अस्थिसंस्था भाग – २०: कंधों का जोड़ एवं पेक्टोरल गर्डल

हम अपने कंधों एवं पेक्टोरल गर्डल की जानकारी ले रहे हैं। उस में कंधों का जोड़ व उसकी गति समझकर लेना हैं। कंधों के जोड़ों की दो अस्थियों की जानकारी हमने ली. (स्कॅप्युला व क्लॅविकल)। अब हम इसकी तीसरी अस्थि ह्युमरस के बारे में जानकारी लेंगें।

asthisanstha - कंधों का जोड़ एवं पेक्टोरल गर्डल

ह्युमरस :
यह हमारे हाथों की सबसे लम्बी एवं सबसे चौडी अस्थि है। यह हाथ के बांहप्रदेश में होती हैं। इसके दोनों सिरे फैले  हुये और बीच का भाग छड़ी जैसा होता है। इसका ऊपरी सिरा जिस को इस हड्डी का सिर कहते हैं, स्कॅप्युला की ग्लिनॉइड़ कॅव्हिटी के साथ उसका सांधा बनाता है। यही होता हैं कंधों का जोड़। इस हड्डी के निचले फैले  हुये सिरे कोंडायलर भाग कहते हैं क्योंकि इस में उभार होते हैं। बांह के नीचे हाथ की हड्डी के साथ मिलकर यह भाग कोने का जोड़ बनाता है।
कान की आकृति में ह्युमरस के सामने की ओर के विभिन्न भाग दिखाये गये है। अब हम उन उब की संक्षेप में जानकारी प्राप्त करेंगें।

सिरा(अग्रभाग) :-

यह हड्डी का सबसे ऊपरी सिरा है। यह थोड़ा वर्तुलाकार होता है। इस जोड़ के हिस्सों पर हायलाईन कुर्चा होती हैं। ग्लिनॉइड कॅव्हिटी की अपेक्षा इसका आकार बड़ा होता है। इसी लिये कंधों की किसी भी क्रिया में इसके कुछ हिस्से ही जो जोड़ में सहभागी होते हैं।

अ‍ॅनाटॉमिकल नेक अथवा गर्दन :

जोड़ के ऊपरी सिरे के तुरंत बाद एक खांचा होता है। कंधे के जोड़ की जो तंतुमय थैली होती हैं वो यहीं पर ह्युमरस के साथ जुड़ती हैं। इस खाँचे को ही अ‍ॅनाटॉमिकल गर्दन कहते हैं।

लेसर ट्यूबरकल :

हड्डी पर सामने की ओर अ‍ॅ़क़्टोलियन से लगभग 3 सेमी नीचे यह ट्युबरकल होती है। बाह्रर से यह हाथ को लगती हैं।

ग्रेटर ट्यूबरकल :
यह भाग ह्युमरस के ऊपरी सिरे का गोलाकार भाग है। इसी ट्युबरकल के कारण हमारे कंधो को गोलाई प्राप्त होती है।

मध्यभाग :
ऊपरी सिरे पर दंडगोलाकार यह भाग नीचे के सिरे पर त्रिकोणी प्रिझम क्रॉस दिखायी देता है। इसके तीन बाजू व तीन किनारे होते हैं। इसके चारों ओर दंड में स्नायुओं का आवरण होने से यह सहजता से हाथ में नहीं लगता।

ह्युमरस का निचला हिस्सा चपटा और फैला  हुआ होता है इसके दो प्रमुख भाग होते हैं। कोने के जोड़ में सहभागी होनेवाले आर्टिक्युलर तथा जोड़ में सहभागी न होने वाले नॉनआररिक्युलर। जोड़ में सहभागी होने वाले दो भाग हैं – कॅपिटयुलम व ट्रॉक्लिया तथा जोड़ के बाहर स्थित दो एपिकोंडाइल्स।

कॅपिटयुलम :

साधारणत: अर्ध गोलाकार भाग जो हड्डी की बाहरी बाजू में होता है। इसका निचली व सामने की बाजू हाथ की रेडीयस अस्थि से जुड़ती है। कोहनी पर जब हाथ सीधा होता है तब रेडीयस व निचला   भाग एक दूसरे के आमने सामने होते हैं। कुहनी पर हाथ मोड़ने पर इसके सामने की बाजू पर रेडियस अस्थि का सिरा सरकता है।

