श्‍वसनसंस्था- ५

श्वसनसंस्था के बारे में जानकारी लेते समय हमनें देखा कि रचना की दृष्टि से इसे दो भागों में बाँटा गया है। इनमें से ऊपरी भाग की जानकारी हमने पिछले लेख में प्राप्त की। आज से हम श्वसन संस्था के निचले भाग की जानकारी प्राप्त करनेवाले हैं, श्वसनसंस्था के निचले भाग में निम्नांकित अवयव आते हैं-श्‍वसननलिका, श्‍वसननलिका की शाखायें, उपशाखायें, फ़ेफ़डे और उसके ऊपर का आवरण। अब हम संक्षेप में इन सबकी रचना के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

श्वसननलिका – श्वसननलिका को अंग्रेजी में wind pipe और वैद्यकीय भाषा में ट्रॅकिआ (Trachea) कहते हैं। श्वसननलिका के नाम से हम जान सकते हैं कि यह एक नली होती है। यह नली दंडगोलाकार है, परन्तु इस नली का पिछला हिस्सा थोड़ा दबा होने के कारण सीधा होता है। यदि एक ओर से देखा जाए तो यह नली अंग्रेजी के ‘D’ अक्षर के आकार की दिखायी देती हैं। यह नली कूर्चाओं की बनी हुयी होती है। इसमें विशिष्ट स्थान पर गोलाकार (rings) होते हैं और हर दो रिंग्स के बीच में स्नायु और तंतुओं (Fibromuscular) द्वारा बना परदा होता है।

श्वसनलिका १० से ११ सेमी लम्बी होती है। स्वरयंत्र से शुरु होकर यह नली छाती के पिंजरे में प्रवेश करती है। इसका ऊपरी सिरा सामान्यत: गले की छटी रीढ़ की हड्डी के स्तर पर होता है। छाती में पांचवी रीढ़ की हड्डी के स्तर पर यह दो भागों में विभाजित हो जाती है। इसका एक भाग दाहिने फ़ेफ़डे की ओर तथा दूसरा भाग बाये फ़ेफ़डें की ओर जाता है। इन्हें क्रमश: दाहिना मुख्य ब्राँकस (Bronchus) और बांया मुख्य ब्राँकस कहते हैं। यह नली शरीर के बीचों बीच होती है परन्तु दाहिनी ओर थोड़ा मुड़ जाती है। यह नलिका पूरी तरह स्थिर नहीं होती। श्‍वास के साथ-साथ इसकी लंबाई कम और ज्यादा होती रहती है। जब हम श्‍वास लेते हैं तो इस नलिका की लंबाई साधारणत: १ से.मी. बढ़ जाती है। श्‍वासनलिका की बाहरी चौड़ाई पुरुषों में २० मि.मी. तथा स्त्रियों में १५ मि.मी. होती है। श्‍वसननलिका के रिक्तस्थान की चौड़ाई १२ मि.मी. होती है। जन्म के बाद प्रथम वर्ष में छोटे बच्चों की श्‍वसननलिका ज्यादा से ज्यादा ३ मि.मी. चौड़ी होती है। इसके बाद अगले बारह वर्ष तक यह चौड़ाई बढ़ती रहती है। इस उम्र तक श्‍वसननलिका की चौड़ाई उम्र के बराबर होती है। यानी तीन साल के बच्चे में ३ मि.मी., पाँच वर्ष के बच्चों में ५ मि.मी.। इस प्रकार श्‍वसननलिका की चौड़ाई की गिनती डॉक्टरों के उपयुक्त साबित होती है।

यदि गलती से किसी व्यक्ति की श्‍वसननलिका में गलती से कोई भी चीज़ चली जाए तो उस वस्तु के कारण श्‍वसननलिका में कितनी मात्रा में हवा को अवरोध होगा, इसका एक अनुमान लगाया जा सकता है। वह वस्तु श्‍वसननलिका में अटकेगी या आगे जाकर दाहिनी अथवा बांयी ब्राँकस में जाकर अटकेगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

इस जानकारी का (श्‍वसननलिका की चौड़ाई का) उपयोग व्यक्ति को कृत्रिम श्‍वासोच्छ्श्‍वास देने के लिए होता है। यदि किसी व्यक्ति की श्‍वास बंद हो गयी हो तो अथवा धीमी पड़ गयी हो तो उसे कृत्रिम श्‍वास देनेवाले यंत्र का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए उस व्यक्ति की श्‍वसननलिका में एक नली ड़ालनी पड़ती है। इस नली का दूसरा सिरा मशीन से जुड़ा हुआ होता है। व्यक्ति की उम्र के अनुसार श्‍वसननलिका में डाली जानेवाली नली की मोटाई कितनी मिलिमीटर होनी चाहिए, यह तय किया जा सकता है तथा उचित आकार की नली प्रयोग में लायी जाती है।

गर्दन और छाती इन दोनों प्रदेशों से श्‍वसननलिका गुजरती है। इसी लिए जानकारी के लिए इसके दो भाग माने जाते हैं। श्‍वसननलिका के अगल-बगल में अनेक अवयव होते हैं।

श्‍वसननलिका के गर्दन में होनेवाले विभाग – इसके सामने की ओर थायरॉइड ग्रंथी और गर्दन की कुछ महत्त्वपूर्ण रक्तवाहनियाँ होती हैं। पिछली ओर श्‍वसननलिका और मनका इनके बीच में अन्ननलिका होती है। थायरॉइड ग्रंथी के दाहिने, बायें लोब्ज के दोनों बाजू होते हैं।

श्‍वसननलिका के छाती में होने वाले विभाग : इस भाग में इसके सामने की ओर मॅन्युब्रिअम स्टर्नी नामक अस्थि होती है। महारोहिणी, गर्दन की कॅरोटिड आरटरीज़ और कुछ वेन्स इसके सामने होती हैं। पीछे की ओर अन्ननलिका होती है। श्‍वसननलिका के दाहिनी ओर दाहिना फ़ेफ़ड़ा और उसके ऊपर का आवरण होता है। इसके अलावा सुपिरिअर वेना केव्हा होती है। बांयी ओर बांया फ़ेफ़ड़ा होता है और कुछ प्रमुख रक्तवाहनियाँ होती हैं।

श्‍वसननलिका की शस्त्रक्रिया करते समय उपरोक्त जानकारी का उपयोग डॉक्टरों के लिए महत्त्वपूर्ण साबित होती है।

(क्रमश:-)

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