अस्थिसंस्था भाग – ३०

अब हम फीमर की आंतरिक रचना देखेंगे।

फीमर का शाफ्ट कॉम्पॅक्ट अस्थियों का बना होता है। यह दंडगोलाकार (cylinder) होता हैं। इसके बीच के भाग में बड़ी मेड्युलरी खाली जगह (रिक्तस्थान) होती है। शाफ्ट के बीच का एक तृतीयांश भाग में इस रिक्त स्थान की दीवारें सबसे ज्यादा मोटी होती है तथा रिक्तस्थान सबसे ज्यादा होता है।

fimar shaft

शेष दोनों सिरों की तरफ कॉम्पॅक्ट अस्थि की दीवार पतली होती जाती हैं व अंदर का रिक्तस्थान ट्रॅबॅक्युलर अस्थि से भर जाता है। पैरों की सभी हड्डियों में एक बात समान होती हैं। वो है कि इन हड्डियों के जो भाग जोड़ो की तरफ होते है उनके ट्रॅबॅक्युली की रचना, उस हड्डी पर ज्यादा से ज्यादा तनाव जिस रेषा में होता है, उसी रेषा में होती हैं। फीमर के सिर व गर्दन की ट्रॅबॅक्युली, जहाँ पर गर्दन, शॅफ्ट के साथ एकरुप होती हैं, वहाँ पर एकत्र आती हैं। फीमर के सिर पर पड़ने वाला जोर, इसीलिये ठीक उस जगह पर वहन किया जाता है, जहाँ पर गर्दन व शाफ्ट मिलते हैं। लेसर ट्रॉकॅन्टर में से आने वाले ट्रॅबॅक्युली इन्हें सहायता करती है।

फीमर के घुटने के पास के भाग में कॉम्पॅक्ट अस्थि में से ही ये ट्रॅबॅक्युली बाहर निकलती है। ये ट्रॅबॅक्युली घुटनों के आर्टिक्युलर सरफ़ेस से समकोण बनाती है। आर्टिक्युलर सरफ़ेस के पास से ज्यादा शक्तिशाली होती है। इसकी जोड़ी में ही आड़ी ट्रॅबक्युली भी होती है(like beams)।

ओसिफिकेशन :- ओसिफिकेशन के पाँच केन्द्र होते हैं। शॅफ्ट, सिर, ग्रेटर व लेसर ट्रॉकॅन्टर तथा घुटनों के पास का सिरा। इन सबके लिये एक-एक केन्द्र होता है। क्लॅविकल को छोड़कर सभी लंब अस्थियों में इसका ओसिफिकेशन पहले शुरु होता है। गर्भ के सातवे सप्ताह में शॅफ्ट के मध्यभाग पर ओसिफिकेशन शुरु होता है व जन्म से पहले पूरा हो जाता है। गर्भ के नयें महीनें में घुटने के पास ओसिफिकेशन शुरु होता है। जन्म के छ: माह के अंदर सिर के केन्द्र कार्यरत होते हैं। ग्रेटर ट्रोकॅन्टर में चौथे वर्ष तथा लेसर ट्रोकॅन्टर, ग्रेटर ट्रोकॅन्टर तेरह से चौदह वर्ष की उम्र के दौरान तथा सिर चौदहवे वर्ष शॅफ्ट से जुड़ता है। परन्तु लड़कों में स्थिर, सतारहवें वर्ष जुड़ता है। घुटनों के पास का भाग लड़कियों में सोलहवें तथा लड़कों में अठ्ठारहवे वर्ष जुड़ता है।

फीमर की घुटनों के पास की एपिफ़ीसिस एकमेव ऐसी एपिफ़ीसिस है जिस में जन्म से पहले ओसिफिकेशन शुरु होता है। जाँघ की हड्डी में किस उम्र में कौनसा अस्थिभंग सर्वसाधारणत: होते है, यह हम देखेंगे। उम्र के सोलहवे वर्ष तक शॅफ्ट में स्पायरल अस्थिभंग होता है। उम्र के सोलहवे से चालीसवें वर्ष तक घुटनों के मेनिसकस में फ्रैक्चर होने की संभावना ज्यादा रहती हैं। ४० से ६० उम्र में, टिबिया के फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है तथा उम्र के साठ वर्ष के बाद बहुधा फीमर की गर्दन में फ्रैक्चर होता है। स्त्रियों में इस उम्र में ऑस्टिओपोरोसिस का प्रमाण ज्यादा होता है। इसके कारण स्त्रियों में अस्थिभंग का प्रमाण ज्यादा होता है। फीमोरल अस्थि के बारे में जानकारी आज पूरी हो गयी। अब हम कमर के जोड़ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

