पॉल मॅक्रीडी

शास्त्रज्ञ (सायंटिस्ट) यह समाज के एक घटक हैं। प्रत्येक शोध में संशोधक का स्वयं का एक मूलभूत ध्येय होता है। स्वयं की कल्पना और अपने स्वप्न को प्रत्यक्ष में उन्हें सामने लगा होता है। तो कभी यांत्रिक (तंत्र) ज्ञान के नयी कल्पनाओं को उत्तेजन देने के लिए उद्योगपति, धनवान मनुष्य इन खोजों के लिए पुरस्कार घोषित करते हैं। ब्रिटेन के हेन्री क्रेमर इनमें से एक थे। इन उद्योगपति को हवाई जहाज (विमान) के प्रति आकर्षण था और उसमें भी मनुष्य की द्वारा उड़नेवाले विमान के निर्माण के प्रति उनकी उत्सुकता थी। डॉ. पॉल मॅक्रीडी ने उनकी इस उत्सुकता को पूरा किया।

हवाई जहाज के प्रति रहने वाले आकर्षण और उत्सुकता के कारण हेन्री क्रेमर ने सन् १९५९ में एक बड़ी रकम के दो पुरस्कार जाहीर किए। ५०,००० पाऊंड के पुरस्कार आठ अंक की प्रतिमा जैसे मार्ग से हवाई जहाज उड़ाने के लिए और दूसरा पुरस्कार यंत्र के बदले मनुष्य की शक्ति के बल पर उड़नेवाले हवाई जहाज में से अंग्रेजी खाड़ी पार करनेवाले वैज्ञानिक के लिए था। इस इनाम की रकम लगभग एक लाख पाऊंड थी। इस पुरस्कार की घोषणा होते ही हेन्री क्रेमर की दोनों चुनौतियों का स्वीकार कॅलिफ़ोर्निया के तंत्रज्ञ डॉ. पॉल मॅक्रीडी ने किया।

अमेरिका के पॉल मॅक्रीडी विमानविद्या के तंत्रज्ञ थे। उन्होंने सन् १९४७ में येल विद्यापीठ से भौतिकशास्त्र में पदवी प्राप्त की थी। कॅलटेक से सन् १९४८ में अगली पदवी हासिल करके इ. स. १९५२ में उन्होंने विमानविद्या इस विषय में डॉक्टरेट किया। दूसरे महायुद्ध के समय में उन्होंने अमेरिकन नौदल में वैमानिक (पायलट) का प्रशिक्षण लिया। सन् १९५१ में उन्होंने हवामानशास्त्र के संशोधन के लिए एक संस्था की स्थापना की। इसके दरम्यान मॅक्रीडी ने यह महसूस किया की पैंड़ल (पायडेल) की सहायता से हवाई जहाज उड़ानेवाला वैमानिक (पायलट) केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से भी बहादूर होना चाहिए। इस व्यक्ति की उम्र, इच्छाशक्ती, प्रशिक्षण और सराव में ही विमान उड़ाने का यश निर्भर करता है।

पन्द्रहवें शतक में यंत्र की सहायता से वाहन में उड्डाण करने का विचार लिओनॉर्डी दा व्हिन्सी ने किया था। इसके बाद आगे चलकर राईट बंधूओं को विमान उड़ाने में सफ़लता प्राप्त हुई(इ. स. १९०३)। जेट विमान उड़ने लगे। रॉकेट की खोज़ की गई, मानव चाँद पर पहुँच गया। किन्तु स्वसामर्थ्य द्वारा आकाश में उड़ने का यश मनुष्य को नहीं मिला। किंतु पॉल मॅक्रीडी अपने प्रयत्न को पूर्णता देने में लीन थे। इस प्रयत्न को करते समय उन्होंने निरीक्षण किया कि साइकिल की तरह पैंड़ल मारते हुए हवाई जहाज को उड़ाते समय यंत्र की तरह ऊर्जा शक्ति का निर्माण नहीं होता, मुड़ते समय ऊर्जा कम हो जाती है। इसके अलावा रास्ते में आनेवाली रुकावटों को सँभालते हुए मानवी शक्ति के द्वारा विमान को तेज़ी से चलाना आसान नहीं है। इन प्रसंगों में विमान गिरने का खतरा भी हो सकता है, इन सारी बातों की उन्होंने अपने निरीक्षण द्वारा जानकारी हासिल की।

