हंफ्री डेव्ही

विज्ञान, साहित्य, कला इत्यादि क्षेत्रों में संचार करनेवाले कुछ व्यक्ति समाज के लिए प्रेरणादायी साबित होते हैं और अपने विकास के मार्ग के द्वारा समाज की रचना करते हैं। यह प्रगति सहजसाध्य और अपने आप नहीं होती। उचित जिज्ञासा की पूर्ति करने के लिए शारिरीक तकलिफों की ओर ध्यान देना उन्हें पसंद नहीं आता। विविध क्षेत्रों में अपनी पहचान बनानेवाले संशोधक सर हंफ्री डेव्ही इन्हीं में से एक थे।

हंफ्री डेव्हीअंग्रेजी रसायनशास्त्रज्ञ डेव्ही का जन्म पेझॅन्स (कॉर्नवॉल) में हुआ था। पेझॅन्स और टुरो में उनका शिक्षण हुआ। उनके पिता का लकड़ी पर नक्काशी काम व लकड़ी से संबंधित व्यवसाय था। पेझॅन्स के शास्त्रचिकित्सक और औषधि विक्रेता जे. बी. वॉर्लस के साथ सन् १७९५ वर्ष से उन्होंने काम करना शुरु किया। सन् १७९७ में उनका मोर्चा रसायनशास्त्र के अध्ययन की ओर मुड़ गया। सन् १७९८ में क्लिफ्टन के टॉमस बेडोझ के मेडीकल न्युमॅटिक इंस्टिट्यूशन में उन्होंने सहायक के रूप में काम करना शुरु कर दिया। अलग-अलग प्रकार के गैस में श्‍वसन करने से क्या-क्या परिणाम होते हैं इसके बारे में उन्होंने प्रयोग किए। नायट्रस ऑक्साईड (लाफींग गैस) इस गैस को सूँघने के कारण आभासी सुखदायी परिणाम होता है, इस बात का उन्हें पता चला। इसका वर्णन उन्होंने अपने रिसर्चिस केमिकल अँड फिलॉसॉफिकल, चीफली कन्सर्निंग नायट्रस ऑक्साइड में इ. स. १८०० वर्ष में किया। इस ग्रंथ के कारण वे बहुत मशहूर हुए।

लंडन में स्थापित रॉयल इन्स्टिट्यूशन में उन्हें व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया। उनके द्वारा किए गए नाविन्यपूर्ण और विविध प्रयोग और उत्तम व्याख्यानों के कारण उन्हें बहुत कम समय में ही लोकप्रियता मिली। प्रयोगशाला में हुए एक अपघात के कारण उनकी दृष्टि पर विपरीत परिणाम हुआ। सन् १८०२ से १८१२ तक उन्होंने कृषि मंडल के सामने कृषि रसायनशास्त्र के संबंध में व्याख्यान किए। १८१३ में उन्होंने एलीमेंट्स ऑफ अ‍ॅग्रिकल्चरल केमेस्ट्री इस व्याख्यान पर आधारित ग्रंथ लिखा।

ओक वृक्ष से निकाले गए अर्क के बदले कत्थे का उपयोग मृत जानवरों की चमडी निकालने के काम में अधिक सुविधाजनक हो सकता है, ऐसा उनके ध्यान में आया। रसायनशास्त्र के उनके संशोधन सन् १८०६ में दिए गए व्याख्यान में व्यक्त हुए। (ऑन सम केमिकल एजन्सीज् ऑफ इलेक्ट्रिसिटी)। साधारण बॅटरी कार्य रासायनिक विक्रिया के कारण चलता है। विरुद्ध विद्युत् भारवाले पदार्थ का संयोग होता है, इस बत का उन्होंने पता लगाया और इस पर से सारे पदार्थों का विद्युत् विश्‍लेषण करके उनके मूलद्रव्य के स्वरूप में विघटन करना संभव है, ऐसा उन्होंने प्रतिपादित किया। इसी समय इंग्लैन्ड और फ्रान्स इन देशों में युद्ध चल रहा था। ऐसी परिस्थिति में भी उनके इन व्याख्यानों को इंस्टिट्यूट ऑफ फ्रान्स का ‘बोनापार्ट’ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

