हाँगकाँग में हिंसक प्रदर्शन

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हाँगकाँग में पिछले हफ़्ते दंगे भड़क उठे। इन हिंसक निदर्शनों के पीछे विभाजनवादियों का हाथ होने का आरोप चीन ने किया है। सन २०१४ में हाँगकाँग में हुए ‘अम्ब्रेला रिव्हॉल्युशन’ के बाद हाँगकाँग में हुए ये सबसे बड़े प्रदर्शन थे। अपने फ़ौलादी परदे के पीछे सबकुछ आलबेल है, ऐसा दर्शानेवाले चीन में धधक रहा असंतोष फिर एक बार इस आंदोलन के ज़रिये दिखायी दिया है।

नववर्ष की रात को हाँगकाँग में नये प्रदर्शनों की शुरुआत हुई। नववर्ष के उपलक्ष्य में यहाँ के बाज़ार सजेधजे थे। उसी समय हाँगकाँग प्रशासन ने यहाँ के माँगकॉक इलाक़े में सड़कों पर के कुछ स्टॉल्स पर कार्रवाई कर इन स्टॉलों को वहाँ से हटा दिया। उसके बाद देखते देखते हाँगकाँग की सड़क पर का चित्र ही बदल गया। हाँगकाँग की पुलीस ने हालाँकि दमनतंत्र का इस्तेमाल कर इस असंतोष को दो ही दिन में काबू में कर लिया, मग़र फिर भी इन दंगों के माध्यम से, हाँगकाँग में जारी रहनेवाली चीन की तानाशाही फिर एक बार दुनिया के सामने आ गयी।

इन हिंसक प्रदर्शनों के बाद कुछ बुकस्टॉलधारक ग़ायब हैं। उन्हें चीन की सुरक्षा यंत्रणाएँ, हाँगकाँग से उठाकर चीन की मुख्य भूमि मे उठा ले गयीं होने के आरोप किये जा रहे हैं। इसपर चिंता ज़ाहिर करते हुए ब्रिटन ने, ‘चीन के साथ की द्विपक्षीय चर्चा में यह मामला उपस्थित किया जायेगा’ ऐसा घोषित किया है। उसके जवाब में, यह चीन का अंदरूनी मामला होने के कारण उसमें दख़लअंदाज़ी करने की ब्रिटन को कोई भी ज़रूरत नहीं है, ऐसा चीन ने सुनाया है।

सन १९९७ में हाँगकाँग चीन के कब्ज़े में आ गया। उससे पहले १५६ वर्ष हाँगकाँग ब्रिटिशों के कब्ज़े में था। हाँगकाँग की जनसंख्या लगभग ७२ लाख है। १८ साल पहले तक ब्रिटिशों के शासन में रहनेवाले इस शहर की कुल जनसंख्या में से तक़रीबन ३७ लाख नागरिकों के पास ब्रिटीश नागरिकत्व भी है। इस कारण हाँगकाँग के दंगों के बाद ब्रिटन के द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त की जाना स्वाभाविक ही है।

दुनिया के महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्रों में से एक रहनेवाले हाँगकाँग में इस तरह के हिंसक आंदोलनों के वाक़ये गत कुछ वर्षों में बढ़ गये हैं। हाँगकाँग को स्वायत्तता मिलें, यहाँ पर जनतंत्र प्रणालि लागू हों, यह माँग यहाँ की जनता काफ़ी समय से कर रही है। लेकिन चीन के दक्षिणी प्रांत, तिबेट तथा मुख्य भूमि में होनेवाले अन्य आंदोलन, कम्युनिस्ट पार्टी की एकाधिकारशाही रहनेवाली चीन की सरकार जिस प्रकार कुचल देती है, वैसा चीन हाँगकाँग में नहीं कर सकता। क्योंकि हाँगकाँग के हालात बहुत ही अलग हैं। यहाँ की गतिविधियों के परिणाम पश्चिमी माध्यमों में फ़ौरन प्रतिबिंबित होते हैं।

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यह शहर ब्रिटिशों के प्रभाव में विकसित हुआ है। ब्रिटिशों के ज़माने में जैसी स्वतंत्रता यहाँ पर थी, वैसी ही स्वतंत्रता की यहाँ की जनता उम्मीद करती है। उन्हें ‘वन कन्ट्री, वन सिस्टिम’ यह चीन की नीति मंज़ूर नहीं है। ब्रिटिशों से हाँगकाँग को अपने कब्ज़े में लेते समय ‘वन कन्ट्री, टू सिस्टिम्स’ इस तत्त्व को चीन ने मंज़ूर किया था। लेकिन अब चीन वहाँ पर ‘वन कन्ट्री, वन सिस्टिम’ कार्यान्वित करना चाहता है। इसपर हाँगकाँग में प्रतिक्रिया उठने लगी है। हाँगकाँगवासीय चीन की ‘वन सिस्टिम’ को अपनायेंगे, यह संभव ही नहीं है।