मानवीय शक्ति के द्वारा विमान उड़ाने का प्रयत्न फ़्रान्स की प्युजो कंपनी की आर्थिक सहायता के बल पर १९१२ से आठ से दस वर्ष तक चल रहा था। साइकिल ही, किंतु हवा में उड़नेवाली। साइकिलसवार पैंड़ल मारते ही तेज़ी से वेग लेते हुए साइकिल के पंख फ़ैलाकर हवा में उड़ता था। किंतु इस पद्धति द्वारा साधारण तौर पर पन्द्रह मिनिट हवा में अंतर पार करने के अलावा इस साइकिल की उड़ान अधिक ऊपर न जा सकी। इस दरम्यान विकसित हुए ‘ग्लायडर’ के स्वरूप में सुधार करके जर्मनी में तैयार किए गए मुफ्ली विमान ने ७१२ मीटर अंतर तक उड़ान भरी। किंतु इस विमान को हवा में फ़ेकने के लिए गोफ़नी की मदत ली गई थी।

इस प्रयत्न में २३ अगस्त सन् १९७७ के दिन पॉल मॅक्रीडी ने प्रायोजक और उद्योगपति क्रेमर के द्वारा की गई घोषणा में पहला पुरस्कार जीता। साइकिल की तरह पैंड़ल मारकर उन्होंने ‘गोसॅमर काँडॉर’ विमान की उड़ान की। ब्रायन अ‍ॅलन नामक साइकिल चँपियन की उन्होंने इसमें सहायता ली।

इसके बाद ब्रिटीश खाड़ी को पार करके जानेवाले हवाई जहाज को विकसित करने का पॉल का प्रयत्न जारी था। इसके लिए काँडॉर हवाई जहाज में उन्होंने का़फ़ी परिवर्तन किए। इस विमान का वजन था ३२ किलो। पंखे की लम्बाई ९३ फ़ीट ९ इंच थी। आजकल प्रचलित बोईंग ७३७ विमान के पंख का फ़ैलाव लगभग इतना ही है। विमान का ढ़ाँचा तैयार करने के लिए अ‍ॅल्युमिनियम के ट्यूब का उपयोग किया गया। उस पर मायलर प्लास्टिक का आवरण किया गया। इसके कारण वजन में हलके हुए इस विमान को उन्होंने ‘गोसामीर अल्बॅट्रॉस’ यह नाम दिया। इसके पश्‍चात् विमान का संचलन ब्रायन अ‍ॅलन द्वारा ही करना निश्‍चित किया गया। अंग्रेजी खाड़ी की चौड़ाई ३२ कि. मी. है। इस अंतर को पार करने के लिए १६ कि. मी. की रफ्तार से लगातार दो घंटे तक पैडलिंग करना जरूरी था। इस उड़ान को भरने के पहले अ‍ॅलन ने साइकिलिंग का का़फ़ी सराव किया। उन्होंने तेज़ रफ्तार से लगातार चार घंटों तक साइकिलिंग करने की तैयारी की। यह तैयारी पूर्ण होते ही इंग्लैन्ड के केंट के किनारे से १३ जून, सन् १९७९ के दिन सुबह ७.०० बजे ब्रायन अ‍ॅलन ने विमान उड़ाया। समुद्र के पानी के पृष्ठभाग पर स़िर्फ़ १६ फ़ीट की ऊँचाई से इस विमान का प्रवास शुरु हुआ। तीन घंटे की उड़ान के बाद यह विमान फ़्रान्स के कॅप ग्रीस-नेझ के किनारे पर उतारा। इस यश के साथ डॉ.पॉल मॅक्रीडी ने एक लाख पौंड का इनाम जीता।

इस यश के बाद डॉ. पॉल मॅक्रीडी ने ‘गोसॅमीर पेंग्विन’ और सौर ऊर्जा पर आधारित ‘सोलार चॅलेंजर’ नामक विमान विकसित किए। जनरल मोटर्स की सहायता से सोलर पॉवर पर चलनेवाली सनरेसर बनाई।

पॉल मॅक्रीडी ने एअरोव्हेयनी अभियांत्रिकी कंपनी के प्रमुख संचालक पद के सूत्र सँभाले। इंग्लैन्ड के सायन्स म्युझियम में मॅक्रीडी द्वारा विकसित किया गया ‘गोसॅमीर अल्बॅट्रॉस’ आज भी देखने को मिलता है।

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