समय की करवट (भाग १५)– ‘मास मेंटॅलिटी’ : झुँड़ या टीम?

समय की करवट (भाग १५)– ‘मास मेंटॅलिटी’ : झुँड़ या टीम?

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन में, यह ‘मास मेंटॅलिटी’ का – समूह के मानसशास्त्र का अध्ययन करना ज़रूरी है, क्योंकि यही ‘मास मेंटॅलिटी’ समाज को ‘झुँड़’ बना सकती है और यही मास मेंटॅलिटी समाज का रूपांतरण एक बलशाली ‘टीम’ में […]

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समय की करवट (भाग १४)– ‘मास मेंटॅलिटी’ अर्थात् समूह का मानसशास्त्र

समय की करवट (भाग १४)– ‘मास मेंटॅलिटी’ अर्थात् समूह का मानसशास्त्र

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। जिसके पास संस्कृति की रक्षा की ताकत है और जिससे संस्कृतिरक्षा की उम्मीद की जा सकती है, ऐसे भारतीय मध्यमवर्ग के बारे में हमने देखा। आज तक ‘पूअर मिड्ल क्लास’ ऐसे तानों से जिसे संबोधित किया गया, […]

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समय की करवट (भाग १३)– जहाँ संस्कार ‘मिड्लक्लास मेंटॅलिटी’ साबित होते हैं….

समय की करवट (भाग १३)– जहाँ संस्कार ‘मिड्लक्लास मेंटॅलिटी’ साबित होते हैं….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। हमने ‘ग्रेट इंडियन मिड्ल क्लास’ के बारे में जाना। बुरी तरह फँसी जागतिक अर्थव्यवस्था किस तरह अपने आप को बचाने के लिए इस भारतीय मध्यमवर्गीय की ओर उम्मीद से देख रही है, यह हमने देखा। आज तक […]

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समय की करवट (भाग १२) – गर्व से कहो, हम मध्यमवर्गीय हैं

समय की करवट (भाग १२) – गर्व से कहो, हम मध्यमवर्गीय हैं

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। आंतर्राष्ट्रीय मार्केटों में ईंधन की भड़कतीं क़ीमतों के लिए भारत के मध्यमवर्गियों को ‘ज़िम्मेदार’ ठहराते हुए भी, अमरीका में नौकरियाँ पैदा करने के लिए पुनः इसी भारतीय मध्यमवर्ग को अधिक से अधिक उत्पाद बेचो (जिनमें ईंधन का […]

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समय की करवट (भाग ११) – द ग्रेट इंडियन मिड्ल क्लास

समय की करवट (भाग ११) – द ग्रेट इंडियन मिड्ल क्लास

 ‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। भारत ने संरक्षित नीति का त्याग कर ग्लोबलायझेशन की हवा भारत में बहने दी। ऐसे कुछ साल (विदेशी कंपनियों के) अच्छे गये। आगे चलकर वैश्‍विक मंदी शुरू हुई। उस बवंडर में, अभी अभी तक दुनिया पर अधिराज्य […]

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समय की करवट (भाग १०) – हॅरी को चाहिए – ‘मेड इन (भारत को छोड़कर कुछ भी)’

समय की करवट (भाग १०) – हॅरी को चाहिए – ‘मेड इन (भारत को छोड़कर कुछ भी)’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। ग्लोबलायझेशन में हालाँकि दोनो पार्टियों के अच्छे उत्पादों का लेनदेन होकर दोनों पार्टियों का फ़ायदा होगा ऐसी उम्मीद होती है; लेकिन वास्तव में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ ऐसी स्थिति होती है। अमीर देशों में रहनेवालीं बड़ीं बहुराष्ट्रीय […]

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समय की करवट (भाग ९ ) – ग्लोबलायझेशन – तब और अब….

समय की करवट (भाग ९ ) – ग्लोबलायझेशन – तब और अब….

‘समय ने करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। अमरीका शुरू से ही मुक्त व्यापार के पक्ष में थी। ‘सर्व्हायवल ऑफ द फ़िटेस्ट’, ‘प्रायव्हेटायझेशन’, ‘ग्लोबलायझेशन’ ये अमरीका के मूलमंत्र थे, जो अपनी ताकत के बलबूते पर उन्होंने सारी दुनिया के माथे पर थोंप दिये थे। उसके […]

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समय की करवट (भाग ८ ) – मैं ही हॅरी….मैं ही हरी

समय की करवट (भाग ८ ) – मैं ही हॅरी….मैं ही हरी

‘समय ने करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका हमारे भारत के विषय में अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। गरीब ग्रामीण भारत अभी कुछ साल पहले तक अमीर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए किसी महत्त्व का ही नहीं था। पॅरिस, लंडन, मिलान, न्यूयॉर्क इनके बाहर न जानेवालीं कई कंपनियाँ तो ८-१० साल […]

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समय की करवट (भाग ७ ) – ‘गाँव की ओर चलो’

समय की करवट (भाग ७ ) – ‘गाँव की ओर चलो’

‘समय ने करवट’ बदलने पर क्या क्या हो सकता है, इसके परिणाम देखते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। कल के ग़रीब आज के अमीर बनते हुए दिखायी दे रहे हैं और कल के अमीर आज के ग़रीब; और आज जो ग़रीब बनते जा रहे हैं, उन्हें अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए, उन्हीं लोगों […]

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समय की करवट (भाग ६) – कठिनाई में फँसा ‘हॅरी’

समय की करवट (भाग ६) – कठिनाई में फँसा ‘हॅरी’

‘समय ने करवट बदलने के’ भारत पर हो रहे परिणाम देखते हुए हम आगे जा रहे हैं। हमारा देश, आज़ाद हो जाने पर ‘शहरी’ तथा ‘ग्रामीण’ अर्थात् कई विश्‍लेषकों की राय में ‘इंडिया’ तथा ‘भारत’ इनमें किस तरह विभाजित हुआ है, इसका हम अध्ययन कर रहे हैं। उसमें हमने इस तरह विभाजन होने के पीछे […]

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