हाँगकाँग जब ब्रिटिशों के हाथ से चीन के कब्ज़े में पुन: आया, तब चीन की एकाधिकारशाही की तुलना में काफ़ी अलग सी संरचना रहनेवाले हाँगकाँग का अब क्या होगा, इसकी ओर पूरी दुनिया की नज़रें लगी थीं। इस कारण, अन्य प्रांतों में उठनेवालीं इस तरह की आज़ादी की आवाज़ें चीन जिस प्रकार घोटता आया आया है, वैसा हाँगकाँग में करना चीन के लिए संभव नहीं था। वैसा करने से इस आर्थिक केंद्र की बनी-बनायी रचना भी बिेगड़ सकती थी। चीन वैसा नहीं होने देना चाहता था। लेकिन धीरे धीरे चीन ने चुपके से अपनी ‘वन कन्ट्री, वन सिस्टिम’ की नीति पर यहाँ पर अमल करना शुरू किया। पिछले सात-आठ वर्षों में तो चीन यहाँ के प्रशासन पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाता जा रहा है।

सन २०१४ में हुआ ‘अम्ब्रेला रिव्हॉल्युशन’ यह भी चीन की इन गतिविधियों पर हाँगकाँगवासियों ने दी हुई प्रतिक्रिया थी। चीन की मुख्य भूमि में होनेवाले आंदोलन आसानी से कुचल देनेवाला चीन, शांतिपूर्ण तरीक़े से शुरू रहे इन आंदोलनों को दो हफ़्तों तक रोक नहीं पाया था। आख़िर चीन ने इन आंदोलकों पर ज़बरदस्त कार्रवाई की और इस घटना की प्रतिक्रिया आंतर्राष्ट्रीय माध्यमों में उठी। लेकिन इस आंदोलन के बाद चीन ने यहाँ पर अपना प्रशासक लाकर बिठा दिया और जल्द ही चुनाव भी लेने का आश्वासन दिया। लेकिन ये चुनाव उस प्रशासक के नियंत्रण में होनेवाले हैं। अत: इन चुनावों की पारदर्शकता पर प्रश्नचिह्न उपस्थित किया जा रहा है।

इस कारण हाँगकाँग की जनता के दिलों में असंतोष बढ़ता ही चला जा रहा है। कुछ समय पहले, चीन की मुख्य भूमि में से हाँगकाँग घूमने आये एक परिवार के छोटे बच्चे ने बीच सड़क में ही पेशाब किया। उसको लेकर हाँगकाँगवासियों ने, चीन की मुख्य भूमि की जनता की सभ्यता पर इंटरनेट के ज़रिये तीख़ीं टिप्पणियाँ की थी। इसमें से हाँगकाँगवासियों की चीन पर की नाराज़गी व्यक्त हुई थी।

आज की घड़ी में चीन यह दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था है। चीन ने अपनी आर्थिक नीति में ज़मीन-आसमान का बदलाव करके मुक्त आर्थिक नीति अपनायी। परिणामस्वरूप चीन की विद्यमान आर्थिक संपन्नता। लेकिन आर्थिक सुधारों को क्रियान्वित करते हुए भी चीन ने कभी भी राजनीतिक सुधारों को नहीं अपनाया। इस कारण चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की एकाधिकारशाही बरक़रार है। अर्थव्यवस्था मुक्त, लेकिन राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, ऐसी विचित्र परिस्थिति का सामना चीन की जनता कर रही है। ज़ाहिर है, चीन में से भी राजनीतिक स्वतंत्रता, सुधार इनकी माँग की जाने लगी है।

उघूर प्रांत में से सुनायी देनेवालीं स्वतंत्रता की आवाज़ें भी उसी की प्रतिक्रिया है। लेकिन उघोरों के आंदोलनों को कुचल देने के लिए चीन जो तरीक़ा अपनाता है, वैसी कार्रवाई हाँगकाँग में नहीं कर सकता, यह चीन की अड़चन है। इस कारण स्वायत्तता एवं जनतंत्रव्यवस्था की माँग करनेवाले हाँगकाँग के आंदोलनों को अब चीन द्वारा ‘विभाजनवादी’ क़रार दिया जा रहा है। ऐसा करने से कार्रवाई करना और आंदोलन को कुचल देना चीनके लिए आसान बन सकता है।

चिनी नववर्ष की रात हुए प्रदर्शनों पर चीन द्वारा किया गया ‘विभाजनवादी’ यह दोषारोपण यह इसीका उदाहरण है। चीन हाँगकाँग में राजनीतिक सुधार लाने के लिए तैयार नहीं है। इसीलिए हाँगकाँग को कब्ज़े में करते समय चीन द्वारा दिये गए ‘वन कन्ट्री, टू सिस्टिम्स’ इस आश्वासन के स्थान पर अब ज़बरदस्ती से ‘वन कन्ट्री, वन सिस्टिम’ क्रियान्वित की जा रही है। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में हाँगकाँग में धधकनेवाला असंतोष आनेवाले समय में अधिक ही तीव्र होगा। इन आंदोलनों को कुचल देने की कोशिशें करनेवाले चीन के विरोध में और भी तीव्र प्रतिक्रिया हाँगकाँग में उमड़ेगी। हाल ही में हुए हिंसक आंदोलन द्वारा यही बात दुनिया के सामने आ रही है।

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