कमर का जोड़ अथवा (Hip Joint) :- इसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है। सायनोवियल जोड़, प्रकार – उखली का जोड़ (ball and
socket) व अनेक अक्षों पर कार्य करने वाला जोड़ (multiaxial)। फीमर का सिर और अ‍ॅसिटाब्युलम का खढ्ढ़ा मिलकर यह जोड़ बनता है। दोनों तरफ आर्टिक्युलर सरफ़ेस पर हायलाईन कुर्चा होती है! जोड़ से चारोम उर फाइब्रस कॅपसूल होता है व अंदर सायनोवियल परदा होता है। अनेक प्रकार के स्नायु और लिंगामेंटस् इसके कॅपसूल की शक्ति बढ़ाते हैं।

जोड़ की गतिविधियाँ :
कंधे की तरह यह भी मल्टीअ‍ॅक्सीयल जोड़ होने के कारण इस में सात प्रमुख गतिविधियाँ होती हैं। फ्लेक्शन-एक्सटेंशन, अ‍ॅडक्शन-अ‍ॅबडक्शन, मिडिअल रोटेशन-लॅटरल रोटेशन और सरकमडक्शन।

जब हम अपनी जाँघ मोड़ते है या सीधी करते हैं तब अ‍ॅसिटाब्युलम स्थिर रहती है और फीमर का सिर अ‍ॅसिटाब्युलम में घूमता हैं। जब पैर जमीन पर स्थिर रखकर कमर से हम झुकते हैं व सीधा होते है तब फीमर का सिर स्थिर रखकर कमर से हम झुकते हैं व सीधा होते हैं तब फीमर का सिर स्थिर होता है व अ‍ॅसिटाब्युलम इसके चारों ओर घूमता हैं।

मिडिअल रोटेशन का तात्पर्य है, जाँघ को अंदर की ओर मोड़ते समय नीचे की मिडिअल कोंडाइल टिबिया के मिडिअल कोंडाइल पर अंदर मु्ड़ती है और उसी समय ग्रेटर ट्रोकॅन्टर बाहर की ओर मुड़ती है। लॅटरल रोटेशन में ठीक इसके विपरीत क्रिया होती हैं। कमर पर जाँघ को मोड़ते समय यदि पहले पैर को घुटने पर मोड़ ले तो जाँघ का मोड़ बढ़ जाता है तथा जाँघ शरीर को स्पर्श करती है। मतलब यह है कि अन्य जोड़ों की गतिविधियां कमर की गतिविधियों में सहायक साबित हो सकती है।

कंधा व कमर के जोड़ में मूलभूत फर्क है। कंधे में ह्युमरस का सिर स्कॅप्युला की खाली जगह की अपेक्षा बड़ा होता है। फलस्वरूप यहाँ पर गतिविधियां ज्यादा मुक्तता से होती हैं तथा इनकी रेंज भी ज्यादा होती है। कमर के जोड़ में फीमर का सिर अ‍ॅसिटाब्युलम में घट्ट बैठ जाता है। फलस्वरूप गतिविधियों में एक प्रकार का बंधन आ जाता है।

यह एक ही जोड ऐसा है जो जन्म के समय भी निकला हुआ हो सकता है। रचनात्मक दोषों के साथ-साथ यहाँ की कूर्चा अथवा अस्थियों में जोड़ों के कारण (रोग इत्यादि) ऐसा होता है।

पैर की एक छोटी सी हड्डी के बारे में जानकारी लेते हैं। इस हड्डी का नाम है ‘पटेला’ अथवा घुटने की कटोरी। हमारे शरीर की सबसे बड़ी सेसमॉइड हड्डी। यह अस्थि क्वाड्रिसेप्स फीमोरीस नामक स्नायु के टेंडन में घुटनों के ठीक सामने रहती है। त्रिकोणी आकार की यह हड्डी त्वचा के नीचे स्पष्ट दिखायी देती है। इसे पिछली और सामने की दो बाजुएँ होती हैं, तीन किनारे और एक सिरा (रशिु) होता है। इसके सामने की ओर क्वाड्रिसेप्स का टेंडन होता है। पिछली बाजू का ऊपरी भाग चिकना होता है व हायलाईन कुर्चा का स्तर उसके ऊपर होता है।

उम्र के तीसरे बर्ष से छठें वर्ष के दौरान ओसिफिकेशन के अनेकों केन्द्र इस में दिखायी देते हैं और वे फ़ौरन एक दूसरे में मिल जाते हैं।
पैर के जाँघ इस विभाग का अध्ययन पूरा हो गया। अगले लेख से घुटनों के नीचे के पैर के विभाग बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें।

(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.