५८. ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन

पहला विश्‍वयुद्ध समाप्त हुआ और उसमें विजयी हुए ब्रिटन तथा दोस्तराष्ट्रों ने, पराजित अक्षराष्ट्रों (अ‍ॅक्सिस पॉवर्स) की भूमि का अपनी अपनी सहूलियत के अनुसार बँटवारा कर उन भूभागों को आपस में बाँट लेना शुरू किया। इस कारण, कुछ समय पहले तीन महाद्वीपों में जिसका विस्तार था ऐसा ऑटोमन साम्राज्य अब केवल, उसकी शुरुआत जहाँ से हुई थी उस ‘अ‍ॅन्तोलिया’ (तक़रीबन विद्यमान तुर्की देश) प्रान्त तक ही सीमित रह गया। लेकिन चूँकि ऑटोमन साम्राज्य पराभूत हुआ था, इस भाग पर भी, अर्थात् अ‍ॅन्तोलिया की राजधानी काँस्टॅन्टिनोपल पर भी अब दोस्तराष्ट्रों का ही कब्ज़ा था। (दरअसल यही बात ऑटोमन साम्राज्य के मूल तुर्की नागरिकों में ग़ुस्सा उत्पन्न करनेवाली और राष्ट्रभावना प्रेरित करनेवाली साबित हुई, जिस में से ही वहाँ पर बड़ा आन्दोलन शुरू होकर कुछ समय बाद आज के स्वतंत्र तुर्की देश का निर्माण हुआ।)

इस बँटवारे में तत्कालीन सिरियन प्रान्त का (आज का सिरिया तथा लेबॅनॉन) कब्ज़ा फ्रान्स के हाथ में गया था; वहीं, तत्कालीन पॅलेस्टाईन प्रान्त का (हाल का जॉर्डन और गाज़ापट्टी-वेस्टबँक सहित आज का इस्रायल), साथ ही मेसोपोटेमिया (आज का इराक) का कब्ज़ा ब्रिटन के पास आया था।

ब्रिटिशों ने पॅलेस्टाईन में नियुक्त किया हुआ पहला ज्यू हाय-कमिशनर सर हर्बर्ट सॅम्युएल

ब्रिटीश सरकार ने ‘हर्बर्ट सॅम्युएल’ नामक ब्रिटीश ज्यूधर्मीय को, पॅलेस्टाईन के पहले उच्चायुक्त के रूप में नियुक्त किया। गत दो हज़ार सालों में पहली ही बार पॅलेस्टाईन के प्रशासन का कार्य किसी ज्यूधर्मीय के पास आया था। पॅलेस्टाईन के बारे में ब्रिटीश सरकार ने ‘बेलफोर डिक्लरेशन’ के द्वारा दिये गये अभिवचन से मिलताजुलता ऐसा यह कदम होने के कारण ज्यूधर्मियों में उत्साह का माहौल था।

तब तक दूसरी ‘आलिया’ (दुनियाभर के ज्यूधर्मीय जेरुसलेम लौटने की लहर) संपन्न हुई थी और उस समय केवल १ स्क्वेअर किलोमीटर क्षेत्रफल होनेवाली पुरानी जेरुसलेम नगरी को, दुनियाभर से नये से आ रहे इन ज्यूधर्मियों को समा लेने में बहुत दिक्कतें आ रही थीं। ये नये से आये ज्यूधर्मीय पुरानी जेरुसलेम नगरी से सटकर ही अपनी बस्तियों का निर्माण कर रहे थे। लेकिन इन नयीं बस्तियों में एकसमानता नहीं थी। एक प्रदेश से स्थानांतरित हुए ज्यूधर्मीय संभवतः एकसाथ ही रहते थे और वे जहाँ से आते थे, उस उस प्रदेश के घरों जैसीं उनके यहाँ के घरों की विशेषताएँ होती थीं। इस कारण इस सारे निवासीभाग में अनजाने में एक क़िस्म का अस्तव्यस्तपन निर्माण हुआ था।

इन जेरुसलेम लौटे हुए ज्यूधर्मियों का पंजीकरण कर उनके लिए स्थायीस्वरूप में निवास का सुव्यवस्थित रूप में प्रबंध करना संभव हों इसलिए, झायॉनिस्ट ऑर्गनायझेशन ने भूमध्य समुद्र (मेडिटेरियन सी) के तट पर बसे ‘जाफ्फा’ शहर में स्वतंत्र कार्यालय का निर्माण किया था।

इस जाफ्फानगरी से सटकर ही, बाक़ायदा आधुनिक पद्धति से निवासी संकुल बनाकर नया शहर बसाया जा रहा था। अल्प-अवधी में ही वह ज्यूधर्मियों का बड़ा सांस्कृतिक एवं आर्थिक केंद्र बन गया। जिस शहर के सभी नागरिक हिब्रूभाषिक ज्यूधर्मीय हैं, ऐसे क़िस्म का इस्रायल का पहला शहर बनने का सम्मान इस नये शहर को प्राप्त हुआ, जिसका ही नाम आगे चलकर ‘तेल अवीव’ रखा गया।

ब्रिटीश मँडेट अंतर्गत ब्रिटिशों के कब्ज़े में आया हुआ पॅलेस्टाईन का प्रदेश

यहाँ जेरुसलेम पर कब्ज़ा करने के बाद ब्रिटन ने इस समस्या पर ग़ौर कर जेरुसलेम का नगरनियोजन (टाऊन प्लॅनिंग) करने का फैसला किया। एकसरीके प्रकार के और एकसमान दिखनेवाले घर आधुनिक पद्धति से बनवाने की योजना कार्यान्वित की। लेकिन इस पुरातन नगरी का पुरातनपन थोड़ाबहुत तो टिका रहे इस हेतु से, इस आधुनिक पद्धति से बनाये गये सभी घरों की दीवारों में सँडस्टोन का इस्तेमाल किया जानेवाला था

