४४. ज्युडाह प्रांत ‘अलेक्झांडर’ के ग्रीक साम्राज्य का हिस्सा

इसी दौरान, सायरस ने मज़बूत कर रखा पर्शियन साम्राज्य उसके बेटे कंबायसेस-२ ने बढ़ाया ही था| अब तो इजिप्त भी पर्शियन साम्राज्य में समाविष्ट हुआ था| इस साम्राज्य का अब कंबायसेस के पुत्र दारियस ने और भी विस्तार किया| ज्युडाह प्रांत यह इन सभी शासकों की ख़ास मर्ज़ी होनेवाला प्रदेश था और इस प्रान्त को पर्शियन राजाओं द्वारा संपूर्ण स्वायत्तता के अलावा अन्य भी कई सहूलियतें दी गयी थीं|

लेकिन अतना साम्राज्यविस्तार होने के बावजूद भी पड़ोसी राज्य ‘ग्रीस’ पर्शियन साम्राज्य मेंं समाविष्ट नहीं हो पाया था| सायरस और उसके पश्‍चात् के राजाओं के भी, अगले डेढ़सौ वर्षों में ग्रीस के साथ विभिन्न कारणों से कई युद्ध हुए, लेकिन शुरुआती दौर का एकाद-दो अपवादों (एक्सेप्शन्स) को छोड़कर बात में हर बार उनके पल्ले असफलता ही पड़ी|

इसवीसनपूर्व ३३६ के बाद ग्रीस में, आगे चलकर बतौर ‘जगज्जेता’ इतिहास में विख्यात हो हुआ ‘अलेक्झांडर द ग्रेट’ (सिकंदर) अपने पिता के निधन के बाद, उम्र के महज़ २०वें साल में ग्रीस का सम्राट बना और वहॉं से आगे की घटनाओं ने एक अलग ही मोड़ ले लिया….पर्शियन साम्राज्य के बारे में भी और इस्रायली लोगों के बारे में भी!

भूमध्यसागर से लेकर भारतवर्ष तक फैला अलेक्झांडर का साम्राज्य

अलेक्झांडर बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था और उस समय ज्ञात होनेवाली सारी दुनिया को जीतने की उसकी इच्छा थी| प्रथम साम्राज्यान्तर्गत बग़ावतों को कुचल देने के बाद अलेक्झांडर ने इसवीसनपूर्व ३३३ में साम्राज्यविस्तार मुहिम शुरू की| सबसे पहले बाल्कन देशों को जीतने के बाद उसकी नज़र पर्शियन साम्राज्य की ओर मुड़ी| पर्शियन साम्राज्यस्थित आशिया-मायनर, भूमध्यसमुद्र का पूर्वी तटवर्तीय प्रदेश (लेव्हन्ट), सिरिया, इजिप्त, असिरिया तथा बॅबिलोनिया ये प्रदेश एक के बाद एक जीनते के बाद उसने तत्कालीन पर्शियन साम्राज्य की राजधानी भी जीत ली| तत्कालीन पर्शियन सम्राट दारियस (तीसरा) यह उसीके एक प्रांताधिकारी की दग़ाबाज़ी के कारण मारा गया| अब पर्शियन साम्राज्य अलेक्झांडर की हुक़ूमत में आया था…. और इस कारण, पर्शियन साम्राज्य का भाग होनेवाला ज्युडाह प्रांत भी|

इसी दौरान अलेक्झांडर ने जेरुसलेम की भेंट की होने के उल्लेख पाये जाते हैं|

अलेक्झांडर जब इजिप्त की मुहिम पर जा रहा था, तब रास्ते में तायर नगरी (हाल के लेबेनॉनस्थित प्रदेश) पर कब्जा पाने के बाद उसे गाझा नगरी से विरोध हुआ| बाद में गाझा नगरी पर जीत पाकर इजिप्त की दिशा में जाते समय अलेक्झांडर ज्युडाह प्रांत से होकर गया और ख़ासकर उसने जेरुसलेम की भेंट की, ऐसा बताया जाता है| यह तक़रीबन इसवीसनपूर्व ३२९ की बात मानी जाती है|

अलेक्झांडर ने पर्शियन सम्राट दारियस को घमासान लड़ाई के बाद परास्त किया|

इस विषय में ऐसी कथा बतायी जाती है – तायर नगरी की घेराबंदी के दौरान अलेक्झांडर ने ज्युडाह प्रांत में अपना दूत भेजा और ज्यूधर्मियों को उनकी निष्ठाएँ दारियस के बदल उसे (अलेक्झांडर को) अर्पण करने कहा| लेकिन ज्यूधर्मियों का तत्कालीन मुख्य धर्मोपदेशक जदुआ ने – ‘हम पहले से ही दारियस के साथ वचनबद्ध हैं’ ऐसा कहते हुए ‘दारियस के ज़िन्दा रहने तक तो वैसा नहीं कर सकते’ ऐसा जवाब दिया|

यह जवाब सुनकर अलेक्झांडर बहुत ग़ुस्सा हुआ| लेकिन तायर नगरी पर विजय मिलने की कग़ार पर होने कारण उसने तुरन्त कुछ हलचल नहीं की| लेकिन तायर नगरी और फिर गाझा नगरी को जीत लेने के बाद वह इस, उसे ‘अपमानजनक’ प्रतीत हुए जवाब का हिसाब चुकता करने जेरुसलेम की दिशा में रवाना हुआ|

