श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-३९)

हमने देखा कि साईनाथ की कथाएँ हमारे लिए कितनी अतुलनीय कार्यकारी हैं। हमारे जीवननौका के भवसागर के प्रवास को रसमय बनाने के लिए ये कथाएँ सभी प्रकार से बाह्य एवं आंतरिक दुर्घटनाओं से हमें सुरक्षित रखती हैं और इसी के साथ हमारे साईनाथ स्वयं नाविक बनकर हमारा प्रेम सहज सुगम बनाते हैं और यह कार्य केवल साईनाथ ही कर सकते हैं। वे हमारी जीवननौका का प्रवास सहज सुगम बनाने के लिए तत्पर हैं ही, मुझे उनका श्रद्धावान बनना होगा। और साईनाथ का श्रद्धावान बनने के लिए ये कथाएँ ही सर्वोत्तम एवं सहज, सुंदर एवं आसान मार्ग हैं।

ये कथाएँ, साईनाथ की कथाएँ हमारी जीवननौका का प्रवास सुखमय, आत्मसम्मानपूर्ण एवं प्रेममय बनाने के लिए सभी स्तरों पर कार्य करती हैं।

‘टालते हुए भँवरों एवं पाषाणों को’

१) वास्तव को छोड़कर होनेवाली कल्पना के भँवर ही ङ्गलाशा के जाल हैं। मेरी गलतियों के कारण इस भवसागर में मेरी नौका तो हर हाल में डूबनेवाली ही होती है। एक बार यदि इस कल्पना के, ङ्गलाशा के भँवर में हमारी नौका फँस जाती है तो वह डूबनेवाली ही है। श्रीसाईनाथ की ये कथाएँ हमारी नौका को कभी भी भवसागर में फँसने ही नहीं देती हैं, दर असल साईनाथ की कथाओं का गायन करते हुए चलनेवाली नौका के मार्ग में साईनाथ फलाशा के भँवर आने ही नहीं देता है।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाई२) दिखायी देनेवाले माया-मोह के पाषाण और भवसागर में छिपे हुए प्रारब्ध के पाषाण इस प्रकार के दोनों ही पाषाणों से हमें साईनाथ की ये कथाएँ बचाती हैं। ये कथाएँ ही हमारे लिए मार्गदर्शक दीपस्तंभ बन जाती हैं और इसके साथ ही ये कथाएँ ही इन पाषाणों को चकनाचूर कर देती हैं। मुख्य तौर पर देखा जाए तो इन कथारूपी दीपस्तंभों के कारण ही हमारी नौका को कहाँ पर घुमाना है, कहाँ पर रोकना है और किस तरह से सुखरूप आगे बढ़ना है इस बात का पता चलता है। मेरी नौका सदैव आसान एवं सरल मार्ग पर से ही मार्गक्रमण करनेवाली है, इसलिए इन पाषाणों से टकरा जाने का भय ही नहीं रह जाता है।

३) देह-अहंकार अपने आप ही दूर हो जाता है – ‘देह-अहंकार’ यह हमारा आंतरिक शत्रु हमारी नौका में ही पानी डालता रहता है, ताकि हमें जलसमाधि मिल जाए। इसके लिए यह देह-अहंकार निशाना साधे बैठा ही रहता है। साईनाथ की कथाओं का श्रवण केवल प्रेमपूर्वक करनेवाले भोले-भाविकों के अंतर्मन में जैसे-जैसे ये कथायें उतरती जाती हैं, वैसे-वैसे ही हमारा देह-अहंकार नष्ट होते जाता है, नौका में जम रहे पानी का निकास हो जाता है। इन कथाओं के केवल श्रवण में ही इतनी अधिक सामर्थ्य है, यही बात यहाँ पर हेमाडपंत हमें बतला रहे हैं।

४) द्वंद्व का नामोनिशान मिट जाता है – द्वंद्वरूपी बलवान शत्रु हमारी ही नौका में घुसकर हमारी नौका की उचित दिशा दिखलानेवाले भक्ति के दिशादर्शक यंत्र (कंपास) को ही बिगाड़ देता है। साईनाथ की कथाओं का प्रेमपूर्वक केवल श्रवण भी करते हैं तब भी इन द्वंद्वों का विनाश हो ही जाता है और हमारी नौका कभी भी गलत दिशा में नहीं भटकती है।

५) विकल्प-संशय का नाश ये साईकथाएँ करती हैं – ‘‘जब जब हम इन कथाओं का संचय अपने हृदय में करते हैं, तब-तब विकल्प अपने-आप ही दूर हो जाते हैं।’’

विकल्प-संशय ये हमारी नौका में छिद्र बनानेवाले, हमारा अहित करनेवाले खतरनाक शत्रु इन कथाओं के कारण ही नष्ट हो जाते हैं। इन कथाओं को जितना भी अधिकाधिक हम अपने हृदय में संचित करते रहते हैं अर्थात बारंबार उन कथाओं का चिंतन, मनन, निदिध्यासन करते रहते हैं और इस मार्ग से इन कथाओं को हम अपने आचरण में उतारते रहेंगे, वैसे-वैसे हमारे शत्रुओं का विनाश होता रहता है। उनके द्वारा किए गए छिद्रों को बुझाने का काम तो ये कथायें करती ही हैं, परन्तु इसके साथ ही वे हमें अभेद्य कवच भी प्रदान करती हैं।

