जुनागढ़ भाग-७

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सोमनाथ के अतीत का गवाह है, सोमनाथ मंदिर के सामने फैला हुआ अथाह सागर। हर बार उसने सोमनाथ मंदिर के पतन एवं पुनर्निर्माण को देखा है और ऐसा सात बार हुआ है। कहा जाता है कि सोमनाथ मन्दिर के सामने का यह समुद्र ठेंठ अंटार्क्टिका तक फैला हुआ है। यानि सोमनाथ का समुद्री तट और अंटार्क्टिका खंड इनके बीच में ज़मीन का हिस्सा नहीं है और यह जानकारी सोमनाथ मंदिर का समुद्र से बचाव करने के उद्देश्य से बनायी गयी एक दीवार पर संस्कृत में लिखी गयी है।

सोमनाथ मंदिर का कुल सात बार पुनर्निर्माण किया गया। हर बार मन्दिर की भग्नावस्था के लिए कोई न कोई वजह अवश्य थी। आइए, हम इतिहास के उन पन्नों को ज़रा पलटकर देखते हैं। चंद्र द्वारा स्वर्ण से बनाया गया मंदिर, रामायणकाल में चाँदी से बनाया गया मंदिर और श्रीकृष्ण द्वारा चन्दन से बनाया गया मंदिर और उसके बाद पत्थरों से बनाया गया मंदिर इस इतिहास को तो हम देख ही चुके हैं। यह पत्थरों से बनाया गया सोमनाथ मंदिर जब काल के प्रभाव के कारण जीर्ण हो गया, तब सातवीं सदी में गुजरात के वलभी के यादव राजा ने उसका पुनर्निर्माण किया। यह सोमनाथ मंदिर के ज्ञात इतिहास का दूसरा मंदिर माना जाता है। स्थापत्य की दृष्टि से बहुत ही सुंदर पद्धति से इसका निर्माण किया गया था।

उसके बाद सोमनाथ मंदिर की भग्नावस्था की वजह कुछ और ही थी। इस कालखंड के पश्‍चात् विदेशी आक्रमणों का सिलसिला शुरू हुआ और सोमनाथ मंदिर को भी इन आक्रमणों का सामना करना पड़ा।

८वीं सदी में अरबों द्वारा किये गये आक्रमण में सोमनाथ का विध्वंस हुआ। लेकिन उसके पश्‍चात् ९वीं सदी में लाल रंग के पत्थरों से इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया और यह पुनर्निर्माण किया नागभट-द्वितीय नामक प्रतिहार वंश के राजा ने।

एक अरब भू-वैज्ञानिक द्वारा लिखा गया सोमनाथ मंदिर का वर्णन गत भाग में हम यह पढ़ ही चुके हैं। उस में हमने सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में बिना किसी भी सहारे के विद्यमान मूर्ति के बारे में पढ़ा था। इस विषय में और कुछ रोचक जानकारी प्राप्त हुई है। सोमनाथ मंदिर पर हुए किसी एक आक्रमण के पश्‍चात् आक्रामक इस बात को देखकर भौंचके रह गये और उन्होंने इस मूर्ति के किसी भी सहारे के बिना खड़े होने के राज़ को जानने की ठान ली। उन्होंने मूर्ति की चारों ओर से, ऊपर-नीचे सभी दिशाओं में ख़ोज की और मूर्ति को सहारा देनेवाली किसी वस्तु का सुराग ढूँढ़ने की कोशिश की। लेकिन मूर्ति के लिए ऐसा कोई भी सहारा उस गर्भगृह में मौजूद नहीं था। फिर इसका राज़ क्या हो सकता है? तब उनमें से किसी के दिमाग में यह बात आ गयी कि कहीं मंदिर के शिखर पर मॅग्नेट के पत्थर तो नहीं लगाये गये हैं? और कहीं यह मूर्ति लोहे की तो नहीं है? शिखर के इन पत्थरों का और मूर्ति का कुछ इस तरह मेल किया गया होगा जिससे कि वह मूर्ति बिना किसी सपोर्ट के गर्भगृह में स्थिर रहे। इस बात की ख़ातिरजमा करने के लिए शिखर पर स्थित विशिष्ट दिशा के पत्थरों को दूर हटाया गया और ताज्जुब की बात यह थी कि उन पत्थरों के निकाले जाते ही वह मूर्ति धरती पर विराजमान हो गयी।

