदार्थों की परतें चढ़ गईं और उन परतों के कारण उन पेड़ों के अवशेष (पेड़ों के तने) संरक्षित रह पाएँ। ‘वुड ङ्गोसिल पार्क’ में इसी प्रकार के पेड़ों के अवशेष दिखाई देते हैं। इन पेड़ों की उम्र के बारे में अन्दाजा लगाने के लिए उनका पूरा परिक्षण किया गया और उससे यह अनुमान निकाला गया कि ये पेड़ कईं करोड़ों साल पूर्व के हैं। इस प्रकार के पेड़ों के अवशेषों का जतन ‘अकाल वुड फॉसिल पार्क’ में किया गया है। इनमें सबसे बड़े पेड़ का अवशेष १३ मीटर लम्बाई और १.५ मीटर चौड़ाईवाला है। संशोधन से यह भी अनुमान निकाला गया कि ये चीर, देवदार या रेडवुड नामक पेड़ हो सकते हैं। यह पार्क मानों हमें आज के जमाने से ज्युरासिक पार्क के जमाने में ले जाता है।

सुनहरी रेत कभी आग़जैसी गर्म, तो कभी शान्त और ठण्डी होती है और इसी कारण इस रेत में जन्म होता है, शिल्प, लोकनृत्य, लोककला और साथ ही देश के लिए प्राणों की बा़जी लगानेवाले नीडर वीरों का।

One Response to "जैसलमेर"

  1. onkar wadekar   September 7, 2016 at 1:30 pm

    ऐतिहासिक और भौगोलिक विविधताओंसे भरे जैसलमेर के बारे में विस्तृत रूप से दी गयी जानकारी काफी उपयुक्त है। इसे पढ़कर जैसलमेर की यात्रा करने का मजाही कुछ और होगा।

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