इस प्रकार का अभेद्य कवच प्राप्त हो जाने पर हमें डूबने का भय ही नहीं रहता है। हमारी नौका तो पानी पर भी तैर सकती है और ज़रूरत पड़ने पर पनडुब्बी बनकर पानी में डूबकी लगाकर आगे भी बढ़ सकती है। मान लो कि हमारी गलतियों के कारण, हमारे प्रारब्ध के कारण, हमारी जान के लिए खतरा साबित होने वाले अपमृत्युरूपी संकटों के बादल भी यदि सामने से आ जाते हैं, तब भी हमारी नौका समय पर ही पनडुब्बी बनकर पानी की गहराई तक भी जाकर हमारे प्रवास में बगैर बाधा उत्पन्न किए आगे बढ़ सकती है और पुन: उचित यथायोग्य समय देखकर पृष्ठभाग पर आकर आराम से प्रवास कर सकती है।

फिर इन सभी बातों का अध्ययन कर लेने के पश्‍चात् हम जान सकते हैं कि सचमुच साईनाथ की इन कथाओं के समान अन्य कोई भी कवच हो ही नहीं सकता है।

वैसे यदि देखा जाए तो हम चाहे किसी भी संकट में क्यों न हों, हमारी नौका चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति से क्यों न गुज़र रही हो, फिर भी हमें भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। साईनाथ के शुद्ध यश का वर्णन करनेवाली इन कथाओं का गायन करना, दूसरों को बतलाना यदि हम आरंभ कर देते हैं, इनका श्रवण करते हैं, चिंतन, मनन, निदिध्यास करने लगते हैं, तब अन्य सभी बातों की चिंता करने के लिए, ध्यान रखने के लिए हमारे अपने श्रीसाईनाथ तो समर्थ हैं ही।

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण।
होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥

हमारे पापों का नाश अन्य किसी भी साधन से नहीं हो सकता है। केवल साईनाथ के शुद्ध यश के वर्णन से ही हमारे पातकों की राशि का समूल विनाश हो जाता है। ‘भक्तकश्मलदहन’ अर्थात भक्तों की पापराशि को जला देनेवाला।

साईनाथ के शुध्द यश का वर्णन ही केवल हमारे सभी पापों को एक क्षण में ही भस्म कर सकता है, इस सच्चाई का पता हमें यहाँ पर चलता है।
हमें ऐसा लगता है कि हमारे पुण्यों से पापों का नाश हो जायेगा। परन्तु हकीकत में ऐसा नहीं होता है। पुण्य एवं पाप दोनों को ही भुगतना ही पड़ता है। पापों का नाश केवल साईबाबा के शुद्ध यश के वर्णन से ही होता है।

साईनाथ की कथाएँ यह दूसरा, तीसरा कुछ भी न होकर बाबा के यश का शुद्ध, निर्मल वर्णन ही है, साईनाथ का गुणसंकीर्तन ही है, रामरसायन ही हैं। साईनाथ के यश का वर्णन ही हमारे लिए तारक है। यह रामरसायन ही हमारे पापों के पहाड़ों को कपास के समान जला देनेवाला है।
‘कश्मल’ का सरलार्थ पाप है, फिर भी इसका भावार्थ है – पाप, पाप के बीज, पाप के परिणाम एवं पाप करने की वृत्ति।

मारा पाप यदि जल भी जाता है, परन्तु पापों के बीज यदि नहीं जलते हैं, तो पुन: पुन: ये पाप बढ़ते ही रहेंगे। बिलकुल वैसे ही पाप करने की वृत्ति भी यदि खत्म नहीं होती है तो मन पुन: पुन: पाप-आचरण की ओर प्रवृत्त होता ही रहेगा। उसी तरह पाप के परिणामस्वरूप जो प्रारब्धभोग हमें भुगतने पड़ते हैं, उनकी पीड़ा भी असहनीय होती है और इन सबसे मुझे यदि कोई बचाता है, तो वह है केवल रामरसायन अर्थात साईनाथ के शुद्ध, पवित्र यश का वर्णन।

साईनाथ के यश का वर्णन करते रहने से हमारे जीवन में सदैव यशस्वी होने वाले राम ही सक्रिय बनते हैं, राम की ही विजय होती है और रावण अयशस्वी होता है, रावण का नाश निश्‍चित ही होता है। राम की विजय तो सदैव निश्‍चित ही होती है, परन्तु मेरे जीवन में यह स्थिति बनी रहे इसके लिए रामरसायन का सेवन करना यानी साईनाथ के शुद्ध यश का वर्णन करना यही मेरा परमकर्तव्य है।

सूर्य बाहर तो हैं ही, परन्तु मेरे घर में उसका प्रकाश प्रवेश कर सके इसके लिए मुझे अपने कमरे के दरवाजे, खिड़कियों आदि को खोलना जरूरी है।ठीक वैसे ही बाबा के शुद्ध यश का वर्णन करने से श्रीसाईनाथ की कृपा मेरे जीवन के हर कोने को प्रकाशमान करती रहती है और फिर मेरे जीवन में अपयश, दुख, पीड़ा, निराशा, अंधकार बिलकुल भी नहीं रह पाते हैं। साईनाथ की ये कथाएँ हमारे जीवन में रामराज्य स्थापित करती हैं। तृप्ति, शांति एवं समाधान से हमारा जीवन समृद्ध बन जाता है और इसी लिए सदैव हमें श्रीसाईनाथ के यश का वर्णन करना चाहिए। साईराम का गुणसंकीर्तन करते रहना ही रामरसायन का प्राशन करते रहना कहलाता है और यही काफ़ी महत्त्व रखता है।

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