तिरुचिरापल्ली भाग-२

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तिरुचिरापल्ली के इतिहास तथा वर्तमान में ‘रॉक फोर्ट’ का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। रॉक फोर्ट की उम्र कई करोड़ों वर्षों की है, ऐसा कहा जाता है। इसीलिए त्रिची की इस भूमि का रॉक फोर्ट यह एक अभिन्न हिस्सा ही है।

चलिए, तो इसी रॉक फोर्ट के साथ त्रिची के इतिहास के सफ़र को जारी रखते हे।

गत लेख के अन्त में हमने देखा कि पंद्रहवी सदी में त्रिची पर ओरिसा के शासक रहनेवाले राजा की सत्ता स्थापित हुई। इसी त्रिची के आसपास के इला़के में लगभग सोलहवीं सदी तक इस शासक और दक्षिणी शासक इनके बीच में कई जंग भी लड़े गये। इस दौरान इस प्रदेश को रणभूमि का रूप ही प्राप्त हुआ होगा।

विजयनगर साम्राज्य तथा अँग्रेज़ों के शासनकाल में इस रॉक फोर्ट पर स्थित क़िले का उपयोग किया गया। क्योंकि रॉक फोर्ट की ऊँचाई के कारण यहाँ से दुश्मन की गतिविधियों पर नज़र रखना और उसपर आक्रमण करना आसान था।

साधारणत: अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध तक त्रिची का प्रदेश मदुराई के नायकों के अधिपत्य में था। इसी दौरान यहाँ पर कई युद्ध भी हुए।

त्रिची पर हालाँकि कई राजवंशो ने राज किया, मग़र तब भी इस शहर को राजधानी का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ। जी हाँ, यह बात सच है कि आज की त्रिची का ही एक हिस्सा रहनेवाला ‘उरयुर’ काफ़ी लंबे अरसे तक राजधानी बना रहा।

सत्रहवीं सदी के पूर्वार्ध में त्रिची को राजधानी का दर्जा मिल गया ओैर अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध तक वह उन शासकों की राजधानी का शहर बना रहा।

मदुराई की मीनाक्षी नामक रानी की मृत्यु के साथ ही त्रिची पर रहनेवाली मदुराई के नायकों की हुकूमत भी समाप्त हो गयी। इसके बाद चंद साहिब ने अठारहवीं सदी के मध्य में त्रिची पर राज किया और उसके शासन का अन्त तंजावर के मराठों ने किया।

आख़िर भारत के अन्य प्रदेशों की तरह यहाँ पर भी अँग्रेज़ों ने अपना जाल बिछाया और इसपर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने इसका नाम बदलकर ‘त्रिचिनोपोली’ कर दिया। अन्त में, भारत की आज़ादी के साथ साथ अँग्रेज़ हुकूमत का भी अन्त हो गया और फिर त्रिची यानि तिरुचिरापल्ली यह तमिलनाडु का एक शहर बन गया।

आज का त्रिची यह तमिलनाडु के एक औद्यौगिक शहर के रूप में जाना जाता है, लेकिन औद्योगिक विकास के साथ साथ इस शहर ने विद्यादान के क्षेत्र में भी अपनी मुँहर लगायी हुई है।

त्रिची के इतिहास पर एक नज़र तो हमने डाल दी। आइए, अब त्रिची की सैर करते हैं।

तिरुचिरापल्ली, इतिहास, अतुलनिय भारत, रॉक फोर्ट, तमिलनाडू, भारत, भाग-२सबसे पहले चलते हैं, रॉक फोर्ट। त्रिची की ज़मीन के साथ जिसका अटूट रिश्ता है और जो इतिहास का एक अविभाज्य अंग है, ऐसा यह रॉक फोर्ट। पुराने समय में फ़ौजी दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण था, वह उसपर रहनेवाले क़िले की वजह से ओैर साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि से भी वह महत्त्वपूर्ण ही रहा है, वह उसपर स्थित मन्दिर के कारण।

