अस्थिसंस्था भाग – ३२

हमने अपनी जांघो एवं अपने पैंरो की हड्डियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। अब हम अपने घुटने के जोड़ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

यह हमारे शरीर का सबसे बड़ा जोड है। साथ ही यह एक महत्त्वपूर्ण जोड भी है। जीवन में सभी ने कभी ना कभी घुटने के दर्द का अनुभव किया ही होता है और बुढ़ापे में तो बहुत लोगों को यह होता है। अब हम देखेंगे कि हमारा यह घुटना आखिर होता ही कैसा है।

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जोडों के प्रकारों के बारे में अध्ययन करते समय लिखा था कि यह मिश्र (compound) एवं complex सांधा है। फीमर के दो कोंडाइल्स और टिबिया के दो कोंडाइल्स के बीच यह जोड़ बनता है। इसमें मेनिस्कस होती है । पटेला व फीमर के बीच अलग जोड़ होता है। ये सब एक ही कॅपसूल में बम्ड होते हैं और इसीलिए इसे complex जोड़ कहा जाता है।

आर्टिक्युलर सरफ़ेस :
दोनों फीमोरल कोंडाइल्स पर हायलाईन कूर्चा का स्तर होता है। यहाँ पर दोनों कोंडाइल्स पर बाहर की ओर से मिनिस्कस होते हैं। मिनिस्कसों के कारण कुर्चा को अंतर्वक्रता प्राप्त होती है और फीमर पर की बहिर्वक्र कुर्चा के साथ वो जुडती है।

फ़ायबरस कैप्सूल :
संपूर्ण जोड़ पर आवरण ड़ालने वाली यह कॅपसूल कुछ स्थानों पर कम पड़ती है। ऐसे स्थानों पर अगल बगल के टेंडन्स जोड़ के चारों ओर फ़ैल जाते हैं और वे कॅपसूल का काम करते हैं।

सायनोवियल मेंब्रेन :
शरीर के अन्य किसी भी जोड़ की तुलना में घुटनों को सायनोवियल मेंब्रेन का आकार सबसे बड़ा होता है। इसी लिये यह उतनी complex भी है। इसमें सायनोवियल मेंब्रेन के जोड़ से संलग्न थैली जैसे भाग बनते हैं। इन्हें बर्सा (bursa) कहते हैं। (बहुवचन bursae)। इनमें से कुछ बर्से जोड़ की सायनोवियल खाली जगह से सीधे जुड़े होते हैं। तथा कुछ बर्से पूरी तरह स्वतंत्र होती है।

जोड़ के सामने के भाग पर चार बर्से होते हैं और चारों ही बर्से घुटने की कटोरी के आसपास होते है। इसी लिये इन्हें पटेलर बर्से कहते हैं। घुटने की कटोरी के ऊपरी ओर क्वाड्रिसेप स्नायु के टेंडन के पीछे इसका सबसे बड़ा सुप्रा-पटेलर बर्सा होता है।
जोड़ के बाहर की ओर चार बर्से होते हैं तथा अंदर की ओर पाँच बर्से होते हैं।

जोड के लिंगामेंटस् : पटेलर लिगामेंट –
क्वाड्रिसेप फिमोरिस स्नायुओं के टेंडन के बीच के भाग को पटेलर लिंगामेंट कहते हैं। नीचे की तरफ वे टिबियल ट्युबरॉसिटी पर जुड़े होते हैं। इसकी लम्बाई लगभग ८ सेमी होती है।

इनके व्यतिरिक्त और पाँच विभिन्न लिंगामेटस् इस जोड़ में होते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – ऑबलिक पॉपलिटियल लिंगामेंट, आरक्युएट पॉपलिटियल लिंगामेंट और टिबियल कोलॅटरल लिंगामेंट, फिब्यूलर कोलॅटरल लिंगामेंट और क्रुशिएट लिंगामेंट।

मिनिस्काय (menisci)- यह मिनिस्कसका बहुबचन है। टिबिया के दोनों कोंडाइल्स पर चंद्राकार मिनिस्कस होते हैं। इनका बाहरी किनारा मोटा और टिबिया से जुड़ा होता है। अंदर की खुली बाजू अंतर्वक्र व पतली होती है। इसके सिर्फ बाहरी किनारों पर ही रक्ताभिसरण होता है। इसकी ऊपरी बाजू चिकनी व अंतर्वक्र होती है। वह हमेशा फीमर की आर्टिक्युलर सरफ़ेस पर टिकी हुयी होती है।

मिनिस्कस का मुख्य काम होता है जोड़ को मृदुता प्रदान करना व जोड़ की सभी गति विधियों को सुलभता प्रदान करने में सहायता करना। इसके पुर्ननिर्माण अथवा पुनरुज्जीवन की क्षमता अपार है। घुटने के संपूर्ण मिनिस्कस को यदि निकाल दिया जाये तो भी किनारों की रक्तवाहिनियों से नये मिनिस्कस तैयार होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि जोड़ के कार्यों में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

मिडियल मिनिस्कस अर्थात मिडयल कोंडाइल पर रहने वाले मिनिस्कस अर्धवर्तुलाकार होते हैं। लॅटरल मिनिस्कस थोड़े बड़े व वर्तुल के ३/४ भाग के बराबर होते हैं।

यहाँ तक हमने घुटने की रचना का अध्ययन किया। अब हम उसकी क्रियाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

(क्रमश:)

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