मंदी जर्मनी के दरवाजे तक आ पहुँची है – वरिष्ठ आर्थिक विश्‍लेषकों की चेतावनी

बर्लिन – ‘लेहमन क्राइसिस’ की वजह से वर्ष २००८ में अमरीका में मंदी ने दस्तक लगाई थी। आनेवाले समय में रशिया यदि ईंधन की आपूर्ति रोकती हैं तो जर्मनी का ईंधन संकट ‘लेहमन क्राइसिस’ जैसा साबित होगा। इसकी गूंज जर्मनी के बाद पूरे विश्‍व में सुनाई देगी, ऐसी चेतावनी जर्मनी के ही वाणिज्यमंत्री ने एक महीना पहले दी थी। जर्मनी को सता रहा यह ड़र सच साबित हुआ है और रशिया ने जर्मनी की ईंधन आपूर्ति पर रोक लगाना शुरू किया है। इसका सीधा असर जर्मनी के उद्योगक्षेत्र पर होगा और इस देश को २४० अरब पौंड का नुकसान पहुँचेगा। ऐसा हुआ तो २०२४ तक जर्मनी को बड़ी मंदी नुकसान पहुँचाएगी, ऐसी चेतावनी वरिष्ठ आर्थिक विश्‍लेषक दे रहे हैं।

मंदीजर्मनी की पहचान यूरोप के आर्थिख इंजन के तौर पर बनी है। जर्मनी समेत फ्रान्स यूरोपिय महासंघ का सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का देश हैं। महासंघ के अधिकांश निर्णयों पर जर्मनी का भारी प्रभाव रहा है। पूर्व चान्सलर एंजेला मर्केल के नेतृत्व में जर्मनी काफी मज़बूत देश बना था। लेकिन, मर्केल ने अपने ही कार्यकाल में किए गलत निर्णय आज जर्मनी को नुकसान पहुँचा रहे हैं, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है।

मंदीमर्केल के कार्यकाल में पिछले १५ साल जर्मनी ईंधनवायु के लिए पुरी तरह से रशिया पर निर्भर था। मर्केल के कार्यकाल में जर्मनी ने रशिया के साथ ‘नॉर्ड स्ट्रीम’ ईंधन पाइपलाइन के समझौते किए। जर्मनी ने रशिया के साथ किए इस समझौतों का जोरदार विरोध हुआ था। लेकिन, रशिया पर बेहद निर्भर रहने से जर्मनी के सामने ईंधन का बड़ा संकट खड़ा हुआ हैं, ऐसी आलोचना विश्‍लेषक कर रहे हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से जर्मनी ने रशिया के विरोध सख्त भूमिका अपनाई। लेकिन, इसका सीधा जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर असर होने लगा है।

रशिया ने मरम्मत का कारण बताकर जर्मनी की ईंधन आपूर्ति कम की है। इस वजह से बिल्कुल ठंड़ के मौसम मे जर्मनी में ईंधन की बड़ी किल्लत बन सकती है। ऐसा हुआ तो जर्मनी के बड़े बड़े उद्योग, कारखाने ठप हो जाएँगे और इसका असर जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर होगा, इस ओर विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

इस ईंधन संकट को टालने के लिए जर्मनी की सरकार कोशिश कर रही है। लेकिन, मर्केल की गलत नीति की वजह से आज जर्मनी आर्थिक मंदी की दहलिज पर खड़ा हुआ हैं, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना हैं।

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