यहाँ पर अजूबा, प्रशंसा इन संमिश्र भावनाओं के साथ ही एक महत्त्वपूर्ण बात पर ग़ौर करना चाहिए कि उस जमाने में भारतीय वास्तुशास्त्र कितना विकसित रहा होगा।

तो इस रोचक जानकारी के बाद फिर से एक बार सोमनाथ के इतिहास की ओर रुख करते है।

११वीं सदी में सोमनाथ फिर एक बार आक्रमण के चपेट में आ गया। इस बार आक्रामक था, गझनी का महमूद। ऐसा बताया जाता है की इसने सोमनाथ को ध्वस्त करने के साथ साथ यहाँ पर काफ़ी लूटपाट भी की। लेकिन इससे एक बात स्पष्ट होती है कि ९वीं सदी में किये गये पुनर्निर्माण के पश्‍चात् सोमनाथ मंदिर फिर एक बार शान और शोहरत की बुलंदी पर विराजमान हो चुका था और उसकी यह शान और शोहरत ११वीं सदी तक कायम थी।

इस विध्वंस के बाद १२वीं सदी में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कुमारपाल नामक अणहिलपाटण के राजा द्वारा किया गया। इसके पश्‍चात् एक ऐसा दौर आया जब हर सदी में एक बार सोमनाथ का विध्वंस होता रहा और अगली सदी में उसका पुनर्निर्माण भी।

१३वीं सदी का अंतिम कालखंड फिर एक बार सोमनाथ के ध्वंस का साक्षी बना। इस बार अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से सोमनाथ ध्वस्त हो गया। इतिहास बताता है कि सोमनाथ पर हुए हर एक आक्रमण के समय वहाँ की अनगिनत संपत्ति को लूटने के साथ साथ हजारों बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा गया। यानि पिछले कई आक्रमणों के ज्ञात इतिहास के बाद भी इस मंदिर के हर एक पुनर्निर्माण के समय आक्रामकों से इसकी रक्षा करने की दृष्टि से कोई ठोस उपाययोजनाएँ की गयीं या नहीं, इस बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। सागर से अर्थात् सागर के रौद्र रूप से इस मंदिर की रक्षा करने के उद्देश्य से किये गये उपायों की जानकारी प्राप्त होती है मगर आक्रामकों से उसे बचाने की दृष्टि से किये गये किसी भी प्रकार के उपायों की जानकारी प्राप्त नहीं होती।

१४वीं सदी का पूर्वार्ध सोमनाथ के लिए फिर एक बार खुशियाँ लेकर आया। सौराष्ट्र का महिपाल देव नामक चुडासामा वंश का राजा इस बार इस मंदिर का पुनर्निर्माणकर्ता था।

इसके पश्‍चात् भी तकरीबन २ बार इस मंदिर पर आक्रमण हुए और मंदिर ध्वस्त हो गया। इनमें से एक आक्रमण के बाद तो आक्रामकों ने सोमनाथ मंदिर की सूरत ही बदल ड़ाली। लेकिन इन आपत्तियों से भी सोमनाथ मंदिर पुन: उभरा और गत कई बार की तरह सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।

ये सोमनाथ मंदिर पर हुए आखिरी दो आक्रमण थें। इनमें से दूसरे आक्रमण के पश्‍चात् १८वीं सदी में सोमनाथ का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होळकरजी द्वारा किया गया। उन्होंने सोमनाथ के मूल मंदिर के सामने नये सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया।

आगे चलकर यह मंदिर भी जीर्ण हुआ। इसी दौरान भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई और इस स्वतंत्र भारत में सोमनाथ मंदिर का निर्माण उसके मूल स्थान पर किया गया।

