अस्थिसंस्था भाग – २९

आज से हम मुख्य पैर की ओर मुड़ रहे हैं। आज हम पैरों की जाँघ का भाग व कमर के जोड़ के बारे में जानकारी लेंगे। कमर से लेकर घुटने तक का भाग यानी हमारी जाँघ। इस भाग की हड्डी को फीमर कहते हैं। यहीं पर एक ही हड्डी होती हैं। इसका ऊपरी सिरा कमर के जोड़ में सहभागी होता है, निचला सिरा घुटने के जोड़ में सहभागी होता है। फीमर हमारे अस्थिपंजर की सबसे लम्बी व सबसे मजबूत, शक्तिशाली हड्डी है।

fimar- फीमर शरीर का वजन व स्नायुओं के कार्यो के कारण यह हड्डी शक्तिशाली बनती है। जब हम चलते या दौड़ते है तो उस समय हमारे पैंरोंके बीच का जो अंतर होता हैं उसे stride कहते हैं। इसकी लम्बाई पर यह stride अवलंबित होता है। यह हड्डी जितनी ज्यादा लम्बी होती है यह अंतर उतना ही ज्यादा होता है।

फीमर के ऊपरी भाग में मुख्य शॅफ्ट पर अंदरुनी अर्थात शरीर के मध्य भाग की ओर मोटी गरदन होती हैं तथा उसके ऊपर लगभग पूर्ण गोलाकार सिरा होता है। यह सिरा पेलविस के अ‍ॅसिटॅब्युलम के साथ जोड़ बनाता है। फीमर का शॅफ्ट दंडगोलाकार व मोटा होता है। यह निचले भाग की तरफ ज्यादा चौड़ा व मोटा होता जाता है। अंतिम सिरे पर दो बड़े गोलाकार ऊभार होते हैं। जिन्हें कोंडाइल्स कहते हैं। इन कोंडाइल्स व पैर की टिबिया हड्डी से मिलकर गुड़दे का जोड़ बनता है।

हम जब खड़े होते हैं तो दोनों ओर की फीमर अस्थियां तिरछी रेषा में होती हैं। पेलवीस के कारण उनके सिरों का भाग एक दूसरे से दूर रहता है। परन्तु घुटनों (गुड़दों) की दिशा में ये दोनों अस्थियां एक-दूसरे के नजदीक आती हैं। ये इतना नज़दीक आ जाती हैं कि एक-दूसरे का स्पर्श कर सकती हैं। घुटनों के नीचे पैरो की हड्डी सरल रेषा में होती हैं। फलस्वरूप हमारे पंजे एक दूसरे के नजदीक आ सकते हैं। तात्पर्य यह है कि फीमर अस्थि के तिरछा होने के कारण ही हम सावधान स्थिती में खड़े रह सकते हैं। इसका उपभोग हमारे चलने व दौड़ने के लिये होता है। सोचों, अगर यह रचना ऐसी नहीं होती तो क्या हुआ होता? यदि फीमर अस्थि सीधी होती तो हमारे घुटने एक दूसरे से दूर ही रहते तथा पंजे भी एक दूसरे से दूर ही रहते। अर्थात खड़े होने पर हम सभी विश्राम स्थिति में ही खड़े रह सकते थे। पैरों की इस विश्राम की स्थिति में हम चल या दौड़ सकते थे क्या? शारीरिक टूट-फूट के कारण टेढ़े पैर वाले व्यक्तियों को हम अपने अगल-बगल देखते ही हैं। ऐसे व्यक्तियों को चलने और दौड़ने में कितना कष्ट होता है, यह हम सब देखते हैं। इससे हमें इस रचना का महत्त्व समझ आयेगा। पंजों को जोड़कर खड़े रहने की स्थिती को परेड़ में कितना उत्तेजनपूर्ण शब्द दिया गया है ‘सावधान’! अब सावधान रहों। तुम्हें अब चलना या दौड़ना हैं। अर्थात तुम्हें गतिशील होता हैं। इसके बिल्कुल विपरीत की स्थिति है – ‘विश्राम’ ! पैरों के एक दूसरे से दूर जाते ही – मेरी गतिशीलता कम हो गयी या रुक गयी। यदि सहजता से ये शरीर को उचित गति प्राप्त करना हो तो मेरे दोनों पैरों का एक-दूसरे के पास रहना आवश्यक हैं। यदि उनमें अंतर हो गया तो समझ लो कि शरीर की गति बाधित हो गयी।