तीसरी आलिया में से प्राय: खेती और सड़कनिर्माण, मक़ाननिर्माण, लकड़ीकाम आदि हुनर होनेवाले युवा ज्यूधर्मीय पॅलेस्टाईन आये।

इसी दौरान, विश्‍वयुद्ध ख़त्म होने के बाद हुई ‘पॅरिस शांतिपरिषद’ की चर्चा के परिणामस्वरूप, पुनः ऐसे आंतर्राष्ट्रीय संघर्ष टालने के लिए और जागतिक शांति बनी रहें इसके लिए, सन १९२० में ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (संयुक्त राष्ट्रसंघ का – ‘युनो’ का पूर्ववर्ती संगठन) का निर्माण किया गया था। इस ‘लीग ऑफ नेशन्स’ ने भी पॅलेस्टाईनसंबंधी ब्रिटन की नीतियों को सन १९२२ में मान्यता दी (‘ब्रिटीश मँडेट’)। इस कारण उसके बाद के कालखंड में पॅलेस्टाईन को ‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ कहा जाने लगा।

लेकिन ‘लीग ऑफ नेशन्स’ यह विश्‍वयुद्धकालीन अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष वुड्रो विल्सन की मूल संकल्पना होकर भी, अमरिकी जनता ने उसे रेफ़रन्ड़म (जनमतसंग्रह) के माध्यम से ठुकरा दिया होने के कारण स्वयं अमरीका इस ‘लीग’ में सहभागी नहीं हुई थी। अतः अमरीका ने अलग से ब्रिटन की पॅलेस्टाईन विषयक नीतियों को मान्यता दी।

इसी बीच, विश्‍वयुद्ध के ख़त्म होने तक रशिया में वहाँ की झारशाही के खिलाफ़ जनमत खौलकर हालात काफ़ी बिगड़ गये थे। कई साल धधक रहे असन्तोष का विस्फोट होकर उसका अंजाम ‘रशियन राज्यक्रांति’ में परिवर्तित हुआ और झारशाही का अन्त होकर वहाँ श्रमिकों की ‘सोव्हिएत’ सरकार सत्ता में आयी। इस कालावधि में वहाँ के और पूर्वी युरोप के स्थानिकों में, वहाँ कई सालों से बड़ी संख्या में बस रहे ज्यूधर्मियों के खिलाढ़ वांशिक विद्वेष की भावना उमड़कर आयी। परिणामस्वरूप सन १९२० से वहाँ से भी कई ज्यूधर्मीय जेरुसलेम लौटने लगे। यह तीसरी ‘आलिया’ मानी जाती है।

इस आलिया में प्रायः खेती और कारीगरी में माहिर होनेवाले युवा ज्यूधर्मीय थे। गत कुछ सालों से, ज्यूधर्मियों के इस्रायल लौटने पर उन्हें खेती और अन्य उद्योगव्यवसाय करना आसान हों इसलिए, डायस्पोरा के ज्यूधर्मियों को इसके बारे में पहले से ही प्रशिक्षण देने का उपक्रम झायॉनिस्ट एवं अन्य ज्युइश नेताओं द्वारा चलाया जा रहा था। आगे चलकर स्वतंत्र इस्रायल के दूसरे राष्ट्राध्यक्ष बने ‘यित्झॅक बेन-झ्वी’ और स्वतंत्र इस्रायल के पहले प्रधानमन्त्री बने ‘डेव्हिड बेन-गुरियन’ ये इसी उपक्रम में से महारत प्राप्त किये नेता थे। ‘हेहालुत्झ’ नामक यह उपक्रम अमरीका में, साथ ही युरोप के २५ से भी अधिक देशों में ज्यूधर्मियों के लिए चलाये जा रहे थे। इस तीसरी आलिया के अधिकांश ज्यूधर्मीय ये इसी उपक्रम में से प्रशिक्षण प्राप्त कर आये थे।

लेकिन हाय कमिशनर हर्बर्ट सॅम्युएल यह हालाँकि ज्यूधर्मीय था, मग़र जैसे ज्यूधर्मियों को लगा था, वैसे उसने ज्युइश लोगों के लिए अनुकूल रवैया नहीं अपनाया। उल्टे – ‘इस मानले में ब्रिटीश सरकार का रवैया निष्पक्षपाती है’ यह अन्यधर्मियों को जताने के लिए उसने दरअसल ज्यूधर्मियों की आलिया पर ‘कोटा पद्धति’ चालू की और अन्य भी कई बन्धन डाले थे। उदाहरण के तौर पर, जॉर्डन नदी की पूर्वीय ओर को स्थायिक होने के लिए ज्यूधर्मियों पर पाबंदी लगायी, लेकिन अरबों के लिए यह पाबंदी लागू नहीं थी। मग़र फिर भी अब जेरुसलेम में ज्यूधर्मियों की संख्या ९० हज़ार से भी अधिक हो गयी थी।

गत लगभग हज़ार सालों से यह प्रदेश मुस्लिमों के कब्ज़े में होने के कारण ज़ाहिर है, यहाँ पर अरब और अन्य मुस्लिम भी सदियों से बहुसंख्या (मेजॉरिटी) में रह रहे थे। अब इतनी बड़ी संख्या में ज्यूधर्मीय जेरुसलेम लौटना शुरू होने के बाद ये अरब स्थानिक लोग उन्हें ‘वे पराये – बाहरी होने की’ भावना से देखने लगे।

साथ ही, इस मामले में ब्रिटिशों का रवैया संदिग्ध होने के कारण, वह पॅलेस्टाईन में कई अगामी संघर्षों का कारण बनता गया।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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