३९. इस्रायली साम्राज्य का विभाजन


सॉलोमन के बाद उसका पुत्र ‘रेहाबम’ इस्रायल की गद्दी पर बैठा तो सही, लेकिन वह बहुत ही कठोर स्वभाव का था। उसने आते ही जनता पर के विद्यमान कर दुगुने कर दिये और नये कर भी लगाये। साथ ही, अन्य भी कुछ नये स़ख्त क़ानून बनाये।

दरअसल नये कर लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। राज्य का ख़जाना सॉलोमन के कार्यकाल से ही भरभरकर बह रहा था। उसके ख़जाने में सोने की ही सालाना आय इतनी थी कि उसकी तुलना में चाँदी को मिट्टी के समान ही माना जाता था। दूरदेशों से होनेवाला कारोबार दिनबदिन बढ़ता ही जा रहा था। सोना, चाँदी, हस्तिदंत, लकड़ी, विभिन्न धातु, घोड़े आदि जानवर ऐसी अनगिनत वस्तुओं के, इजिप्त से लेकर अरबस्तान तक चल रहे बढ़ते व्यापार के कारण इस्रायल वैभव की एक से बढ़कर एक बुलंदियाँ हासिल कर रहा था।

लेकिन ऐसा होकर भी रेहाबम ने इस्रायली जनता पर नये ज़ुल्मी कर लगाने के कारण जनता में असंतोष फैलने लगा। एक दिन रेहाबम से बात करने के लिए इस्रायल की सभी बारह ज्ञातियों के प्रमुख और प्रतिनिधि इकट्ठा हुए थे, जिन्होंने रेहाबम से उसके स़ख्त रवैय्ये के बारे में स्पष्टीकरण माँगा; तब ‘इससे आगे इससे भी ज़्यादा स़ख्त नीति अपनायी जानेवाली है’ ऐसा जवाब उसने उनको दिया।

यह उद्धत जवाब सुनकर ग़ुस्सा हुए ज्ञातिप्रतिनिधियों ने फिर आपस में सलाहमशवरा करने के बाद रेहाबम के नेतृत्व को ही नकार दिया। बारह में से दस ज्ञातियों के प्रतिनिधियों ने रेहाबम को राजा मानने से इन्कार किया और अपना स्वतंत्र राज्य स्थापन करने की घोषणा की। केवल ज्युडाह तथा बेंजामिन ये दो ज्ञातियाँ ही डेव्हिड-सॉलोमन के घराने के साथ एकनिष्ठ रहीं थीं।

तब तक, इजिप्त में भाग गया जेरोबम भी सॉलोमन की मृत्यु की ख़बर सुनकर कॅनान वापस लौटा था। इस बात का पता लगने पर इन दस ज्ञातिप्रतिनिधियों ने, ‘हम जेरोबम का ही इस्रायल के अगले राजा के रूप में स्वीकार कर रहे हैं’ ऐसा रेहाबम को सूचित किया। इतना ही नहीं, बल्कि इन दस प्रांतों में कर (टॅक्सेस) इकट्ठा करने के लिए आये रेहाबम के अधिकारियों को भी ‘हम रेहाबम को कर नहीं देंगे’ ऐसी खड़ी खड़ी सुनायी। यह बग़ावत कुचल देने के लिए रेहाबम फ़ौरन ज्युडाह एवं बेंजामिन की ज्ञातियों में से बहादूर सैनिकों की सेना का निर्माण करने लगा। लेकिन अपने ही बांधवों पर शस्त्र उठाने के लिए ईश्‍वर की अनुमति नहीं है, ऐसा उसे उसके दरबार के ज्योतिषी के ज़रिये ज्ञात हुआ।

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सॉलोमन के पश्‍चात् एकसंध इस्रायल के हुए दो टुकड़ों में से – उत्तरी भाग ‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ और दक्षिणी भाग ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ कहलाया जाता था।

डेव्हिड द्वारा जिसकी नींव डाली गयी थी और सॉलोमन ने जिसे आगे चलकर वैभव की बुलंदी पर पहुँचाया था, उस एकसंध इस्रायल के अब दो टुकड़ें हो चुके थे। उनमें से उत्तरी भाग को ‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ कहा जाता था; वहीं, दक्षिणी भाग को ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ कहा जाने लगा था। इनमें से इस्रायल के साम्राज्य की राजधानी यह दमास्कस से क़रीबन १०० मील पर होनेवाली समारिया नगरी बनी; वहीं, ज्युडाह के साम्राज्य की राजधानी जेरुसलेम ही क़ायम रही।

लेकिन लेव्ही की ज्ञाति, जिन्हें मूल बँटवारे में अलग प्रान्त नहीं दिया गया था और जो अन्य सभी ज्ञातियों के प्रान्तों में स्थायिक होकर वहाँ धर्मोपदेशकों का-पौरोहित्य का काम करेंगे ऐसा निर्णय हुआ था, उन्होंने ज्युडाह के साम्राज्य में जाने का तय किया। इस कारण जेरोबम ने ग़ुस्सा होकर उन्हें इस्रायल के साम्राज्य में से निकाल बाहर कर दिया।

एकसंध इस्रायली साम्राज्य के हुए ये २ टुकड़ों अगले लगभग दो सौ साल वैसे ही रहे। लेकिन उनमें से पहले लगभग ७०-८० साल दोनों साम्राज्यों में एक के बाद एक जो राजा आये, उन्होंने दूसरे साम्राज्य को अपना अंकित बनाने की कोशिशें जारी रखीं। लेकिन इस पूरे दौर में दोनों साम्राज्यों के राजाओं में से शायद ही कोई कर्तबगार एवं धर्मभीरू साबित हुआ। कुछ अपवादों (एक्सेप्शन्स) को छोड़कर प्रायः सभी भ्रष्टाचारी, पापाचरण करनेवाले ही निकले। कई बार तो नया राजा यह, पुराने राजा के खिलाफ़ बग़ावत करके, कभी कभार तो उसका खून करके ही राजसत्ता काबीज किया हुआ होता था।