भारत की स्वतंत्रता के बाद कुछ रियासतें स्वतंत्र भारत में शामिल होने के लिए राज़ी नहीं थीं। ये रियासतें स्वतंत्र भारत में कुछ नाटकीय ढ़ंग से शामिल हुई, इनमें से एक थी जुनागढ़ की रियासत। इस विलीनीकरण के दौरान वहाँ पर आये सरदार वल्लभभाई पटेल, जब प्रभासपाटण के सागरतट पर आये तब उन्होंने सोमनाथ मंदिर की जीर्ण अवस्था को देखते हुए उसके पुनर्निर्माण का निश्‍चय किया। नवम्बर १९४७ में सोमनाथ मंदिरका पुनर्निर्माण करने का निश्‍चय किया गया और इसी निश्‍चय से यह आज का सोमनाथ मंदिर, जो ७वी बार बनाया गया है, उसे हम देख रहे हैं।

देखिए बातों बातों में हम ठेंठ मंदिर के सामने ही आ खड़े हो गये।

चालुक्य वास्तुशैली में बनाया गया यह वर्तमान सोमनाथ मंदिर, ‘कैलाश महामेरु प्रासादम्’। अथक परिश्रमों से इसका निर्माण किया गया है। इस मंदिर के निर्माण में मूल मंदिर के पत्थरों जैसे पत्थरों का ही इस्तेमाल किया गया है। १९५१ में मंत्रों की गूँज में यहाँ पर शिवलिंग की प्रतिष्ठापना की गयी।

उअह वर्तमान मंदिर भी बड़े कलात्मक ढ़ंग से बनाया गया है। इसके प्रवेशद्वार तथा दर्शनी भाग में देवताओं की मूर्तियाँ तराशी गयी हैं।

शिखर, गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप इस प्रकार वर्तमान मंदिर की रचना की गयी है। यह मंदिर तीन मंज़िला है। यहीं पर मंदिर के इतिहास को चित्रों के माध्यम से जीवित किया गया है। महाभारत से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक इस मंदिर से जुड़ी प्रमुख घटनाओं को भी दर्ज़ किया गया है।

मंदिर के विशाल सभामंडप में भी अलंकृत स्तंभ हैं और साथ ही मंदिर की छत भी देवताओं की मूर्तियों से अलंकृत हैं। अब जिनके दर्शन करने हम यहाँ पर आये हैं, उनके दर्शन करने गर्भगृह की ओर चलते हैं। इस गर्भगृह में सोमनाथजी के शिवलिंग की प्रतिष्ठापना की गयी है।

यह शिवलिंग काले रंग के पाषाण से बना हुआ है और पीछे उन्हीं का चांदी का मुखौटा है और चाँदी के छत्रधारी शेष भी हैं। इस शिवलिंग के मात्र दर्शन से आनंद, पवित्रता इन बातों का एकसाथ ही एहसास होता है। इस गर्भगृह में अन्य देवता भी विराजमान हैं।

कहा जाता है कि ‘कैलास महामेरु प्रासादम्’ इस नाम से जाने जानेवाले इस मंदिर की तरह एक भी मंदिर पूरे भारतवर्ष में कहीं पर भी गत ८०० सालों में नहीं बना है।

शिवजी के दर्शन कर प्रसन्न मन के साथ बाहर निकलते ही सामने अथाह सागर दिखायी देता है। इस सागर की आवाज़ सोमनाथ मंदिर के आसपास घूमते हुए भी सुनायी देती है।

चलिए, सोमनाथ के दर्शन करने के बाद अब लौट चलते है। आते समय एक सवाल मन में लेकर हम निकल पड़े थे कि सोमनाथ का इतनी बार विध्वंस होने की वजह क्या हो सकती है? सोमनाथ के इतिहास में ही आपको इस सवाल का जवाब मिल गया होगा, ऐसी आशा है। यदि यह सागर बोल पाता तो वह खुद ही इस सोमनाथ मंदिर की शान और सुंदरता को अपने मुख से बयान करता।

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