इस बात की ख़बर जदुआ को चलते ही उसने ईश्‍वर को नैवेद्य आदि अर्पण कर रक्षण करने की विनती की| ईश्‍वर ने उसे दृष्टांत देकर, चिन्ता न करने के लिए कहा और अलेक्झांडर का स्वागत कैसे करना है, किस पोषाक़ में करना है, इसके बारे में सूचनाएँ दीं| उसके अनुसार जदुआ के नेतृत्व में अन्य ज्यू धर्मोपदेशकों ने अलेक्झांडर का जेरुसलेम की सीमा पर स्वागत किया| लेकिन जदुआ को देखने के बाद अलेक्झांडर की प्रतिक्रिया कुछ अजीबोंगरीब थी| वहॉं पर ग़ुस्सा होकर आये अलेक्झांडर ने जदुआ के देखते ही घोड़े पर से उतरकर उसके साथ सम्मानपूर्वक संभाषण किया|

दरअसल इतने बड़े बड़े और निरन्तर मिले विजयों को बाद और जदुआ के ‘उस’ उत्तर के बाद अलेक्झांडर यदि ज्यूधर्मियों के साथ क्रूरता से पेश आता या फिर उन्हें नीचा दिखाता, तो उसमें कोई हैरानगी की बात नहीं होती| क्योंकि हर मुहिम में प्राप्त विजय के बाद उस उस प्रान्त के निवासियों को सबक सीखाने का रवैया कई बार अलेक्झांडर ने इससे पहले भी अपनाया ही था|

लेकिन ज्यूधर्मियों के साथ वैसा नहीं हुआ| क्यों, इसकी वजह के समर्थन में ऐसी भी एक कथा बतायी जाती है –

ज्यूधर्मोपदेशक जदुआ को देखते ही अलेक्झांडर घोड़े पर से नीचे उतरकर उसे मिला|

अलेक्झांडर को, यह एशिया मुहिम शुरू करने से पहले, वह कैसे संपन्न होगी इस बात को लेकर चिन्ता होने लगी थी| तब उसे एक सूचक सपना आया, जिसमें उसे एक आदमी दिखायी दिया, जिसने अलेक्झांडर को सपने में ही – ‘अब और देर हरगिज़ मत करना| समुंदर पार करके आओ| मैं तुम्हारी सेना को पर्शियन सेना पर विजय दिलवा दूँगा’ ऐसा बताया था| सपने में दिखायी दिया वह मनुष्य यानी ‘जदुआ’ ही था, जिसने सपने में भी वैसी ही पोशाक पहनी थी, जो जदुआ ने अब उसका स्वागत करते समय पहनी थी|

इस कारण जदुआ को देखते ही अलेक्झांडर के मन में उठ रही बदले की भावना नष्ट हो गयी और वह जदुआ और ज्यूधर्मियों के साथ अत्यधिक आदरपूर्वक पेश आया, ऐसा यह कथा बताती है|

ऐसी इस महत्त्वपूर्ण भेंट के बाद, ज्यूधर्मियों की सारी मॉंगें मंजूर कर अलेक्झांडर अगली मुहिम पर चला गया|

अलेक्झांडर जब आया, तब इस्रायली लोगों के सामने दो विकल्प (ऑप्शन्स) थे – अलेक्झांडर का विरोध करना या फिर उसके नेतृत्व को मान्य करना| अलेक्झांडर की प्रचंड बड़ी सेना के सामने तत्कालीन ज्युडाह प्रांत की ताकत बहुत ही कम थी| इस कारण उन्होंने दूरंदेशी से विचार कर, पिछली ग़लतियों को टालकर दूसरे विकल्प को अपनाया और अलेक्झांडर को अपने नये राजा के रूप में हम स्वीकार करते हैं, ऐसा उसे बताया| इतना ही नहीं,बल्कि नये राजा के प्रति आदर दर्शाने, अगले साल ज्युडाह प्रांत में जन्मनेवाली हर ज्यूधर्मीय सन्तान का नाम ‘अलेक्झांडर’ रखा जायेगा, ऐसा भी उन्होंने अलेक्झांडर से कहा|

अलेक्झांडर ने भी, ज्युडाह प्रांत को पर्शियन सम्राटों से मिली धार्मिक और राजनीतिक स्वायत्तता को ख़ारिज नहीं किया, वे पालन कर रहे पर्शियन क़ानूनों में भी परिवर्तन नहीं किया; तो केवल पर्शियन अधिकारियों के स्थान पर अपने अधिकारियों को नियुक्त किया| शर्तें केवल दो ही थीं – ज्यूधर्मीय ग्रीक साम्राज्य के साथ निष्ठाओं का पालन करें और बिना चूके कर (टॅक्सेस) अदा करें|

अब ज्युडाह प्रांत अलेक्झांडर के ग्रीक साम्राज्य का एक अहम हिस्सा बन चुका था| ज्युडाह प्रांत का ग्रीक साम्राज्य के साथ व्यापारकारोबार, तथा अन्य आदानप्रदान शुरू हुआ| लेकिन उसका एक दूसरा अवांछित परिणाम ऐसा हुआ कि धीरे धीरे ग्रीक रूढ़िपरंपराएँ, सामाजिक रस्मोरिवाज़ इस्रायली समाजजीवन में चंचुप्रवेश करने लगे|

लेकिन अलेक्झांडर का इसवीसनपूर्व ३२३ में, उम्र के चन्द ३३वें साल में निधन हो गया और पुनः कुछ समीकरण बदलने लगे|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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