यदि उपरोक्त समीकरण यदि हम अपने जीवन में अपनायें। तो क्या पता चलता हैं? मेरे जीवन को सहजता से उचित गति प्राप्त होने के लिये मुझे प्राप्त हुये मेरे सद्गुरु के दोनों चरण हमेशा एकत्र अथवा जोड़ी में हीं होने चाहिये। यदि उनमें दूरी आ गयी तो मेरे जीवन की गति भी रुक जायेगी। ऐसी स्थिती में हमारे जीवन को गंदे पानी के गढ्ढ़े में परिवर्तित होने में समय नहीं लगेगा। हमें प्राप्त हुये सद्गुरु के दो चरण कौन से हैं, यह तो हम सब जानते ही हैं। वे हैं – श्रद्धा और सबूरी, भक्ति और सेवा !

मनुष्य को जन्मत: ही सद्गुरु चरणों की प्राप्ति होती हैं। परमेश्‍वर ने मानव के शरीर की रचना से ही दोनों चरणों के एकत्रित रहने का महत्त्व समझा दिया है और वो भी वैज्ञानिक तरीके से। विज्ञान और अध्यात्म भी सद्गुरु के दो चरण ही हैं, ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं हैं। इसीलिये इन दोनो के बीच में जो भी दूरी निर्माण करता है वो फँसता हैं। खैर, अब हम अपनी जाँघ की हड्डी की जानकारी लेंगे।

फीमर के कमर की तरफ वाले सिरे के चार भाग हैं –

१)सिर अथवा हेड २)गर्दन या नेक ३)ग्रेटर ट्रोकॅन्टर और ४)लेसर ट्रोकॅन्टर

१)फीमर का सिर – गोलाकार होता है। यह फीमर का सबसे ऊपरी भाग होता है। पेलविस की ऑअसिटान्युलम? के साथ यह जोड़ बनता है।

२)गर्दन – यह साधारणत: ५ सेमी लम्बी होती हैं। सिरे को शाफ्ट से जोड़ने का काम यह करती है। फीमर के सिर और शाफ्ट के बीच १२५०० का कोण बनता हैं। फलस्वरूप कमर के जोड़ की गतियों से सुलभता होती हैं।

ग्रेटर व लेसर ट्रोकॅन्टर ऊभार होते हैं। ग्रेटर ट्रोकॅन्टर जाँघ के बाहरी तरफ और लेसर ट्रोकॅन्टर जाँघ के अंदरूनी तरफ होती हैं।

शाफ्ट – शाफ्ट बीच में कम चौड़ी व दोनो सिरों पर ज्यादा चौड़ी होती है। ऊपर की अपेक्षा निचला सिरा ज्यादा चौड़ा होता है। इसका आकार दंड गोलाकार होता है। (कमर और पैर के अनेक स्नायु इससे जुड़े होते हैं)।

फीमर का घुटने के पास भाग ज्यादा ही चौड़ा होता हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि शरीर के भार का वहन आगे चलकर पैर की टिबिया हड्डी तक इससे होता है। यहाँ पर दो बड़े कोन्डाइल्स के रूप में ये सिरा दिखायी देता है। सामने की ओर दोनो कोन्डाइल्स एकत्र होकर मुख्य शाफ्ट के साथ एकरूप हो जाते हैं। पीछे की ओर ये दोनो पूरी तरह अलग होते हैं। दोनों के बीच में बड़ा खढ्ढ़ा होता है जिसे intercondylar tossa कहते हैं। अँग्रेजी के ‘ण’अक्षर को उल्टा करने पर जो आकार दिखायी देता है वैसा इसका आर्टिक्युलर सरफेस होता है।

घुटने के बाहरी ओर की कोंडाइल ज्यादा मोटी होती है। यह शाफ्ट की सरल रेषा में आती हैं। फलस्वरूप भार-वहन का मुख्य काम इन कोडाइल के द्वारा होता है। ये दोनो कोंडाइल हमारे हाथों में लगते हैं।

(क्रमश:)

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