श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३८)

साईनाथ की इन कथाओं की मधुरता के सामने अमृत कुछ भी नहीं है। भवसागर के दुष्कर पथ पर भी अपने आप ही इन से सहजता आ जाती है॥ साईनाथ की कथाएँ इतनी अधिक मधुर हैं कि उनके माधुर्य के सामने अमृत भी फीका पड़ जाता है। ये कथायें अमृत को भी पछाड़ देनेवाली हैं। अमृत […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३७)

असो टाळोनि भंवरे खडक। सागरीं नावा चालाव्या तडक। म्हणोनि जैसे लालभडक। दीप निदर्शक लाविती॥ तैशाचि साईनाथांच्या क था। ज्या गोडीने हिणवितील अमृता। भवसागरींचे दुस्तर पंथा। अति सुतरता आणितील॥ जिस तरह सागरी प्रवास में जहाज पत्थरों से टकराकर टूटने न पाये और वह जल समाधि से भी बच जायें इसीलिए दीपस्तंभ की योजना की जाती है; […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३६)

साई ही स्वयं लिखने-लिखवाने। भक्त कल्याण हेतु। कैसे बजेगी बंसी या पेटी। बजानेवाला चिंता न करे। यह कला तो उस बजानेवाली की। हम व्यर्थ ही कष्ट क्यों करें। वाद्य से कौनसा सुर निर्माण करना है, कौनसा राग निकालना है, इस बात का विचार वाद्य को नहीं करना होता है, बल्कि उसकी सारी ज़िम्मेदारी वादक के […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३५)

साईनाथ, मैं तो केवल चरणों का दास। मत कीजिए मुझे उदास। जब तक है इस देह में साँस। अपना कार्य करवा लीजिए मुझ से॥ हेमाडपंत ने मन:पूर्वक यह माँग साईनाथ से की है। साईनाथ के चरणों का पूर्ण रूप से दास बनने के लिए हेमाडपंत तैयार हैं और इस माँग के अनुसार ही उनके जीवन में सब […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३४)

मूक बृहस्पति समान बोलने लगता है। पंगु मेरू पर्वत लाँघ कर जाता है। ऐसी है जिन साईनाथ की अतर्क्य शक्ति। उनकी लीला वे ही जाने॥ सद्गुरुतत्त्व को उद्धारक एवं अचिन्त्यदाता क्यों कहते हैं, इस बात का पता हमें इस ओवी को पढने से चल जाता है। जो भक्त मूक है, उसे सद्गुरु केवल बोलने की शक्ति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३३)

साई, आप ही हैं मुझ अंधे की लाठी। आप के होते मुझे किस बात का भय। लाठी टेंकते-टेंकते पीछे-पीछे। सीधे आसान मार्ग पर चलूँगा मैं॥ बाबा के पीछे-पीछे चलते रहना यही आसान राह है, यह बात तो हम जान चुके हैं। मैं गलत राह पर से चलूँ और बाबा को मेरे पीछे चलना चाहिए, यह […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३२)

‘अंधे की गऊओं की रक्षा भगवान करते हैं।’ ‘जिसका कोई नहीं है उसके रखवाले श्रीराम हैं।’ इन वाक्यों को तो हमने सुना ही होता है। अंधे मनुष्य के पास आँखें न होने के कारण उसके गऊओं की रखवाली वह स्वयं नहीं कर सकता है, इसीलिए उस के गऊओं की रखवाली स्वयं भगवान करते हैं। यह […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३१)

साई, आप ही हैं मुझ अंधे की लाठी। आप के होते मुझे किस बात का भय। लाठी टेंकते-टेंकते पीछे-पीछे। सीधे आसान मार्ग पर चलूँगा मैं ॥ साईबाबा! आप ही मुझ अंधे की लाठी हो तो फिर मुझे व्यर्थ ही मशक्कत करने की, चिंता करने की, भाग-दौड़ करने की ज़रूरत ही क्या है? उसी लाठी का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३०)

साईनाथ के गुणसंकीर्तन की यह आसान राह प्रेमप्रवास करने के लिए हेमाडपंत ने चुन ली। परन्तु राह चाहे जो भी हो उस राह पर चलने के लिए जैसे पैरों का होना महत्त्वपूर्ण हैं, वैसे ही आँखें भी महत्त्वपूर्ण हैं। आँखों से राह को देखते रहते हैं और फिर उतार-चढ़ाव, काँटे, नुकिले पत्थर आदि से बचकर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-२९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-२९)

कोई आगे चलकर बनायेगा मठ। कोई देवालय तो कोई घाट। हम पकड़ेंगे सीधी बाट (राह)। चरित्र-पाठ श्री साई का। कोई करता सत्कारपूर्वक अर्चन। कोई करता पादसंवाहन। उत्कंठित हो उठा मेरा मन। गुणसंकीर्तन करने को॥ साईनाथ का हर एक श्रद्धावान अपनी-अपनी योग्यता के कारण भक्ति की विभिन्न साधनाएँ करता रहता है। साईनाथ की जैसी इच्छा होती है, उसी प्रकार वे […]

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