श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४८

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४८

सन् १९१६ में हेमाडपंतजी सरकारी नौकरी से निवृत्त हो गए और उन्हें पेंशन मिलने लगी, परन्तु गृहस्थी का भार बढ़ जाने से, जो पेंशन उन्हें मिल रही थी, उसमें उनका गुजर-बसर ठीक से नहीं हो रहा था, इसके लिए उपाय ढूँढ़ने में वे सदैव लगे रहते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘जहाँ चाह वहाँ […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४७

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४७

तृतीय अध्याय की प्रथम कथा के बारे में हम चर्चा कर रहे हैं। बढ़ रहे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपनी पेंशन कैसे पूरी पड़ सकती है? मुझे इस जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाने के लिए क्या करना चाहिए, इस बात का विचार सरकारी नौकरी से निवृत्त (रिटायर्ड) होनेवाले हेमाडपंत के […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४६

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ४६

तृतीय अध्याय के आरंभिक विभाग में अनेक अप्रतिम पंक्तियाँ हैं। वैसे देखा जाए तो साईसच्चरित की हर एक पंक्ति का ही अपने आप में एक सुंदर महत्त्व है, परन्तु इन पंक्तियों में ‘साईनाथ उवाच’ एवं ‘हेमाडपंत उवाच’ इन दोनों ही प्रकार की पंक्तियों के माध्यम से हमें इस बात का पता चलता है कि साईसच्चरित […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४५

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४५

श्री साईनाथ मुझ से अनंत अपरंपार प्रेम करते हैं। यही बात हेमाडपंत हमें बतला रहे हैं। यहाँ पर हेमाडपंत का ‘मैं’ यह केवल एक व्यक्ति से संबंधित न होकर सारे श्रद्धावानों को निर्दिष्ट करनेवाला ‘मैं’ है। धेनु (गाय) – बछड़े का, घन (बादल) – चातक का उदाहरण देकर श्रद्धावानों के प्रति रहनेवाले साईबाबा के प्रेम […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४४

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४४

गृहस्थी और परमार्थ को एकसाथ आसानी से सफल बनाया जा सके, हर कोई अपने जीवनविकास का मार्ग सहजता से प्राप्त कर सके इसके लिए सद्गुरु साईनाथजी का सगुण ध्यान सहजता से जिस पथ से हो सकता है, वह पथ है साईनाथजी की कथाओं का मार्ग श्री साईनाथ ने अपने श्रद्धावानों के लिए श्रीसाईसच्चरित के रूप […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४३

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४३

भक्तिभाव के साथ कथाएँ पढते ही। सहज साई का ध्यान होगा। सगुण रूप आँखों के समक्ष दिखाई देगा। साई की आकृति चित्त में दृढ़ हो जायेगी॥ अमृत भी जिनके सामने फीका पड जाता है, जो दीपस्तंभ की तरह मार्गदर्शन करती हैं, जो भवसागर के प्रवास को भी सुकर बनाती हैं, जो पापों के ढेर जलाकर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४२

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४२

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण। होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥ ‘क्यों साईबाबा, क्यों किया आपने ऐसा मेरे साथ’ इस तरह के अविश्‍वास भरे उलटे सवाल साईबाबा से पूछते समय हमारी जीभ बिलकुल भी नहीं लड़खड़ाती। बाबा से अपनी इच्छापूर्ति की माँग करते समय हमारी जीभ बिलकुल सी भी नहीं […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४१

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४१

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण। होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥ बाबा के शुद्ध यश का वर्णन अत्यन्त प्रेमपूर्वक करना और उसी प्रेम के साथ उस गुणसंकीर्तन का श्रवण करना यही सबसे अधिक आसान साधन है। यह साधन भी है और यह साध्य भी है, इसीलिए यह सबसे अधिक आसान […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-४०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-४०)

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण। होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥ हेमाडपंत की यह अप्रतिम पंक्ति हमें परमार्थ के आसान साधन का, सहज सुंदर मार्ग का उपदेश करती है। हर एक भक्त को जो कुछ भी चाहिए होता है, वही ये साईनाथ हमें यहाँ पर दे रहे रहे हैं। हमारे […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३९)

हमने देखा कि साईनाथ की कथाएँ हमारे लिए कितनी अतुलनीय कार्यकारी हैं। हमारे जीवननौका के भवसागर के प्रवास को रसमय बनाने के लिए ये कथाएँ सभी प्रकार से बाह्य एवं आंतरिक दुर्घटनाओं से हमें सुरक्षित रखती हैं और इसी के साथ हमारे साईनाथ स्वयं नाविक बनकर हमारा प्रेम सहज सुगम बनाते हैं और यह कार्य […]

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