हालाँकि आज रॉक फोर्ट पर स्थित क़िला सुस्थिति में नहीं है और इसीलिए कुछ अवशेषों के अलावा वहाँ पर कुछ दिखायी नहीं देता है। अत एव हम सीधे चलते हैं, रॉक फोर्ट के माथे पर। लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए हमें लगभग ४२० सीढ़ियाँ पार करनी होगी और इसीलिए हम बड़े आराम से एक एक सीढ़ी चढ़ते चढ़ते ऊपर तक जायेंगे। जैसे जैसे हम ऊपर चढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे त्रिची का अधिक से अधिक हिस्सा हमें दिखायी देते रहता है।

आइए, तो चढ़ना शुरू करते हैं। रॉक फोर्ट की सीढ़ियों को पत्थरों में से ही तराशा गया है और वह भी बहुत ही सुव्यवस्थित रूप से। चढ़ने की शुरुआत करते ही हमें रॉक फोर्ट की तलहटी में स्थित ‘तेप्पाकुलम्’ इस झील के दर्शन होते हैं और ‘माणिक्क विनायक’ के भी।

दर असल त्रिची यह उष्ण जलवायुवाला प्रदेश है। रॉक फोर्ट की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए धीरे धीरे घटते हुए तापमान को हम महसूस कर सकते हैं।
अब इतने बड़े ८३ मीटर्स की ऊँचाईवाले इस शिलाखंड पर चढ़कर जाने के लिए हमें कुछ देर तो लगेगी ही। चलिए, आख़िर हम माथे तक पहुँच ही गये।

माथे पर स्थित इस मंदिर का नाम है, ‘उच्चि पिल्लयर कोविल’, जिसे ‘थायुमनस्वामी कोविल’ भी कहा जाता है। त्रिचीवासी उसका उल्लेख ‘रॉक फोर्ट टेंपल’ इस संक्षिप्त नाम से भी करते हैं।

इस रॉक फोर्ट का शिलाखंड हालाँकि विशाल एवं कठिन दिखायी देता है, मग़र कलाप्रेमी पल्लव राजाओं ने इसकी कठिनता को सुन्दरता में ढाल दिया है। यह पल्लव राजवंश मूलत: ही बहुत ही कलाप्रेमी तथा सुन्दरता की दृष्टि रखनेवाला था। इसी तमिलनाडु राज्य में रहनेवाला ‘महाबलिपुरम्’ नामक सुविख्यात मंदिरसमूह, जो शिल्पकला की अपने आप में एक मिसाल माना जाता है, उसका निर्माण भी इसी राजवंश के शासनकाल में किया गया।

पल्लव राजाओं ने इस शिलाखंड में दो गुङ्गा मन्दिरों (केव्ह टेंपल्स) को भी पत्थर को तराशकर बनाया है। इनका समय लगभग छठी और सातवी सदी कहा जाता है। इन गुफ़ा मंदिरों में उस ज़माने की बेहतरीन शिल्पकृतियों को हम देख सकते हैं। इतनी सदियों बाद भी सुस्थिति में रहनेवाले इन गुङ्गा मन्दिरों को तथा उनमें स्थित शिल्पकृतियों को देखने के बाद पल्लव राजाओं की उस विकसित शिल्पकला की सराहना करना तो स्वाभाविक ही है। क्योंकि धूप, हवा, बरसात इन सबका मुक़ाबला करते हुए अडिगतापूर्वक खड़े रहनेवाले इस रॉक फोर्ट की शिल्पकला की सुन्दरता आज भी, इतने सालों बाद भी बरक़रार रही है। आइए, अब चलते हैं, रॉक फोर्ट के माथे पर।

अब तक हमने रॉक फोर्ट के माथे पर बसे मन्दिरों के सिर्फ़ नाम ही जाने हैं। कुछ देर पहले ही हमने रॉक फोर्ट पर स्थित ‘मन्दिर’ ऐसा कहा और अब हम मन्दिरों की बात कर रहे हैं। ऐसा क्यों?

