शस्त्र-अस्त्रों की निर्यात में अमरीका अग्रसर

रशियन शस्त्र-अस्त्रों की माँग में भी बढ़ोतरी

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जागतिक बाज़ार में अमरीका और रशिया के शस्त्र-अस्त्रों की बड़ी माँग होने की जानकारी ‘स्टॉकहोम इंटरनॅशनल पीस रीसर्च इन्स्टिट्युट’ (सिप्री) ने प्रकाशित की। आखाती तथा एशियाई देशों में अमरिकी शस्त्र-अस्त्रों की बड़ी माँग होकर, तक़रीबन ३३ प्रतिशत मार्केट अमरीका के कब्ज़े में है। वहीं, दूसरे नंबर पर रहनेवाले रशिया का २५ प्रतिशत मार्केट पर कब्ज़ा होकर, भारत यह सर्वाधिक रशियन शत्र-अस्त्र ख़रीदनेवाला देश है।

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सन २०११ से २०१५ तक की कालावधि में किये गए शस्त्र-अस्त्र व्यवहारों की जानकारी ‘सिप्री’ ने प्रकाशित की। आखाती, एशियाई तथा अफ़्रिकी देश अमरिकी शस्त्र-अस्त्रों की सर्वाधिक ख़रीदारी करते हैं। ईरान का परमाणुकार्यक्रम और गत कुछ वर्षों में आखाती देशों में बढ़े हुए संघर्ष की पार्श्वभूमि पर, शस्त्र-ख़रीदारी में वृद्धि हुई है। गत चार वर्षों में आखाती देशों ने अपनी शस्त्र-ख़रीदारी में ६१ प्रतिशत बढ़ोतरी की है। इनमें सौदी अरेबिया, क़तार तथा संयुक्त अरब अमिरात (युएई) ये तीन आखाती देश सर्वाधिक शस्त्र-ख़रीदारी कर रहे होने की बात स्पष्ट हुई है। सौदी की शस्त्र-ख़रीदारी में २७५ प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है।

वहीं, भारत यह रशिया से सर्वाधिक शस्त्र-अस्त्रों की आयात करनेवाला देश है। भारत की कुल शस्त्र आयात में से तक़रीबन २९ प्रतिशत आयात अकेले रशिया से की जाती है। इसमें, ‘आयएनएस विक्रमादित्य’ जैसी युद्धनौका से लेकर लड़ाक़ू विमानों का भी समावेश है। इसके अलावा पिछले वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रशिया का दौरा कर ‘एस-४००’ इस प्रगत क्षेपणास्त्रभेदी यंत्रणा की ख़रीदारी के सिलसिले में सात अरब डॉलर्स का समझौता किया था।

इसी दौरान, अमरीका एवं रशिया के अलावा चीन, जर्मनी तथा फ़्रान्स के शस्त्र-अस्त्रों की भी माँग बढ़ी है, यह स्पष्ट हुआ है। गत चार वर्षों में चिनी शस्त्र-अस्त्रों की निर्यात दुगुनी हो गयी है। उसीके साथ, चीन का शस्त्र-अस्त्र निर्माण भी चौंका देनेवाला है, ऐसा इस अहवाल में नमूद किया गया है।

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