भारत ने तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष को किया आगाह

संयुक्त राष्ट्रसंघ – तुर्की के महत्वाकांक्षी राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के अपने भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाकर भारत को उकसाया। भारत और पाकिस्तान की आज़ादी के ७५ साल पूरे हुए फिर भी दोनों देशों में शांति और सौहार्दता स्थापित नहीं हुई है। कश्मीर में अभी भी शांति स्थापित नहीं हुई है, यह दुर्भाग्य की बात होने का बयान एर्दोगन ने किया। साथ ही तुर्की के विदेश मंत्री के साथ हुई चर्चा के दौरान हमने सायप्रस का मुद्दा उठाया, यह जानकारी सार्वजनिक करके भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष को करारा तमाचा जड़ा। सायप्रस के विवाद का मुद्दा उठाकर भारत भी तुर्की को घेर सकता है, यही जयशंकर ने दिखाया है।

तुर्की के राष्ट्राध्यक्षअंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट चुका है और इसके लिए पाकिस्तान की कोशिशों को कोई भी देश समर्थन देने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन अब भी पाकिस्तान के पक्ष में कश्मीर का मुद्दा उठा रहे हैं। साथ ही इस्रायल के खिलाफ सख्त भूमिका अपनाकर उन्होंने पैलेस्टिनियों का पक्ष भी लिया था। इसके पीछे इस्लामी देशों का नेतृत्व करने की एर्दोगन की महत्वाकांक्षा होने की बात स्पष्ट हुई थी। लेकिन, इसके लिए उनकी बेताल नीति का बुरा असर सामने आया। पश्चिमी देश और इस्रायल समेत खाड़ी देशों के साथ तुर्की के संबंधों में तनाव निर्माण हुआ और तुर्की की अर्थव्यवस्था पर इसका असर दिखाई दे रहा है।

फिलहाल तुर्की की अर्थव्यवस्था काफी बड़ी समस्या का सामना कर रही है। इसी कारण एर्दोगन को नाक रगड़कर सौदी अरब, यूएई समेत अन्य खाड़ी देश एवं इस्रायल के साथ नए से सहयोग स्थापित करना पड़ा। इसके लिए एर्दोगन का समझौता उनकी महत्वाकांक्षा में चूर-चूर होने की बात दिख रही है। ऐसी स्थिति में कश्मीर का मुद्दा उठाकर एर्दोगन अपना पक्ष संभालने के लिए बेबस कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं। लेकिन, कश्मीर के मुद्दे पर बोलते समय एर्दोगन ने पैलेस्टाईन को नज़रअंदाज़ किया, इसका संज्ञान खाड़ी के माध्यमों ने लिया है।

इसी बीच भारत से एर्दोगन ने कश्मीर पर किए बयान पर जवाब सामने आया है। उनका यह बयान अनावश्यक एवं मुद्दे से जुड़ा ना होने की बात कहकर भारतीय अधिकारियों ने कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने का बयान किया है। तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान करें, ऐसी चेतावनी देकर इन अधिकारियों ने एर्दोगन को अपने देश पर अधिक ध्यान देने की सलाह दी। संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के लिए अमरीका पहुँचे भारतीय विदेशमंत्री ने तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष के बयान को ज्यादा अहमियत दिए बिना उन्हें सटीक शब्दों में आगाह किया।

साल १९७४ में तुर्की ने सायप्रस पर हमला करके इस देश की ज़मीन को हथिया लिया था। यह विवाद आज भी जारी है और इस पर दोनों देश एक-दूसरे को धमका रहे हैं। तुर्की के विदेशमंत्री मेवलूत कावुसोग्लू के साथ हुई चर्चा के दौरान ‘सायप्रस’ का भी समावेश था, यह जानकारी जयशंकर ने सोशल मीडिया पर सार्वजनिक की। यह एक ही बात तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष को आगाह करने के लिए पर्याप्त है, ऐसा भारतीय माध्यमों का कहना है। इसी बीच, तुर्की का नेतृत्व कश्मीर का मुद्दा उठाकर बार-बार भारत से छेड़खानी कर रहा है और ऐसे में भारत ने इस देश को अपनी क्षमताओं का अहसास कराने की ज़रूरत है, ऐसा सैन्य विश्लेषकों का कहना है। इसके लिए कई विकल्प अभी बाकी हैं और इसके लिए भारत को विशेष कष्ट उठाने की ज़रुरत नहीं है, यह दावा इन विश्लेषकों ने किया था।

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