ट्रॉक्लिया :

कुंए के रहट की आकृति वाला यह भाग अंदर की ओर होता है। हाथ की अल्ना अस्थि से यह जुड़ती है। हाथ जब कोहनी पर सीधा होता है तब इसका पिछला एवं निचला हिस्सा अल्ना के साथ होता है। जब हाथ कोहनी पर मुड़ता है तो अल्ना इसके सामने के भाग पर सरकती है। फलस्वरूप  कोहनी पर हाथ मुड़ने के बाद इसका पिछला हिस्सा खुला ही रहता है।

मिडीअल अथवा अंदरूनी एपिकोंडाइल:

जोड़ का बाहरी भाग कोहनी पर हाथ मोड़ते समय स्पष्ट दिखायी देता है। इस पर सिर्फ   त्वचा का ही आवरण होता है। इसके पिछले भाग में एक खांचा होता है। इस खांचे में हाथ की ओर जाने वाली अल्नर चेतारज्जू (नर्व्ह) होती हैं। इन चेतारज्जूओं को आघात लगने पर कोहनी के नीचे हाथ में झन-झुनी आने लगती हैं। इसे हम शॉक लगना कहते हैं। इसका अनुभव अधिकांश लोगों ने किया ही होगा।

लॅटरल एपिकोंडाइल :

यह भी जोड़ में सहभागी नहीं होती। कोहनी पर जब हाथ सीधा रहता है तब कोहनी के पिछले हिस्से के खड्डे में यह भाग दिखायी देता है। कोहनी पर हाथ मोड़ने पर यह बाहर की ओर स्पष्ट दिखायी देता है। कुल आढ़ केन्द्रों से इस अस्थि का ऑसिफिकेशन  पूरा होता है। ग्रेटर व लेसर ट्युबरलस के मध्य भाग अपर इसका केन्द्र गर्भ की आठ वे महीने में ही दिखायी देने लगता है। सिर के केन्द्र जन्म के छ: महीनों बाद कार्यरत होते हैं। ग्रेटर व लेसर ट्युबरलस में यह केन्द्र लड़कों में दूसरे व पांचवे वर्ष दिखायी देने लगते हैं। (लड़कियों में एक वर्ष पहले)। उम्र के छटवे वर्ष में ये केन्द्र व सिर के केन्द्र आपस में मिल जाते हैं और एक ही केन्द्र शेष बचता है। इस अस्थि का सिर एवं गर्दन उम्र के बीसवें वर्ष एक-दूसरे से जुड़ते हैं।

कॅपिट्युअल में पहलें साल, ट्रॉक्लिया में लड़कियों में नौवें साल व लड़कों में दसवें साल। मिडियल एपिकोंडाइल में लड़कियों में चौथे वर्ष व लड़को में छठे वर्ष और लॅटरल एपिकोंडाइल में बारहवे वर्ष ऑसिफिकेशन  शुरु होता है। ये सभी हिस्से मुख्य हड्डी से लड़कियों में चौदहवे वर्ष व लड़कों में सोलहवें वर्ष जुड़ता हैं। उपरोक्त विवेचन के अनुसार हमारे ध्यान में आता है कि ह्युमरस का निचला भाग मुख्य हड्डी से जल्दी जुड़ता है तथा ऊपरी सिरे का भाग दोरी से अर्थात इसकी वृद्धि सिरे के भग से होती है। यदि उम्र के बीसवे वर्ष से पहले किसी का हाथ दंड में टूट जाये तो अथवा काटना पड़े तो शेष हाथ/दंड वीसवें वर्ष तक बढ़ता रहता हैं। इस हड्डी के चारों ओर दंड के स्नायुओं का बेड़ा होता है। इसक अस्थिभंग बहुत जल्दी होता है। तथा प्राय: सर्जिकल नेक में ही होता है। दुर्घटना के समय बाहरी आघात की अपेक्षा इसके स्नायुओं के कार्यों के कारण ही अस्थिभंग़ होता है।

कंधों का जोड़ :

