४६. सेल्युसिड्स द्वारा ज्यूधर्मियों के साथ अपमानकारक सुलूक़

टोलेमियों के नियंत्रण में रहकर ग्रीक संस्कृति का ऐसा अतिक्रमण ज्यूधर्मीय सह रहे थे, तभी ग्रीक साम्राज्य के पूर्वी भाग में ‘सेल्युकस’ नामक दूसरे एक सिरियन-ग्रीक सरदार का उदय हो चुका था। उसने वहाँ पर इसवीसनपूर्व ३१५ तक अपना ‘सेल्युसिड’ साम्राज्य स्थापित किया था।

अलेक्झांडर के बाद उसके प्रमुख सरदारों में हुए उसके साम्राज्य के बँटवारे में सेल्युकस के हक़ में बॅबिलॉन तथा उसके आसपास का प्रदेश आया था। लेकिन बहुत ही पराक्रमी एवं महत्त्वाकांक्षी होनेवाले सेल्युकस ने बॅबिलॉन के पूर्व की ओर के, सिंधु नदी तक के ग्रीक साम्राज्य के भाग पर अपना कब्ज़ा जमाया था। सेल्युकस के जीवनकाल में हालाँकि टोलेमी तथा सेल्युसिड साम्राज्यों में मैत्रीपूर्ण संबंध थे, मग़र सेल्युकस की और पहले टोलेमी की मृत्यु के बाद उसके वंशजों में वे संबंध वैसे नहीं रहे। उल्टा अगले लगभग ११० सालों में इन दो साम्राज्यों में छः घमासान युद्ध हुए, जिन्हें ‘सिरियन वॉर्स’ के नाम से जाना जाता है।

लेकिन इतने घमासान युद्ध होकर भी वे किसी एक को निर्णायक रूप में विजयी न कर सके। कभी टोलेमियों का पल्ड़ा भारी हुआ, तो कभी सेल्युसिड्स का! अतः इस कालावधि में ज्युडाह प्रांत का कब्ज़ा कभी टोलेमियों के पास, तो कभी सेल्युसिड्स के पास, इस तरह हस्तांतरित होता रहा।

लेकिन इस कालावधि में ज्यूधर्मियों पर शासन चाहे किसी का भी क्यों न हो, एकाद-दो अपवादों (एक्सेप्शन्स) को छोड़कर किसी भी शासक ने, ज्यूधर्मियों को मिली हुई संपूर्ण राजकीय, धार्मिक, सामाजिक स्वायत्तता ख़ारिज नहीं की। ज्यूधर्मियों ने केवल निर्धारित कर (टॅक्सेस) का भुगतान करना आवश्यक था, बाक़ी उनके अंतर्गत मामलों में ये टोलेमी या सेल्युसिड शासक दख़लअँदाज़ी नहीं करते थे।

अतः इस कालाधि में पॅलेस्टाईन प्रदेश में स्थित ज्यूधर्मियों की जीवन की अस्थिरता भी कम होती जा रही थी और उनकी तरक्की भी हो रही थी। जेरुसलेम से उस दौर में इजिप्त एवं आसपास के प्रदेशों से अनाज, ऑलिव्ह तेल, मछली, मांस, मक्खन, शहद, अंजीर, खजूर आदि चीज़ों की निर्यात बढ़ी थी और इन वस्तुओं की वहाँ पर अच्छी-ख़ासी माँग थी। साथ ही, पॅलेस्टाईन प्रदेश यह मसालों के पूर्व-पश्‍चिम व्यापार का महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती केंद्र बन चुका था।

इस कालावधि में जेरुसलेम में मुख्य धर्मोपदेशक का स्थान सर्वोच्च बन चुका था और इस्रायली लोगों से संबंधित किसी भी बात पर, तत्कालीन शासक उसी के ज़रिये अमल करते होने के कारण मुख्य धर्मोपदेशक एक तरह से ज्यूधर्मियों का राजनीतिक प्रमुख भी बन चुका था।