तो रॉक फोर्ट के माथे पर स्थित यह मन्दिर दो मन्दिरों का समूह है। ये दोनों मन्दिर रॉक फोर्ट के माथे पर ही हैं, लेकिन अलग अलग स्तर पर।

तिरुचिरापल्ली, इतिहास, अतुलनिय भारत, रॉक फोर्ट, तमिलनाडू, भारत, भाग-२इनमें से ‘थायुमनस्वामी’ का मन्दिर यह भगवान शिवजी का मन्दिर है, वहीं ‘पिल्लयर’ यह गणपतिजी का मन्दिर हैं।

इन मन्दिरों के निर्माणकर्ता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। इनकी नींव रखनेवाले के संदर्भ में भले ही जानकारी न भी मिलती हो, लेकिन मदुराई के नायकों ने इनका निर्माणकार्य पूरा किया, ऐसा कहा जाता है।

थायुमनस्वामी मन्दिर में शिवजी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और उनके साथ देवीमाता पार्वतीजी भी हैं। पिल्लयर यह गणेशजी का एक छोटा सा सुन्दर देवालय हैं।

इस रॉक फोर्ट के माथे पर से अब हमें पूरा त्रिची शहर तो दिखायी दे ही रहा है और साथ ही दूर से बहनेवाली कावेरी नदी भी। यहाँ से कावेरी और कावेरी के तट से रॉक फोर्ट, इस लुभावने नज़ारे को आज तक कइयों ने देखा होगा, त्रिची के शासकों ने भी।

हमारे भारत वर्ष में देवी-देवताओं की कई कहानियाँ प्रचलित रहती हैं। साथ ही जनमानस में प्रसृत लोककथाओं का प्रभाव भी इतना गहरा रहता है कि पीढ़ी दर पीढ़ी वे आगे बढ़ती रहती हैं।

‘थायुमनस्वामी’ के संदर्भ में भी एक लोककथा प्रचलित है।

एक व्यापारी की रत्नावती नाम की पत्नी शिवभक्त थी, जिसका प्रसवकाल का़ङ्गी क़रीब आ चुका था। इस दौरान उसकी देखभाल करने के लिए उसकी माँ अपने गाँव से रत्नावती के घर आने निकल तो पड़ी; लेकिन बाढ़ के कारण कावेरी उफ़ान पर थी, जिसे पार करना उसके लिए मुमक़िन नहीं था। तो वहाँ रत्नावती का प्रसव समय बहुत ही क़रीब आ चुका था। तब उस मुश्किल की घड़ी में साक्षात् भगवान ही उसकी सहायता करने दौड़े चले आये। इस कहानी में ऐसा भी कहा जाता है कि रत्नावती की माँ जब तक रत्नावती के घर नहीं पहुँची, तब तक उसकी माँ की भूमिका में भगवान उसके यहाँ रहे। रत्नावती की माँ के पहुँचने के बाद इस बात का पता चला। भगवान की इस अगाध लीला को जानकर वे सभी सद्गदित हो गये और भगवान शिवजी ने उन्हें पार्वती सहित दर्शन दिये।

यहाँ स्वयं भगवान ने अपने भक्त के लिए उसकी माँ की भूमिका निभायी और इसीलिए उन्हें ‘थायुमनस्वामी’ यानि ‘मातृरूपी भगवान’ कहा जाता है।

‘थायुमनस्वामी’ मंदिर के सभागार के १०० स्तंभ हैं। इस मन्दिर के विमान को यानि शिखर को स्वर्ण के पत्रे से सुशोभित किया गया है। दिन में सूरज की रोशनी में दमकनेवाला यह शिखर रात में दीपकों की रोशनी में भी जगमगता है।

आज रॉक फोर्ट पर स्थित क़िला सुस्थिति में नही है। लेकिन एक समय ऐसा था, जब इसी क़िले का उपयोग यहाँ के शासकों की सेना किया करती थी। इससे यह कहा जा सकता है कि यह क़िला काफ़ी लंबे अरसे तक सुस्थिति में था।

रॉक फोर्ट के दोनों मन्दिरों के दर्शन तो हमने कर लिये। अब रॉक फोर्ट उतरने का व़क़्त हो चुका हैं। लेकिन रुकिए, यहाँ से दूर कुछ महत्त्वपूर्ण बात दिखायी दे रही है। उसे देखने के लिए रॉक फोर्ट से नीचे उतरकर सीधे वहीं चलते हैं।

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