यह अनेकों अक्ष वाला (मल्टीअ‍ॅक्सिअल)उखली का जोड़ हैं। ह्युमरस का अर्धगोलाकार सिरा व स्कॅप्युला की उथली ग्निनॉइड कॅव्हिटी में यह जोड़ बनता है। इस जोड़ में गतियों की काफी  मुक्तता है परन्तु सुरक्षितता काफी  कम है। जोड़ों की दृष्टि से यह अत्यंत अशक्त अथवा नाजुक जोड़ हैं। इसकी तंतुमय कॅपसुल अथवा लिंगामेन्टस् पर्याप्त मात्रा में सशक्त न होने के कारण इसे इसके चारों ओर के स्नायुओं की सहायता पर अवलंबित रहना पड़ता है। हुमरस की गोलाकार आर्टिक्युलर बाजू, मिनॉइड के गहरे आटिक्युलर बाजू की अपेक्षा बड़ी होती हैं। फलस्वरूप प्रत्येक क्रिया के दरम्यान ह्युमरस का थोड़ा भाग ग्निनॉइड के संपर्क में रहता है तथा शेष भाग जोड़ के कॅपसुल के संपर्क में रहता है।

फाइबर्स कॅप्युसल अथवा तंतुमय आवरण :

पूरे जोड़ पर इसका आवरण होता हैं। ग्निनॉइड के किनारों से कोरेकॉइड प्रोसेस, सामने ह्युमरस की अ‍ॅमाटोमिकल गर्दन के पट्टे पर यह अस्थि पर मजबूती से जुड़ी होती हैं। परन्तु बगल की बाजू में यह एक से दो सेमी ह्युमरस के हिस्से पर नीचे आती है और वहाँ पर एक प्रकार की खाली गहरी थैली जैसी होती है। यहाँ पर यह कॅपसूल कमज़ोर होता है। जोड़ के अन्य भागों पर कंधों व दंड़ के अनेक स्नायुओं के आवरण होता है। इसे जोड़ का रोटेटर कफ कहते हैं। साथ ही साथ तीव्र ग्लीनो ह्युमरस लिंगामेन्टस् एक कोरको ह्युमरस व एक टान्सवर्स (आड़ा) ह्युमरस लिंगामेन्ट मिलकर इस कॅप्युसल की शक्ति बढ़ाने में मदत करते हैं।

कंधों की क्रियायें:

यह जोड़ अनेक अक्षो पर क्रिया/गति करने वाला (मल्टीऑक्सिअल) है। तीन अक्षों को मिलाकर कुछ छ: प्रकार की क्रियायें या गतियां होती है। कंधों पर हाथ को पूर्ण रूप में घुमाने की क्रिया अन्य छ: क्रियाओं के क्रमानुसार होते रहने पर होती हैं। मुख्य छ: क्रियाओं की तीन जोड़ियां निम्नलिखित हैं –

अ)हाथ मोड़ना व हाथ सीधा करना (फ्लेक्शन व एक्स्टेन्शन) :

कवायत करते समय हम हाथ को शरीर के सामने करते हैं तो इसे फ्लेक्सन तथा इससे विपरीत क्रिया यानी हाथ पीछे लेने की एक्सटेंशन कहा जाता है।

ब)हाथ को शरीर से दूर लेना व नजदीक लाना (अ‍ॅब्डक्शन और अ‍ॅडक्शन) :
कंधो की रेखा में कवायत करते समय जब हम हाथों की शरीर से दूर ले जाते हैं तो इसे अ‍ॅबडक्शन तथा हाथों को वापस नजदीक लाने को अ‍ॅडक्शन कहते हैं।

क)हाथों को अंदर की ओर घुमाना व बाहर की ओर घुमाना (मेडियल व लॅटरल रोटेशन):

जब हम किसी को बाहों में लेते हैं तो यह मेडियल रोटेशन तथा इसकी विपरीत क्रिया को लॅटरल रोटेशन कहा जाता है।
कंधों की अपेक्षा अन्य किसी भी जोड़ को इतनी गति मुक्तता नहीं हैं। जोड़ की गहरी कॅपसूल व ग्निनॉइड़ की अपेक्षा बड़ी ह्युमरस के जोड़ की बाजू (आटीक्युलर सरफ़ेस) के कारण यह संभव होता है। परन्तु इसी के कारण यह जोड़ कमजोर भी बनता है। फलस्वरूप  यह जोड़ जल्दी डिसलोकेट होता है। ऐसी है इस जोड़ की गाथा। अब हाथ के अगले भागों का हम अध्ययन करेंगें।

(क्रमश:)

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