इस दौर में हालाँकि ज्युडाह प्रांत बारी-बारी से इन दो साम्राज्यों का हिस्सा बनता रहा, मग़र फिर भी इस कालावधि के ख़त्म होने तक धीरे धीरे सेल्युसिड्स का पल्ड़ा भारी होने लगा। पाँचवें युद्ध तक टोलेमियों के कब्ज़े का बहुत सारा प्रदेश सेल्युलिड्स के नियंत्रण में आया था।

इसवीसनपूर्व १९८ तक ज्युडाह प्रान्त भी निर्णायक रूप में सेल्युसिड्स के अधिकार में आया और टोलेमियों का साम्राज्य इजिप्त और बहुत थोड़े आसपास के प्रदेश तक सीमित रह गया।

लेकिन इसी दौरान पास का रोमन संघराज्य भूमध्यसमुद्र (मेडिटेरियन सी) के आसपास के प्रदेश में अपने हाथपैर फैला रहा था। वैसे इसवीसनपूर्व २१४ से ही रोमन संघराज्य के ग्रीक साम्राज्यों के साथ युद्ध बीच बीच में चल ही रहे थे। अब सेल्युसिड साम्राज्य को भी रोमनों के साम्राज्यविस्तार मुहिम की आँच लगने लगी थी। इसवीसनपूर्व १९० में मॅग्नेशिया में हुई लड़ाई में रोमन सेना ने सेल्युसिड्स की सेना का निर्णायक पराजय किया और बहुत बड़ी सालाना फिरौती सेल्युसिड्स पर थोंप दी।

ऐसे में ही इसवीसनपूर्व १८७ में सेल्युकस (चतुर्थ) यह सेल्युसिड साम्राज्य का शासक बन गया। लेकिन अब बढ़ते युद्धखर्च के कारण और इन रोमनों को दी जानेवाली प्रचंड वार्षिक फिरौती के कारण साम्राज्य की आर्थिक स्थिति कुछ डाँवाड़ोल हो चुकी थी। अतः सेल्युकस आय के अन्य स्रोतों को ढूँढ़ ही रहा था। उसीमें उसे ज्यूधर्मियों के जेरुसलेमस्थित होली टेंपल के प्रचंड भांडार एवं संपत्ति के बारे में पता चला। कुछ ग्रीकपरस्त ज्यूधर्मीयों ने ही यह सुझाव दिया था ऐसा कहा जाता है। तब साम्राज्य के रिक्त होते जा रहे खज़ाने की पूर्ति करने के लिए सेल्युकस ने अपने मंत्री हेलिओडॉरस को जेरुसलेम रवाना किया।

लेकिन जेरुसलेम पहुँचने पर इस हेलिओडॉरस को ऐसे कुछ चमत्कारिक अनुभव हुए कि वह टेंपल के भांडार में प्रवेश ही नहीं कर सका, ऐसा यह कथा बताती है।

इस हेलिओडॉरस ने आगे चलकर षड्यंत्र रचाकर सेल्युकस (चतुर्थ) का खून किया और स्वयं सेल्युसिड साम्राज्य को अपने कब्ज़े में कर लिया। लेकिन उसका शासनकाल बहुत ही अल्पजीवी साबित हुआ। सेल्युकस (चतुर्थ) के छोटे भाई ने – अँटिओकस (चतुर्थ) ने फ़ौरन ही हेलिओडॉरस पर कार्रवाई कर उसे मार दिया और खुद राजगद्दी पर बैठ गया। (इसवीसनपूर्व १७५)

यह अँटिओकस (चतुर्थ) सारे सेल्युसिड राजाओं में सबसे क्रूर एवं दुष्ट था, ऐसा बताया जाता है। उसने पहले से ही ज्यूधर्मियों पर वक्रदृष्टि रखी थी। उसने पहले के सभी सम्राटों से भी अधिक तेज़ी से अपने सारे साम्राज्य का ‘ग्रीकीकरण’ (हेलेनायझेशन) करने की शुरुआत की।

