तिरुचिरापल्ली भाग-१

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गाँव हो या शहर, वहाँ लोग और विभिन्न वास्तुएँ रहती ही हैं। लेकिन कुछ शहरों या गाँवों को उनकी अपनी एक ख़ास पहचान देनेवाली कुछ विशेषताएँ होती हैं। ये विशेषताएँ उन गाँवों या शहरों के साथ जन्म लेती हैं या कभी उसके बाद भी; लेकिन ये विशेषताएँ उन गाँवों या शहरों के साथ उनके भूतकाल से वर्तमानकाल में सफ़र करती हैं। वे विशेषताएँ उन स्थानों से कुछ इस प्रकार जुड़ी हुई होती हैं कि उस स्थान का नाम लेते ही वह विशेषता आँखों के सामने आ जाती है या उस विशेषता को देखते ही उस गाँव या शहर की याद आती है। अब भूमिका बाँधने में ही व़क़्त ज़ाया न करते हुए ऐसे ही एक शहर की ओर ही रुख करते हैं।

‘तिरुचिरापल्ली’, तमिलनाडू राज्य में बसा एक शहर। इस शहर में प्रवेश करते ही एक पर्वत के आकार का एक बड़ा सा शिलाखंड दिखायी देता है, जो ‘रॉक फोर्ट’ इस नाम से जाना जाता है। समतल भूमि पर स्थित इस ‘तिरुचिरापल्ली’ शहर का यह ‘रॉक फोर्ट’ देखते ही ध्यान आकर्षित कर लेता है। इसी के माथे पर से इसके ईर्दगिर्द बसे ‘तिरुचिरापल्ली’ शहर और इस शहर का साथ निभानेेवाली कावेरी नदी का अनोखा नज़ारा दिखायी देता है।

चलिए, फिर ‘रॉक फोर्ट’ की जान पहचान से शुरू हुए इस सफ़र को जारी रखते हैं।

कहा जाता है कि यह ‘तिरुचिरापल्ली’ शहर प्राचीन समय से बसा हुआ है। यह शहर मदुराई जितना ही प्राचीन माना जाता है। इसापूर्व दूसरी सदीं में ‘टोलेमी’ ने इस शहर का ज़िक्र किया है।

‘तिरुचिरापल्ली’ नामक यह शहर कई बार ‘त्रिची’ या ‘तिरुचि’ इस नाम से भी जाना जाता है। किसी शहर के नाम के बारे में कई कथाएँ, लोककथाएँ एवं मत-मतांतर भी प्रचलित रहते हैं। अब तिरुचिरापल्ली की ही बात लिजिए। किसी मत के अनुसार ‘त्रिशिरा’ और ‘पल्ली’ इन दो शब्दों से ‘तिरुचिरापल्ली’ यह नाम बना हुआ है। ‘त्रिशिरा’ यह पुराणों में वर्णित एक राक्षस था। उसे तीन सिर थे। आज जहाँ यह ‘तिरुचिरापल्ली ’शहर बसा हुआ है, वहीं पर शिवजी ने ‘त्रिशिरा’ राक्षस का नाश किया था। पल्ली शब्द का अर्थ है – गाँव/शहर। ऐसा स्थान जहाँ परशिवजी ने ‘त्रिशिरा’ नामक राक्षस का वध किया और वह स्थान आगे चलकर ‘तिरुचिरापल्ली’ इस नाम से जाना जाने लगा।

कुछ लोग इस शहर के नाम का संबंध तीन शिखरों से जोड़तें हैं। कहा जाता है कि किसी समय यहाँ पर तीन शिखर थे, जो क्रमश: शिवजी, पार्वतीजी और विनायक (गणेशजी) इनके स्थान माने जाते थे और इन्हीं तीन शिखरों के कारण यह स्थान ‘त्रि-शिखरम्’ या ‘तिरिसिर्पुरम्’ नाम से जाना जाने लगा। आगे चलकर इसका नाम ‘तिरुचिरापल्ली’ हो गया।