सन् १८०७ में उन्होंने क्षार में से सोडियम और पोटॅशियम को अलग किया। सन् १८०८ में कॅल्शियम, स्ट्राँशियम, बेरियम और मँग्नेशियम इन मूलद्रव्यों को अलग किया। बोरॉन, हायड्रोजन, टेल्यूराईड और हायड्रोजन फॉस्फाइड की खोज करने का श्रेय हंफ्री को ही जाता है। क्लोरिन का पहले रखा गया ‘ऑक्सिम्युरिअ‍ॅटिक आम्ल’ यह नाम गलत है, यह उन्होंने साबित करके दिखाया। क्लोरिना और हायड्रोक्लोरिक आम्ल इन दोनों में संबंध बताते हुए उन्होंने क्लोरिन के मूलद्रव्यात्मक स्वरूप को प्रस्थापित करते हुए उसे ‘क्लोरिन’ यह नाम डेव्ही ने ही दिया। प्रत्येक आम्ल में ऑक्सिजन होना ही चाहिए इस सिद्धांत का उन्होंने खंडन किया।

विद्युत घंटा, खनिज विश्‍लेषण इनसे संबंधित कार्य के लिए उन्हें रॉयल सोसायटी का कॉप्ली पदक प्राप्त हुआ। सन् १८०७ वर्ष में वे रॉयल सोसायटी के सचिव बने। सन् १८१२ वर्ष में जेन अ‍ॅप्रिस नामक एक रईस युवती से उन्होंने विवाह किया।

सन् १८१३ में उनकी रसायनशास्त्र के सन्माननीय प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति हुईऔर उन्होंने रॉयल इन्स्टिट्यूट के रसायनशास्त्र के प्रमुख के पद से राजीनामा दे दिया। इस वर्ष उन्होंने पॅरिस में आयोडिन भी एक मूलद्रव्य है यह साबित किया।

मायकेल फॅरेडे नामक संशोधक को भी उनके शुरुआत के समय में उनकी योग्यता को पहचानकर रॉयल इन्स्टिट्यूट की प्रयोगशाला में उनकी नियुक्ति करने की उन्होंने शिफारस की थी। सन् १८१३-१५ इस समय में ज्वालामुखी के संबंध में अध्ययन करने के लिए डेव्ही ने मायकल फॅरेडे के साथ यूरोप में प्रवास किया। वहाँ से वापस आने पर उन्होंने कोयले की खदान में मिथेन और अन्य हायड्रोकार्बन के मिश्रण के कारण होनेवाले स्फोट के बार में अध्ययन करके इस गैस के अस्तित्व को दर्शानेवाले सुरक्षा दीपकी उन्होंने खोज की। उस दीप को उन्हीं के नाम से पहचाना जाता है। उनके इस कार्य के लिए रॉयल सोसायटी के सुवर्ण और रजत रम्फर्ड पदक प्रदान किए गए। सन् १८१२ में उन्हें ‘नाईट’ यह उपमा देकर उनका गौरव किया गया। सन् १८१८ में उन्हें बॅरोनेट किया गया। सन् १८२० में रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया और फिर सात वर्ष तक उन्होंने उस पद पर काम किया। सन् १८२६ में विद्युत और रासायनिक के बारे में संबंध विषय के बारे में दिए गए व्याख्यान के कारण उन्हें रॉयल सोसायटी का रॉयल पदक दिया गया।

पूलीमेंट्स ऑफ केमिकल फिलॉसॉफी, ऑन द सेफ्टी लॅम्प फॉर कोल माइनर्स, सालमोनिया (डेज ऑफ फ्लाय फिशिंग, फिशिंग पर लिखी गई इस पुस्तक में उनकी स्वयं की चित्रकला देखने को मिलती है)। ऐसे उनके कुछ ग्रंथ हैं। कन्सोलेशन्स इन ट्रॅव्हल इस ग्रंथ में संवाद के स्वरूप में होनेवाले लेख को उन्होंने अपनी पॅरॅलिसिस इस बीमारी के दौरान लिखा था।

बाद के कुछ समय वे रोम में बस गए। अनेक वर्षों तक गैस के संपर्क में रहने के कारण सन् १८२७ में वे गंभीर रूप से बीमार हो गए। अंत में स्वास्थ्य अधिक खराब होने की वजह से उन्हें जिनिव्हा में २९ मई १८२९ के दिन दिल का दौरा पड जाने के कारण उनका निधन हो गया। पेंझॅन्स के रॉयल जिऑलॉजिकल सोसायटी की उन्होंने बहुत मदत की। इसी के साथ ही उन्होंने कृतज्ञतापूर्वक पाठशाला के लिए एक बड़ी रकम दी।

सन् १८७२ में विल्स ऑफ लंडन इस शिल्प समूह में डेव्ही के स्मरण में सफेद संगमरमर का उनका एक पुतला बनाया गया। पेंझॅन्स के सुपुत्र और १९ वीं शतक के एक महत्त्वपूर्ण सुप्रसिद्ध व्यक्ति, संशोधक सर हंफ्री डेव्ही के नाम से डेव्ही पदक शुरू किया गया।

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