जेरुसलेम में इसकी कार्यवाही करने के लिए तो उसने वहाँ की मूलभूत संरचना में ही आमूलाग्र बदलाव लाने की शुरुआत की। ‘ओनियास (तृतीय)’ नामक तत्कालीन मुख्य धर्मोपदेशक के स्थान पर वह ‘जेसन’ नामक ग्रीकपरस्त धर्मोपदेशक को ले आया, हालाँकि उसने यह करने के लिए जेसन से मोटी रक़म भी वसूल की। इस जेसन ने, जेरुसलेम के नागरिकों को ‘सेल्युसिड साम्राज्य के अधिकृत नागरिक’ बना देने की पंजीकरण मुहिम हाथ में ली।

लेकिन अँटिओकस के इरादे कुछ और ही थे। ‘अँटिओकस की मर्ज़ी सँभालने के लिए यदि ये काम किये, तो मैं इस ‘मुख्य धर्मोपदेशक’ पद पर क़ायम हुआ’ ऐसा मानकर चलनेवाले जेसन को अँटिओकस ने ज़ोर का धक्का दिया। उसने मानो इस पवित्र पद की नीलामी ही कर, ‘मेनेलॉस’ नामक एक अधिक ही ग्रीकपरस्त होनेवाले धर्मोपदेशक को, जिसने जेसन से भी अधिक रक़म अँटिओकस को दी, उसे जेसन के स्थान पर बतौर मुख्य धर्मोपदेशक नियुक्त किया!

इसवीसनपूर्व १६७ में अँटिओकस इजिप्त की मुहिम पर चला गया। इस मुहिम के दौरान ही उसकी मृत्यु हुई होने की अफ़वाह फैल गयी। इस असमंजसता के माहौल का फ़ायदा उठाने, भगा दिया गया जेसन तक़रीबन हज़ार सैनिक साथ लेकर, पुनः सत्ता हथियाने जेरुसलेम आया। उसने मेनेलॉस को भाग जाने पर मजबूर कर दिया।

लेकिन यह ख़बर अँटिओकस तक पहुँचते ही, ‘यह सारा माजरा यानी मेरे खिलाफ़ बग़ावत है’ ऐसा मानकर उसने ज्यूधर्मियों को सबक सिखाने की ठान ली और वह फ़ौरन इजिप्त मुहिम को बीच में ही अधूरी छोड़ वापस आने निकला। उसने जेरुसलेम पर हमला कर, मेनेलॉस को ही पुनः मुख्य धर्मोपदेशक के स्थान पर नियुक्त किया। उसके बाद हज़ारों ज्यूधर्मियों को निर्दयतापूर्वक मार दिया गया। जेरुसलेम में आगजनी कर उसे लूट लिया गया। केवल तीन दिनों में ४० हज़ार ज्यूधर्मियों को मौत के घाट उतार दिया गया, वहीं, ८० हज़ार से भी अधिक ज्यूधर्मीय लापता हुए, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। लेकिन यह आपत्ति ख़ासकर केवल ग्रीकीकरण का विरोध करनेवाले ज्यूधर्मियों पर ही आयी थी, ग्रीक संस्कृति का स्वीकार करनेवाले ज्यूधर्मियों को चुनकर बक्ष दिया गया था।

उसके बाद उसने ज्यूधर्मियों को ज्यूधर्मतत्त्वों का पालन करने पर ही रोक लगा दी। इतना ही नहीं, बल्कि होली टेंपल को भी उसने लूट लिया। वहाँ पर चलनेवाली सभी धार्मिक विधियों को उसने बन्द कर दिया। उसीके साथ होली टेंपल में ग्रीक देवताओं की प्रतिस्थापना कर, वहाँ की वेदी पर उन्हें बलि अर्पण करने की शुरुआत की।

पारंपरिक ज्यूधर्मियों की सहनशक्ति का इम्तिहान लेनेवाली यह घटना थी!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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