वहीं एक राय यह भी है कि ‘तिरुचिरापल्ली’ यह नाम तीन शब्दों से बना हुआ है। ‘तिरु’, ‘चिरा’ और ‘पल्ली’। चिरा नामक कोई महात्मा यहाँ विद्यादान का कार्य करते थें और इसी वजह से यह स्थान ‘चिरापल्ली’ नाम से जाना जाने लगा, जिसके पूर्व ‘तिरु’ यह सम्मानदर्शक शब्द प्रयुक्त कर इस स्थान का नाम ‘तिरुचिरापल्ली’ हो गया।
कुछ विद्वानों की राय में ‘तिरुचिरापल्ली’ इस नाम के दो भिन्न आरंभ हैं। पहली राय के अनुसार ‘चिरुत्-पल्ली’ का अर्थ है- छोटासा गाँव और आगे चलकर इसी ‘चिरुत् पल्ली’ का ही रूपांतरण तिरुचिरापल्ली में हुआ। दूसरी राय में ‘तिरु-स्सिल-पल्ली’ के अपभ्रंश से तिरुचिरापल्ली यह शब्द बना है। तिरु-स्सिल-पल्ली का अर्थ है – पवित्र शिला (पर्वत) जहाँ है, ऐसा शहर।

हमेशा कहा जाता है कि ‘नाम में क्या है’, लेकिन कभी कभार किसी नाम में कुछ रोचक बातें छिपी हुई होती हैं।
तो ऐसे इस प्राचीन समय से बसे शहर को हम अपनी सहूलियत के लिए इसके बाद ‘त्रिची’ इस नाम से संबोधित करेंगे।

अँग्रेज़ों के राज में उन्होंने उनकी सहूलियत के लिए इस शहर का नामकरण ‘त्रिचीनोपोली’ कर दिया।

इस शहर पर चोळ राजवंश, पांड्य राजवंश, पल्लव राजवंश इन्होंने विभिन्न काल में राज किया। साथ ही दिल्ली सल्तनत, मदुराई सल्तनत, विजयनगर के शासक, मदुराई के नायक और अँग्रे़ज़ों का भी यहाँ राज रहा।

कहा जाता है कि कालगणना की शुरुआत होने के २ लाख वर्ष पूर्व ही यहाँ पर लोग बस रहे थें। तमिळ संघम् काल में निर्माण हुई कई रचनाएँ और ग्रंथ तमिलनाडू स्थित कई नगरों के बारे में जानकारी देते हैं, उनका ज़िक्र करते हैं।

शुरुआती दौर के चोळ राजाओं का उल्लेख इस संघम् साहित्य में प्राप्त होता है। कहा जाता है कि शुरुआती समय में उनकी राजधानीयाँ ‘उरयुर’ और ‘कावेरीपट्टीनम्’ में बसी हुई थी। ‘उरयुर’ यह फिलहाल त्रिची शहर का एक विभाग है। इसका अर्थ यह है कि इस पूरे प्रदेश पर तब चोळ राजवंश का शासन था और ‘उरयुर’ यह उनकी राजधानी थी।

इस उरयुर को-वोरैयुर, तिरुकोझी, निकलापुरी, उरन्थाई आदि विभिन्न नामों से जाना जाता था। कहा जाता है कि इस उरयुर का उल्लेख अशोक के शिलालेख में भी प्राप्त होता है। यह शहर चोळ राजाओं का कंद्रवर्ती स्थान था, ऐसा भी कहा जाता है।

‘उरयुर’ यह जिनकी राजधानी थी और उसके आसपास के प्रदेश पर जिनका राज था, उन चोळ राजाओं में, ‘करीकल चोळ’ नामक राजा काफ़ी मशहूर थे। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कावेरी नदी पर एक बाँध बनवाया, जिसे एक प्राचीन बाँध के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी है। यह बाँध ‘अनिकुट’ अथवा ‘कल्लनै’ इस नाम से जाना जाता है और आज भी इसकी स्थिति बहुत ही अच्छी है और यह काम भी कर रहा है।

इससे इस बात की जानकारी मिलती है कि शुरुआती समय में यहाँ पर चोळ राजाओं का शासन रहा। यह समय इसा पूर्व तीसरी सदीं से इसा की तीसरी सदीं तक का माना जाता है।

इसके पश्‍चात् त्रिची पर पल्लव राजाओं के शासनकाल की शुरुआत हुई। ये पल्लव राजा उनके द्वारा निर्मित शिल्पाकृतियों के लिए जाने जाते हैं। महेंद्रवर्मन्-१ और नरसिंहवर्मन्-१ इनके समय में यह पल्लव राजवंश अधिक बलशाली हुआ और दक्षिण भारत में उनकी सत्ता की जड़ें भी काफ़ी मज़बूत हुई। इस पल्लव राजवंश की सत्ता ६०० वर्षों तक चली। महेंद्रवर्मन्-१ के शासन काल में उसने त्रिची में स्थित ‘रॉक फोर्ट’ की नींव रखी।

