तिरुचिरापल्ली भाग-५

तिरुचिरापल्ली, इतिहास, अतुलनिय भारत, श्रीरंगनाथजी, तमिलनाडू, भारत, भाग-५

जिस गर्भगृह में शेषशायी भगवान विष्णु यानि ‘श्रीरंगनाथजी’ विराजमान हैं, उसका विमान स्वर्ण से बना हुआ है। श्रीरंगनाथजी के गर्भगृह के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसका स्वर्ण से बना विमान यह ॐकार का प्रतीक है। इस विमान पर जो चार कलश हैं, वे चार वेदों के प्रतीक हैं और मंदिर के चारों ओर के सात प्राकार सप्त लोकों के प्रतीक हैं।

ऐसे इन श्रीरंगनाथजी के दर्शन तो हमने कर लिये। अब इस विशाल देवालय के अन्य स्थानों के दर्शन भी करते हैं।

चौथे प्राकार में सहस्र स्तम्भों से यानि हज़ार स्तंभो (खंभों) से बना मंडप हैं। यहाँ के कुल स्तम्भों की संख्या ९५३ है, ऐसा कहा जाता है। ये सभी स्तम्भ अखण्डित पत्थरों से तराशे गये हैं। इनपर सुन्दर ऩक़्काशीकाम भी किया गया है। इसी मंडप में कई देवीदेवताओं की तथा आळ्वार सन्तों की मूर्तियाँ भी दिखायी देती हैं।

इस सहस्रस्तम्भ मंडप के सामने है, ‘शेष मंडप’। इस देवालय की ख़ासियत है, ‘श्रीधन्वन्तरिजी का मन्दिर’। धन्वन्तरिजी को आयुर्वेद के प्रणेता माना जाता हैं। महाविष्णु ही सृष्टि के जीवों को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए एवं उन्हें रोगमुक्त करने के लिए धन्वन्तरि रूप में अवतरित हुए थे, ऐसा माना जाता है। देव और दानव जब अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीरसागर में मन्थन कर रहे थे, तब जो चौदा अनमोल रत्न उसमें से बाहर निकले, उनमें से आख़िरी थे, धन्वन्तरिजी। उनके हाथ में शंख, चक्र, जलौका (जौंक, जो शरीर में से दूषित रक्त को चूसकर सोंख लेती है) और अमृतकलश था। ऐसे स्वास्थ्य प्रदान करनेवाले धन्वन्तरिजी का मन्दिर श्रीरंगनाथजी के देवालय में है।

‘कार्तिकाई’ नाम के गोपुर में से प्रवेश करने के बाद सामने आता है, ‘गरुड मंडप’। इसे देवालय का सबसे ख़ूबसूरत मंडप माना जाता है। संपूर्ण देवालय में कई मंडप है, हमने उनमें से कुछ ही मंडपों की जानकारी प्राप्त की है। यहाँ के कई मंडपों पर कालचक्र के हो चुके आघात आज हमें स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं।

तिरुचिरापल्ली, इतिहास, अतुलनिय भारत, श्रीरंगनाथजी, तमिलनाडू, भारत, भाग-५श्रीरंगनाथजी के गर्भगृह के अहाते में ही ‘तोंडैमन मंडपम्’ नाम का मंडप है, जिसकी छत पर कई चित्र अंकित किये गये हैं।

इस देवालय में विराजमान भगवान की शक्ति, जिन्हें ‘श्रीरंगनायकी’ इस नाम से जाना जाता है, उन्हें यहाँ प्यार से ‘माँ’ या ‘माता’ कहकर भक्त पुकारते हैं। साथ ही यहाँ ‘श्रीदेवी’ और ‘भूदेवी’ भी विराजमान हैं।

ऐसे इस विशाल देवालय में कई देवताओं के भी मंदिर है। आइए, अब हम यहाँ के गोपुरों की ओर एक नज़र डालते हैं।

२१ गोपुरों में से हर एक गोपुर का ख़ास नाम है और उसकी रचना भी विशेषतापूर्ण है। इनमें से किसी भी गोपुर को देखना हो, तो हमें आसमान की ओर देखना पड़ता है, इतने वे विशाल हैं। इनमें से महत्त्वपूर्ण गोपुर है, ‘वेल्ल गोपुर’, जो सफ़ेद रंग का है। यह बहुत ही खूबसूरत है। चलिए, अब देवालय से प्रस्थान करने से पहले मुख्य गोपुर के यानि ‘राज गोपुर’ के दर्शन करते हैं।

आसमान की ओर नज़र फेरते ही इस ७३ मीटर्स की ऊँचाईवाले राज गोपुर के दर्शन करना मुमक़िन है। इस गोपुर का विस्तार समय के विभिन्न पड़ावों पर हुआ, ऐसा कहा जाता है। १९८७ में इस गोपुर ने कुल ७३ मीटर्स की ऊँचाई हासिल की। इस बेहतरीन गोपुर में कई देवीदेवताओं की मूर्तियाँ हैं और उनकी कथाओं के विभिन्न प्रसंग भी चित्रांकित किये गये हैं।

श्रीरंगनाथजी के देवालय में सालभर विभिन्न उत्सव मनाये जाते हैं। उन उत्सवों में ‘वैकुंठ एकादशी’ यह उत्सव सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जिसे इक्कीस दिनों तक मनाया जाता है। इस उत्सवकाल में श्रीरंगम् और श्रीरंगनाथजी के देवालय में भगवान के दर्शन करने आये भाविकों के ताँतें लगते है। इस उत्सव के दौरान एक दिन स्वयं श्रीरंगनाथस्वामीजी उनके दरबार में विराजमान होते हैं। साथ ही ‘जस्ताभिषेकम्’,‘पवित्रोत्सवम्’, ‘श्रीजयन्ती’,‘उंजल’ इन जैसे उत्सव भी यहाँ मनाये जाते हैं।

राज गोपुर के दर्शन करने के बाद अब हम श्रीरंगनाथजी के देवालय से विदा लेते हैं और एक अन्य महत्त्वपूर्ण एवं अनोखे मंदिर के दर्शन करने चलते हैं।

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