कुछ सदियों पहले जब हमेशा की लड़ाइयाँ और आक्रमणों से ऊबकर इस्रायली लोगों ने उनके तत्कालीन मुख्य धर्मोपदेशक सॅम्युएल के पास जब समर्थ केंद्रीय नेतृत्व के लिए अर्थात् राजा के लिए ज़िद पकड़ी थी, तब सॅम्युएल को शायद इन सारी संभावनाओं का अन्दाज़ा होने के कारण शुरू शुरू में वह इस संकल्पना का विरोध ही कर रहा था। साथ ही, ज्यूधर्म की स्थापना और संरचना ही इस प्रकार से की गयी थी कि ईश्‍वर यही उनके राजा-सर्वोच्च नेता होंगे। उसके द्वारा दिखाये मार्ग पर चलने पर, उनके क़ानून का (टोराह का) अचूकता से पालन करने पर और उनपर अटूट श्रद्धा रखने पर, साथ ही, अन्य ज्यूधर्मियों के प्रति बंधुभाव रखने पर, वे ईश्‍वर उनकी अपने आप रक्षा करने ही वाले थे और ईश्‍वर ने भी इस बात की याद समय समय पर ज्यूधर्मियों को करायी थी, ऐसा यह कथा बताती है। मग़र तब भी ज्यूधर्मीय राजा के लिए ज़िद पर अड़े रहने के कारण मजबूरन् ईश्‍वर ने उसके लिए अनुमति दी थी; मग़र इसके बावजूद भी, जब तक सौल आदि राजा का आचरण नेकी का था, तब तक उनकी एवं उनके प्रजाजनों की रक्षा भी की थी, यह हमें इस कथा से मालूम होता है।

राजाओं के गैरवर्तनों के कारण इस्रायली साम्राज्य के हुए ये दो टुकड़ें देखकर और साम्राज्य की हो चुकी यह दयनीय हालत देखकर; साथ ही कई ज्यूधर्मियों को खुले आम ज्यूधर्मतत्त्वों से विपरित काम करते हुए देखकर ज्यूधर्मियों में से बुज़ुर्ग, विचारशील लोगों को अपने दादा-परदादाओं से सुना यह सारा घटनाक्रम याद आ रहा था और वे मायूस होने लगे थे, लेकिन अब क्या फ़ायदा?

इस दौर में इस्रायल के इन दोनों साम्राज्यों में स्थानीय विविधदेवतापूजन जगह जगह पर बढ़ने लगा था। इतना ही नहीं, बल्कि ‘मोलोच’ जैसे स्थानीय उग्र देवता के सामने छोटे बच्चों की बलि चढ़ाने का प्रमाण भी बढ़ने लगा था।

इस सारी नैतिक अधोगति का जो परिणाम होना था, वही हुआ। इस्रायली साम्राज्य के इन दो विभाजित प्रांतों के भी अधिक टुकड़ें होते गये। मोआबी, अमोनी आदि टोलियों के जो प्रांत डेव्हिड-सॉलोमन ने जीत लिये थे, उनमें से कइयों ने – दोनों इस्रायली साम्राज्यों के केंद्रीय नेतृत्वों को कमज़ोर होता देखकर, ब़गावत करके वे इस्रायली साम्राज्य से या ज्युडाह के साम्राज्य में से अलग हो गये। अरामी टोली ने भी बग़ावत कर, वे ‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ से अलग हो गये और उन्होंने दमास्कस को अपनी राजसत्ता की राजधानी बनायी और वे इस्रायलियों के प्रमुख शत्रु बन गये। इन सारी बातों के कारण अब ये दो साम्राज्य अधिक ही टुकड़ों में बिखेरे जा रहे थे।

इस दौर में इन दोनों साम्राज्यों में, ख़ासकर ज्युडाह से भी इस्रायली साम्राज्य में बआल, अ‍ॅस्टार्ट आदि स्थानीय विविधदेवतापूजन जगह जगह पर बढ़ने लगा था। इतना ही नहीं, बल्कि ‘मोलोच’ जैसे स्थानीय उग्र देवता के सामने छोटे बच्चों की बलि चढ़ाने का प्रमाण भी बढ़ने लगा था। कई ज्यूधर्मीय टोराह का भंग करके ज्यूधर्मतत्त्वों से अपने आपको अलग कर रहे थे। इन सारी बातों के चलते उनपर आनेवाले संकटों में वृद्धि होने लगी थी।

साम्राज्य के टुकड़े हालाँकि हो रहे थे, मग़र फिर भी सॉलोमन के कार्यकाल से सुचारू रूप से चलती आयी कारोबारी व्यवस्था अभी तक बिगड़ी नहीं थी। इस कारण, छोटे छोटे टुकड़े हो जाने से सैनिकी ताकत कम हुए, लेकिन आर्थिक ताकत अभी तक बरक़रार रहनेवाले इन साम्राज्यों की ओर यदि आसपास के राजसत्ताओं की लालची नज़रें आकर्षित नहीं होतीं, तो ही ताज्जुब की बात कहलाती!

इस सारे घटनाक्रम के चलते, ईसापूर्व आठवीं सदी ने अपने मध्य से अस्त की ओर कदम रखा था।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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