अब पहले हम इस रॉक फोर्ट की थोड़ीसी जानकारी लेते हैं, जिससे हमारा आगे का सफ़र आसान हो जायेगा।

शुरुआत में हम ने इस ‘रॉक फोर्ट’ का त्रिची की विशेषता के रूप में उल्लेख किया। लेकिन यह ‘रॉक फोर्ट’ दरअसल है क्या? कावेरी नदी के किनारे बसे इस त्रिची शहर में ज्यादा कुछ पर्वत नहीं हैं। एकाद पर्वत को छोड़कर यहाँ की भूमि समतल ही है और इसी समतल भूमि पर बसा यह ऊँचा शिलाखंडे ‘रॉक फोर्ट’ इस नाम से जाना जाता है।

तकरीबन ८३-८४ मीटर्स जितनी ऊँचाई वाले इस शिलाखंड का स्वरूप एक पर्वत के समान है और इसी कारण इस समतल भूमि पर उसका अपना एक विशेष स्थान है। इस शिलाखंड का निर्माण कब और कैसे हुआ, इसे सबसे पहले किसने देखा या सबसे पहले इसका उल्लेख किसने किया, इस संदर्भ में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। लेकिन माना जाता है कि यह विश्‍व का सबसे प्राचीन शिलाखंड है और यह ग्रीनलंड जितना प्राचीन और हिमालय से भी पुराना है। इस पर्वतसमान शिलाखंड की आयु लगभग २३० करोड़ साल की बतायी जाती है। इसकी रचना में क्वार्टझ् और फेलस्पार ये दो द्रव्य पाये गये है।

तो ऐसे इस शिलाखंड पर महेंद्रवर्मन्-१ नाम के पल्लव राजा ने एक क़िले का निर्माण किया, जिसके अवशेष हमें आज भी दिखायी देते हैं। यह क़िला इस क़दर इस शिलाखंड के साथ जुड़ गया कि आज भी ‘रॉक फोर्ट’ इस नाम से ही यह शिलाखंड जाना जाता है।

इसके माथे पर से काफ़ी दूर तक का इलाक़ा दिखायी देता है। इसी ख़ासियत की वजह से शायद राजा ने दूरंदेशी से यहाँ क़िले का निर्माण करना शुरू कर दिया होगा।

साधारणत: आठवीं सदी के आसपास पल्लवों की त्रिची पर रहनेवाली सत्ता समाप्त हो गयी और चोळराजा यहाँ के शासक बन गये।

समय और शासक चाहे कोई भी रहे, लेकिन त्रिची और उसके आसपास के इला़के का महत्त्व हमेशा ही अबाधित ही रहा है।

पांड्य राजवंश की सत्ता त्रिची पर स्थापित होने के साथ साथ चोळ राजवंश का शासन समाप्त हो गया। पांड्य राजवंश का समय तेरहवीं और चौदहवीं सदी माना जाता है। इस अवधि में ‘उरयुर’ का नाम पुन: एक बार दुनिया को ज्ञात हुआ। उरयुर और उसके आसपास के इला़के में कई युद्ध लड़े गये ऐसा कहा जाता है।

चोळ राजवंश के अस्त के बाद क्रमश: दिल्ली सल्तनत और मदुराई सल्तनत इनका त्रिची पर शासन रहा। त्रिची चौदहवीं सदी के अन्त में विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा बन गयी और पंद्रहवीं सदी के मध्य के बाद ओरिसा के गजपति कपिलेश्‍वर देव नामक शासक ने त्रिची और उसके आसपास के इला़के को अपने राज्य के साथ जोड़ दिया और यहाँ की सत्ता की बाग़डोर अपने बेटे के हाथ में दे दी।

इस शहर का इतिहास भी उसके अस्तित्व जितना ही प्रदीर्घ है। इसलिए हमारा इतिहास का यह सफ़र अब भी ख़त्म नहीं हुआ है। तिरुचिरापल्ली के इतिहास का हमारा यह सफ़र अगले लेख में रॉक फोर्ट के साथ साथ जारी रहेगा।

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