चीन की संप्रभुता पर समझौता नहीं : राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की चेतावनी

बीजिंग: चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने फिर एक बार घोषणा की है कि, ‘चीन की सेना के पास सभी आक्रमण करनेवालों को हराने का सामर्थ्य है। चीन अपना भूभाग दूसरों के कब्जे नहीं जाने देने वाला’। जिनपिंग ने पिछले दो दिन में तीन बार अपनी सेना के सामर्थ्य के बारे में घोषणा करके भारत को इशारा दिया है, साथ ही चीन की ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ (पीएलए) को हमेशा युद्ध की तैयारी में रहने को कहा।

संप्रभूता३० जुलाई को जिनपिंग ने ‘पीएलए’ के संचालन के दौरान इसी तरह की घोषणाएं की थी। मंगलवार को भी ‘पीएलए’ के कार्यक्रम में बोलते हुए जिनपिंग ने फिर एक बार चीन के संप्रभूता पर समाझौता न करने का इशारा दिया है। ‘चीन की जनता शांतिप्रिय है। चीन को किसी पर भी आक्रमण नहीं करना है। लेकिन चीन अपना भूभाग किसी दूसरे के हाथों में जाने नहीं देने वाला है। इसके लिए चीन की सेना तैयार होगी’, ऐसा जिनपिंग ने कहा। ‘राजनितिक चर्चा और बातचीत करके युद्ध को टाला जा सकता है। फिर भी चीन के सेना दल देश की सुरक्षा के लिए हमेशा युद्ध सतर्क रहें’, ऐसी सुचना इस दौरान राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने दी।

चीन के पास लगभग २३ लाख सेनाबल है और चीन का रक्षा खर्च १५२ अरब डॉलर्स है। इस साल चीन ने अपना रक्षा खर्च ७ प्रतिशत से बढाया है। यह चीन ने दिए हुए आंकड़े है, लेकिन इसके बारे में चीन पर लपाछपी करने के आरोप अमरीका और अन्य देश कर रहे हैं। प्रत्यक्ष में चीन का रक्षा खर्च इससे भी कई ज्यादा है और चीन इसके बारे में पारदर्शिता नहीं रख रहा है, ऐसा दाग विश्लेषकों ने कई बार लगाया है। चीन के बढ़ते लश्करी सामर्थ्य की वजह से आशिया प्रशांत के देश दहशत में हैं और इन इलाकों में असमतोल निर्माण हुआ है। इस असमतोल को दूर करने के लिए अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ दक्षिण पूर्व एशियाई देश सामरिक सहकार्यता बढ़ा रहे हैं। लेकिन दुनिया को अपने सामर्थ्य से डरा रहा चीन, पिछले कुछ हफ़्तों से भारत ने डोकलाम सीमा पर अपनाए हुए मजबूत रवैये की वजह से मुसीबत में दिख रहा है।

डोकलाम के पास भूटान के भूभाग में घुसकर सड़क निर्माण करने की कोशिश कर रहे चीनी सैनिकों को भारतीय जवानों ने रोका है। उसके बाद बौखलाए हुए चीन ने भारत को गंभीर परिणामों की और उसके बाद युद्ध की धमकी दी थी। सन ६२ के युद्ध की याद दिलाकर भी भारतीय सेना पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, देखकर चीन ने और भी तीखे शब्दों में भारत को धमकाने की कोशिश की। चीन को उन्ही की भाषा में जवाब देना भारत ने टाला है, लेकिन साथ ही डोकलाम से भारतीय सेना को न हटाने का मजबूत रवैया भी अपनाया है।

इसके बाद अब चीन का सर्वोच्च नेतृत्व भारत को इशारा देता दिख रहा है। लेकिन भारत पर इसका परिणाम होने की संभावना नहीं है। दुनिया के प्रमुख देश डोकलाम सीमा विवाद में भारत के पीछे खड़े हैं। इस विवाद पर चीन ने भारत को राजनितिक स्तर पर घेरने का असफल प्रयत्न किया है। इतना ही नहीं बल्कि चीन ने भारत को कमजोर समझकर डोकलाम में खुद की ही परेशानियाँ बढाई हैं, ऐसा दावा पश्चिमी देश के राजनितिक अधिकारी और विश्लेषक कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति में भारत के खिलाफ अधिक आक्रामक रवैया अपनाकर लश्करी संघर्ष छेड़ना चीन के लिए मुनासिब नहीं होगा। किसी समय में बड़ी तेजी से प्रगति कर रही चीन की अर्थव्यवस्था वर्तमान में उतनी सक्षम रहने की संभावना नही। उल्टा चीन पर कर्जा बहुत बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से चीन की अर्थव्यवस्था गीर सकती है, इस बात की तरफ विशेषज्ञ ध्यान खींच रहे हैं। इस दौरान चीन की जनता भी कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाही शासन के पीछे मजबूती से खड़ी रहेगी, इसका भरोसा इस शासन को ही नहीं है, यह बात स्पष्ट हुई है। डोकलाम के सीमा विवाद की वजह से चीनी जनता में भारत के खिलाफ क्रोध निर्माण हुआ है, यह दावा चीन के सरकारी माध्यम कर रहे हैं। लेकिन चीन की जनता को इस विवाद से कुछ भी लेना देना नहीं है, ऐसा दिख रहा है। दूसरी तरफ भारतीय जनता चीन के उत्पादों पर बहिष्कार डालकर अपना असंतोष जाहिर कर रही है।

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