डॉलर का हथियार की तरह इस्तेमाल करना अमरीका पर ही ‘बूमरैंग’ हुआ है – फ्रेंच विश्लेषक रेनॉद गिरार्ड

पैरिस/वॉशिंग्टन – ‘अमरीका ने राजनीतिक दबाव नीति के साधन के तौर पर डॉलर का हद से ज्यादा इस्तेमाल किया। इस वजह से फिलहाल विश्व के अधिक से अधिक देश अमरीका का आर्थिक वर्चस्व होनेवाली व्यवस्था से बाहर निकल रहे हैं। स्थानिय मुद्राओं का इस्तेमाल करने वाली यंत्रणा अब डॉलर के लिए विकल्प बन रही हैं। रशिया और चीन जैसे देशों ने तो स्वतंत्र पेमेंट सिस्टिम भी विकसित की है’, इन शब्दों में फ्रेंच विश्लेषक रेनॉद गिरार्ड ने डॉलर की गिरावट को लेकर आगाह किया है। अमरिकी विश्लेषक जॉन कार्नी ने भी इसका समर्थन किया है और डॉलर ने आरक्षित मुद्रा का प्राप्त किया स्थान खोना अब अटल होने का दावा किया है। 

रेनॉद गिरार्डरशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर अमरीका और मित्रदेशों ने रशिया पर बड़ी मात्रा में प्रतिबंध लगाए। इसमें अंतरराष्ट्रीय ‘स्विफ्ट’ यंत्रणा का इस्तेमाल करने पर लगाई रोक का भी समावेश था। इसके विकल्प के तौर पर रशिया ने कारोबार में रुबल एवं अन्य प्रमुख मुद्राओं का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव पेश किया था। रशिया के साथ व्यापार कर रहे प्रमुध देशों ने यह प्रस्ताव स्वीकार करके इसका कार्यान्वयन भी शुरू किया। दूसरी ओर चीन ने अपने युआन मुद्रा का हिस्सा बढ़ाने के लिए तेज़ कदम उठाए हैं।

रेनॉद गिरार्डइस पृष्ठभूमि पर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश एवं अमरीका के अभ्यासगुटों ने अमरिकी डॉलर को लेकर गंभीर चेतावनी दी थी। अंतरराष्ट्रीय कारोबार से जुड़ी व्यवस्था में उथल पुथल हो रही हैं और कुछ देश अपने विदेश मुद्रा भंड़ार में डॉलर का हिस्सा कम करने पर सोच रहे हैं, ऐसी चेतावनी मुद्राकोश के वरिष्ठ आर्थिक विशेषज्ञों ने दी थी। ऐसे में विश्व के कुछ केंद्रीय बैंक अब अमरिकी डॉलर की निर्भरता क्या उचित होगी, इसपर सोचविचार करने में जुटे होने के मुद्दे पर भी अमरिकी अभ्यासगुट ने ध्यान आकर्षित किया था। अब विश्व के अन्य देशों के आर्थिक विशेषज्ञ एवं विश्लेषकों ने भी अमरिकी डॉलर के गिरावट का अहसास कराना शुरू किया हैं। फ्रेंच विश्लेषक का यह बयान उसी का हिस्सा बनता हैं।

रेनॉद गिरार्ड‘ले फिगारो’ नामक फ्रेंच अखबार को दिए साक्षात्कार में गिरार्ड ने डॉलर की गिराटव के लिए अमरीका की नीति ही ज़िम्मेदार होने का दावा किया। ‘अमरीका ने पिछले कुछ सालों में डॉलर को लगातार हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इसी नीति के कारण वैश्विक मुद्रा बने डॉलर को झटका देने के अभियान को समर्थन प्राप्त होता रहा। अमरिकी डॉलर का स्थान एक रात में खत्म नहीं होगा। लेकिन, इसके गिरावट की प्रक्रिया को अब रोकना मुमकिन नहीं होगा’, ऐसा इशारा गिरार्ड ने किया।

रशिया-यूक्रेन युद्ध में अमरीका और पश्चिमी देशों ने रशिया के विदेश मुद्रा भंड़ार के अरबों अमरिकी डॉलर्स की राशि कुर्क करने का निर्णय किया था। यह घटना डॉलर के ‘वेपनाइजेशन’ का ही हिस्सा होने के मुद्दे पर फ्रेंच विश्लेषक ने ध्यान आकर्षित किया। इस घटना के बाद विश्व के कई देशों ने अपने विदेश मुद्रा भंड़ार में जमा डॉलर का हिस्सा कम करना शुरू किया, ऐसा गिरार्ड ने कहा। 

फ्रेंच विश्लेषक ने अमरिकी डॉलर को लेकर किए बयान को अमरीका से भी समर्थन प्राप्त हो रहा हैं। अमरिकी विश्लेषक जॉन कार्नी ने भी अब यह चेतावनी दी है कि, विश्व की सबसे मज़बूत मुद्रा बनी अमरिकी डॉलर जल्द ही अपना स्थान खो देगा। यह सिर्फ गंभीर खतर नहीं है, बल्कि अब यह होना अटल है, ऐसा कार्नी ने स्पष्ट किया। 

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