क्रिस्टोफर कॉकरेल (१९१०-१९९९)

पानी पर या किसी भी पृष्ठभाग पर चलनेवाले वाहन को हॉवरक्राफ्ट कहा जाता है। जलप्रवास के लिए नौका का उपयोग किया जाता है। दुनिया के कोने-कोने में नौका यानी जहाज यही आवागमन का उत्कृष्ट साधन रहा है। सड़क पर आवागमन के लिए वाहन जगत् में आमूलाग्र क्रांति हुई, इस बात का इतिहास सबको पता है। किंतु आवागमन के इस साधन के साथ ही जल और रास्ते के आवागमन के लिए एक ही वाहन बनाने की जिज्ञासा मानव के प्रगत दिमाग में आ गई। साथ ही कई प्रवासियों को भी इस स्वरूप के वाहन की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी दिशा में की गयीं कोशिशों से ही हॉवरक्राफ्ट का संशोधन-कार्य पूरा हुआ।

वाहन के नीचे वाले कुशन में चारों ओर से छोड़ी गई उच्च दबाव की हवा सतत घूमते रहती है। इसी हवा के बल से ही वाहन को गति प्राप्त होती है। इस स्वरूप के तंत्र को वाहन से जोड़ा गया। इस वाहन को ही आगे चलकर हॉवरक्राफ्ट यह नाम दिया गया। इसके तले में कुशन होने के कारण इस वाहन को एअर कुशन व्हेईकल (एसीव्ही) ऐसा भी कहा जाता है। पानी पर अथवा किसी भी कठोर पृष्ठभाग पर थोड़ी ऊँचाई पर से हॉवरक्राफ्ट सफर करती है। इस अनोखे हॉवरक्राफ्ट के संशोधक हैं, इंग्लैन्ड के केंब्रिज परिसर में जन्मे क्रिस्टोफर कॉकरेल।

हॉवरक्राफ्ट

क्रिस्टोफर के पिता फित्झ विल्यम म्युझियम के प्रमुख थे। क्रिस्टोफर का शालेय शिक्षण हॉल्ट के ग्रेशम्स स्कूल में हुआ। इसके बाद क्रिस्टोफर ने केंब्रिज विश्‍वविद्यालय में प्रेवश लेकर पीटर हाऊस का सदस्यत्व स्वीकार किया और इसी विश्‍वविद्यालय से उन्होंने अभियांत्रिकी (इंजिनियरिंग) की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद सन् १९३५ में मार्कोनी कंपनी में उन्होंने नौकरी की। कालांतर में शुरु हुए दूसरे महायुद्ध में क्रिस्टोफर ने रडार यंत्र पर काम किया था। किन्तु फिर भी हॉवरक्राफ्ट ही क्रिस्टोफर का सबसे अनमोल संशोधन रहा।

सन् १९५३ के दौरान क्रिस्टोफर के दिमाग में हॉवरक्राफ्ट बनाने की कल्पना आयी। इसके बाद दो वर्षों तक कड़ी मेहनत के बाद सन् १९५५ में क्रिस्टोफर ने पहले हॉवरक्राफ्ट का परीक्षण किया। ड्रायर के साथ दो कँन्स का उपयोग करके उसने अपनी कल्पना को साकार करने की शुरुवात की। इस संबंध में पहले परीक्षण के बाद इस प्रकार की संकल्पना साकार हो सकती है, यह सिद्ध हो गया और क्रिस्टोफर का आत्मविश्‍वास बहुत बढ़ गया। इस पहले बनाए गए हॉवरक्राप्ट को ‘एसआरएन१’ यह नाम दिया गया।

हॉवरक्राफ्ट

पानी के ऊपर हवा की लहरों पर तैरनेवाले इस हॉवरक्राफ्ट की संकल्पना के कारण पानी और वाहन इनके बीच होनेवाला घर्षण बहुत बड़े पैमाने पर कम हो गया। पहले प्रयोग में क्रिस्टोफर ने एक बड़े टीन में छोटा टीन रखा और ड्रायर की सहायता से जोर से हवा अंदर की ओर प्रवाहित की। इसी कारण से इस प्रयोग के कारण घर्षण कम होने की जानकारी क्रिस्टोफर को हुई। जैसे-जैसे हॉवरक्रॉफ्ट का विकास हो रहा था वैसे वैसे क्रिस्टोफर के सामने बड़ी बड़ी चुनौतियाँ आ रही थीं। जिस दिन हॉवरक्रॉफ्ट का संशोधन पूर्ण हो गया तब क्रिस्टोफर ने अपनी हॉवरक्रॉफ्ट को विक्री के लिए मार्केट में लाया। किंतु पहले तो हॉवरक्रॉफ्ट लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। इस दौरान क्रिस्टोफर को अपनी जायदाद भी बेचनी पड़ी।

इस दौरान हॉवरक्रॉफ्ट की उपयोगिता लोगों की समझ में आने लगी और आज तो विश्‍व स्तर पर हॉवरक्रॉफ्ट का नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। क्रिस्टोफर के संशोधन करने के बाद मरिन्स कंपनी ने हॉवरक्रॉफ्ट का निर्माण करने की शुरुवात की। इसी कंपनी ने ही क्रिस्टोफर के संशोधन को मान्यता देकर बहुत बड़े प्रमाण में हॉवरक्रॉफ्ट का निर्माण करना शुरू किया। मरीन्स ने १०० बड़े हॉवरक्रॉफ्ट अमेरिका में और २५० हॉवरक्रॉफ्ट्स सोव्हिएत युनियन में भेज दिये। उसके बाद अनेक कठिन परिस्थितियों में इस हॉवरक्रॉफ्ट का भरपूर उपयोग किया गया। इसके बारे में कहे गए क्रिस्टोफर के उद्गार हमेशा के लिए स्मरण किए जाते हैं, वे इस तरह हैं –

‘‘किसी भी वस्तु का एक बार संशोधन होने के बाद कोई भी उसे असंशोधित नहीं कर सकता।’’ इसी कारण संशोधकों का भी स्मरण हमेशा रहता ही है। इसीलिए हॉवरक्रॉफ्ट हमेशा ध्यान में रहेगा और हॉवरक्रॉफ्ट के जनक ‘क्रिस्टोफर कॉकरेल’ भी!

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