चीन और श्रीलंका के बीच हंबंटोटा अनुबंध

कोलोंबो: चीन ने दिए हुए कर्जे के पिंजरे में फंसे श्रीलंका को अपना ‘हंबंटोटा’ बंदरगाह चीन के हाथों में सौंपना पड़ा| शनिवार को यह बंदरगाह ९९ वर्षों के लिए चीन को किराए पर देने का अनुबंध किया गया| लेकिन इस बंदरगाह का इस्तेमाल चीन सेना के लिए न कर सके इसका ध्यान भी श्रीलंका ने रखा है|

भारत ने चिंता व्यक्त की थी की चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल नौदल के लिए कर सकता है| चीन के साथ हुए नए सुधारित अनुबंध में यह चिंता दूर किए जाने का दावा किया जा रह है| इसके लिए बंदरगाह की सुरक्षा व्यवस्था श्रीलंका के हाथों में ही रखी गई है| श्रीलंका के बंदरगाह विकास और नौकायन मंत्री महिंदा समिरासिंघे ने कहा है कि दूसरे देशों को यहाँ पर नौदल निर्माण करने की अनुमति नहीं दी जाएगी| ऐसा होते हुए भी ‘हंबंटोटा’ बंदरगाह चीन के हाथों में जाना यह बात चीन के सामर्थ्य को बढ़ाती है| इस वजह से इस अनुबंध के बाद भारत के साथ साथ अमरीका और जापान ने भी श्रीलंका के पास अपनी आपत्ति जताई है|

हंबंटोटाश्रीलंका पर ५८ अरब डॉलर्स का विदेशी कर्ज है| इसमें से बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए चीन से लिया हुआ कर्जा चढ़ते ब्याज दरों में लिया गया है| यह कर्जा और उसका ब्याज लौटाने के लिए वर्तमान में श्रीलंका को ९० प्रतिशत से भी अधिक राजस्व आय खर्च करना पड़ रहा है| इस वजह से देश में अन्य सुविधाएँ, विकास और बुनियादी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए, पर्याप्त निधि उपलब्ध नहीं है| पिछली सरकार की वजह से यह परिस्थिति निर्माण हुई है, ऐसा कहा जा रहा है|

चीन ने पिछली राजपक्षे सरकार के साथ मिलकर श्रीलंका को कर्जे के पिंजरे में फंसाया है, ऐसा विशेषज्ञ मानते हैं| इस कर्जे को कुछ हद तक कम करने के लिए श्रीलंका ने चीन के सामने ‘हंबंटोटा’ बंदरगाह और ‘माटाला इंटरनेशनल एअरपोर्ट’, इन दो प्रकल्पों का पूरा कब्ज़ा चीन को देने का प्रस्ताव रखा था|  राज्याध्यक्ष महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में यह कर्जा लिया गया था| ‘हंबंटोटा’ बंदरगाह का विकास चीन से करवाने का निर्णय उन्हीं के कार्यकाल में लिया गया था| ऐसा होते हुए दूसरी तरफ वर्तमान के विपक्षी नेता महिंदा राजपक्षे, इस प्रकल्प के विरोध में बड़े पैमाने पर आन्दोलन करा रहे हैं| इसके अलावा इस परियोजना में जिन लोगों की जमीनें जा रही है, वह भी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं|

महिंदा राजपक्षे और श्रीलंका के मार्क्सवादी नेता जनाथा पेरेमुना ने, श्रीलंकाई संसद में चर्चा किए बगैर अनुबंध पर हस्ताक्षर न करने की माँग की थी| लेकिन संसद में चर्चा हुए बगैर यह अनुबंध हुआ है| इस वजह से इस मुद्दे को लेकर भविष्य में श्रीलंका में राजनितिक संघर्ष भी भडक सकता है|

‘चाइना मर्चंट पोर्ट होल्डिंग’ और श्रीलंका के पोर्ट अथॉरिटी में शनिवार को हुए इस अनुबंध के अनुसार, चीन इस बंदरगाह में १.१ अरब डॉलर्स का निवेश करने वाला है| इसके अलावा इस परियोजना में ६९.५५ प्रतिशत हिस्सेदारी ‘चाइना मर्चंट पोर्ट होल्डिंग’ की होगी| ३०.४५ प्रतिशत हिस्सा श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण के कब्जे में रहेगा| इसके लिए मिलने वाली रकम से श्रीलंका अपना कुछ कर्जा चुकाने वाली है|

श्रीलंका के प्रधानमंत्री राणील विक्रमसिंघे के दावे के अनुसार कोई भी कर्जा न लेते हुए अच्छा अनुबंध हुआ है| दूसरी तरफ बंदरगाह विकास मंत्री महिंदा समिरासिंघे ने राजपक्षे के कार्यकाल में हुए अनुबंध से भी ज्यादा फायदेमंद अनुबंध होने का दावा किया है| महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में हुए अनुबंध के अनुसार ८० प्रतिशत हिस्सा चीन के कब्जे में रहने वाला था| साथ ही बंदरगाह का पूरा नियंत्रण चीनी कंपनी के पास रहने वाला था|

‘हंबंटोटा’ बंदरगाह’ का विकास चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) इस महत्वाकांक्षी योजना का एक हिस्सा है| भारत ने पहले ही ओबीओआर का विरोध किया है| साथ ही चीन की यह परियोजना मतलब एशियाई और अफ्रीकन देशों को अपने कर्जे के जाल में फंसाकर, इन देशों का फायदा उठाने का एक भाग है, ऐसा जानकारों का मानना है| पिछले महीने में ही चीन ने पूर्व अफ्रीकन देश जिबोती में अपना अड्डा शुरू किया है| उसके बाद भारत के दक्षिण में श्रीलंका का ‘हंबंटोटा बंदरगाह’ चीन के कब्जे में जाने की बात, भारत के लिए चिंता बढाने वाली है|

पाकिस्तान और म्यांमार के बंदरगाह विकसित करके चीन भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है, ऐसी चिंता विश्लेषकों की ओर से बार बार जताई जा रही है| लेकिन भारत अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत सतर्क है और भारत को घेरना इतना आसन नहीं है, ऐसा दावा भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में बोलते समय किया है| श्रीलंका ने ‘हंबंटोटा बंदरगाह’ के मामले में भले ही चीन के साथ अनुबंध किया हो लेकिन भारत की सुरक्षा के मुद्दे को नजरंदाज नहीं किया है, ऐसा भी श्रीलंका ने कहा है| श्रीलंका ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि, इस बंदरगाह पर चीन की नौसेना की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा|

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