दूसरे देश से कारोबार करते समय चीन के युआन का इस्तेमाल ना करने की भारतीय व्यापारियों और बैंकों को सूचना

नई दिल्ली – भारतीय व्यापारी और बैंकों ने अन्य देशों के साथ कारोबार करते समय चीन की मुद्रा युआन का इस्तेमाल ना करें, ऐसी सूचना सरकार ने की है। भारत और चीन के संबंधों में तनाव होने से सरकार एवं रिज़र्व बैंक ने यह सूचना की है, ऐसे दावे किए जा रहे हैं। इन गतिविधियों से संबंधित अधिकारियों के दाखिले से इससे संबंधित खबरें प्रसिद्ध हुई हैं। रशिया के कारोबार में युआन का इस्तेमाल होने की ज्यादा संभावना है, इसे ध्यान में रखकर व्यापारी और बैंकों को यह सूचना की गई हैं।

युआन का इस्तेमाललद्दाख के ‘एलएसी’ पर भारत और चीन के बीच बढ़ा तनाव अभी भी खत्म नहीं हुआ है। ‘एलएसी’ का यह विवाद कायम होने के बावजूद भारत और चीन एक-दूसरे से सहयोग कर सकते हैं, ऐसा आवाहन चीन कर रहा हैं। लेकिन, एलएसी पर हज़ारों सैनिक तैनात करके चीन भारत से द्विपक्षीय सहयोग की उम्मीद नहीं रख सकता, ऐसा भारत का कहना हैं। भारत ने समय समय पर चीन को इसका अहसास कराया है। इसके बावजूद चीन की भूमिका में बदलाव नहीं हुआ है। इसी वजह से भारतीय व्यापारी और बैंकों को युआन के इस्तेमाल को लेकर यह सूचना होती दिख रही है। आवश्यकता होने पर युआन के बजाय संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की मुद्रा दिरहैम का इस्तेमाल करें, यह भी भारतीय व्यापारी और बैंकों को सूचित किया गया हैं।

भारत ने किए इस निर्णय का दूसरा पक्ष भी हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर फिसल रहा हैं और ऐसे में मुद्रा के विकल्प के तौर पर चीन के युआन और भारत के रुपये की स्पर्धा शुरू हुई है। रशिया ने काफी पहले से चीन के व्यापार से डॉलर को हटाकर रूबल और युआन में कारोबार करना शुरू किया था। यूक्रेन युद्ध के बाद अमरीका ने लगाए आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से रशिया ने भारत के साथ रुपया-रूबल कारोबार करने का निर्णय किया था। इसका भारत को काफी बड़ा लाभ प्राप्त हुआ हैं और लगभग पचास देशों ने भारतीय बैंकों में ‘वोस्त्रो’ अकाउंट शुरू किए हैं। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर भारतीय रुपया विश्व के सामने विकल्प बनकर उभरता दिख रहा है।

चीन पर अबतक कई बार युआन का मुल्य जानबूझकर कम करके दूसरे देश के साथ कारोबार करते समय बड़ा लाभ उठाने के आरोप लगाए गए थे। साथ ही चीन की मुद्रा से जुड़ी व्यवस्था पारदर्शी नहीं हैं, यह भी कई बार स्पष्ट हुआ था। इसी बीच चीन की अर्थव्यवस्था के सामने फिलहाल काफी बड़े संकट खड़े हुए हैं। निर्यात पर आधारित चीन की अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी से बड़ा नुकसान पहुंच सकता है। साथ ही वर्चस्ववादी एवं विस्तारवादी नीति की वजह से चीन के अपने क्षेत्र के लगभग सभी देशों से गंभीर मतभेद बने हैं। ऐसी स्थिति में अमरिकी डॉलर की जगह चीन का युआन नहीं हथिया सकेगा। कुछ देश युआन का कड़ा विरोध करेंगे, ऐसी संभावना भी सामने आ रही है।

ऐसी स्थिति में भारत का रुपया अधिक विश्वासार्ह, सुरक्षित और डिजिटल कारोबारों के लिए काफी सुलभ होने की वजह से रुपया का स्थान चीन के युआन से भी अधिक मज़बूत होती दिख रही है। ऐसी स्थिति में भारत ने युआन का इस्तेमाल ना करने की अपने व्यापारी और बैंकों को दी हुई सूचना ध्यान आकर्षित कर रही हैं। भारत ने पहले भी चीन के सामने रखे प्रस्ताव में यह कहा था कि, भारत-चीन कारोबार में स्थानिय मुद्राओं का इस्तेमाल हो। लेकिन, भारत के व्यापार से अरबों डॉलर्स कमा रहे चीन ने यह प्रस्ताव तभी ठुकराया था।

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