श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ७)

भक्ति के ऐसे अनेक लक्षण। एक से बढ़कर एक विलक्षण ।
हम सिर्फ गुरुकथानुस्मरण कर (का अनुसरण कर) ।
सुखे पैरों(कदमों/चरणों) ही भवसागर तर जायें॥(तर जाये भवसागर)
(श्रीसाईसच्चरित १/१०१)

shirdi_sainath_mauli‘गुरुकथानुस्मरण’ यही है वह भक्ति की आसान पगदंडी, जो हेमाडपंत हमें दिखा रहे हैं। इस भवसागर को सूखे कदमों से तर जाने के लिए यही पगदंडी हम सभी भक्तों के लिए राजमार्ग है। भवसागर के पानी कई एक बूँद का भी (सामान्य) स्पर्श पैरों को न होते हुए सूखे कदमों से यानी अत्यन्त सुरक्षित एवं वेग,गति के साथ भवसागर से तर कर दूसरी ओर ले जानेवाली ऐसी यह अद्‌भूत पगदंडी। अब मुझे बताओ ऐसी दूसरी कोई पगदंडी और कोई है क्या जो भवसागर के पानी के एक बूँद का स्पर्श भी पैसे को न होने देते पार ले जानेवाली है क्या? यह भवसागर अत्यन्त दुस्कर है, इसमें असंख्य बहरें, भँवरें, पाषाण हैं। इसकी गहराई को बड़े-बड़े ज्ञानी भी नहीं जान पायें हैं, साथ ही इसमें कितने ही मगरमच्छ के समान प्राणि होंगे उसका भी पता नहीं। सुंदरकांड में जिस निशिचरी राक्षसी का वर्णन किया गया है, जो उड़नेवाले पक्षियों की पानी में पड़नेवाली परछाईं को  पकड़कर उसी के आधार पर पक्षियों को खींचकर खा जाती है। वह भी इसी भवसागर की है। यह मायावी निशिचरी राक्षसी यानी ही ‘फलाशा’ जो भवसागर के ऊपर से उड़कर जानेवालो को खा जानेवाली है। यानी इस भवसागर को पार करने के लिए पनडब्बी नैय्या या हवाई जहाज (विमान) तीनों ही रास्ते से जाने में बहुत धोखे होते हैं।

इस भवसागर को ‘सूखे’ कदमों से तर जाने का हेमाडपंत यहाँ पर मार्ग बताते हैं, इस के माध्यम से वे हमसे क्या कहना चाहते हैं? सूखे कदमों से भवसागर को पार कैसे किया जा सकता है? पानी के नीचे से पानी के अंदर से पानी के ऊपर से कहीं से भी यदि हम जाना चाहते हैं तो यह भवसागर दुश्कर ही है, फिर यह कैसे ‘सूखे चरणों’ तर सकते हैं? (पार किया जा सकता है) भवसागर का स्पर्श भी न होते इसे कैसे पार किया जा सकता है? हेमाडपंतने ही उत्तर दिया है – ‘गुरुकथानुस्मरणद्वारा’ । इसका अर्थ है साईकथानुस्मरण के ‘सेतु’ पर से हम सभी भक्त, इस साईराम के वानरसैनिक ‘सूखे चरणों’ इस भवसागर को बिलकुल आनंदपूर्वक, नाचते, गाते अपने साईराम के साथ पार कर जायेंगे । हमारा सखा, हमारा भगवान, साईराम इस सेतु पर होनेवाला प्रेमप्रवास पुरा करवा लेनेवाले हैं और वे सदैव हमारे साथ ही इस प्रवास में हैं ही। ‘सेतु’ ही इस भक्ति की सहज सरल  पगदंडी है, जो भवसागर से सुखे चरणों तर जाने के लिए समर्थ है। सद्‌गुरु साईनाथ के कथाओं का बारंबार स्मरण यही उस भवसागर के ऊपर रहनेवाला अभेद्य सेतु है, जिसपर से सभी साईभक्तों की दिंडी साईराम के साथ साई के गोलोक में जानेवाली है,‘जानेवाली’ ही है।

रामायण में उल्लेखित सेतु कैसे बनाया गया था? सर्वप्रथम श्रीराम के आज्ञा से एवं उनकी कृपासे। हनुमानजीने स्वयं अपने हाथों से ही हर एक पाषाण पर रामनाम लिखा था परन्तु उससे पहले वानरों उन पाषाणों को उठाकर लाकर उसे हनुमानजी को दिया और उसके बाद ही उन पाषाणों को उन्होंने सागर में डाला वानरोंद्वारा किये जानेवाली इस पुरुषार्थ के कारण ही यह सेतु बनाया गया जिसके ऊपर से सारी की सारी वानर सेना सागर पार गयी। यहाँ पर भी श्रीसाईं के आज्ञा से एवं उनकी इच्छा के कारण ही यह ‘साईसच्चरित’ ‘सेतु’ का निर्माण हुआ है और इस साईराम की कृपा से ही  इस ‘सेतु’ पर से सूखे चरणों चलकर भक्त भवसागर को पार कर सके इसी लिए बाबा ने ही इसे बनाया है। श्रीसाईसच्चरित के हर एक कथा के हर एक साई भक्तों ने अप्ना अनुभवरूपी पाषाण अर्पण कर इस सेतु को बनाने में बानरप्रयास किया है। साईराम के हरएक भक्त के मन पर स्वयं रामदूत हनुमानजी ने ही रामानाम लिखा है और उस वानर सैनिकों के पुरुषार्थ से ही यह सेतु बना है। ‘श्रीसाईसच्चरित’ यह केवल ग्रंथ ही न होकर यह साक्षात सेतु ही सेतु ही है, हम जैसे साई भक्तों के लिए ‘साईकथानुस्मरण’ यानि इस साईसच्चरित का बारंबार प्रेमपूर्वक पारायण करना, मनन, चिंतन, निदिध्यासद्वारा मर्यादाशिल भक्ति का ‘आचरण’ करना ।

ऐसे इस साईसच्चरित के जैसा ‘सेतु’ भवसागर से (पार) तर जाने के लिए अत्यन्त सुरक्षित, आसाँन, सरल (वेगवान) गतिमय राजमार्ग है,जो ‘सूखे चरणों’ हर किसी को  उस पार ले जानेवाला है। इस में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस सेतु पर से होनेवाले प्रेमप्रवास में मेरे साईनाथ अपने वानरसेना के साथ सदैव चलते रहते है। बाबा के चावडी की वह पालकी यात्रा याद करके देखो! बिलकुल वैसा ही इस साईसच्चरित सेतु पर होनेवाला प्रेमप्रवास है। बाबा का भक्तों के साथ चावड़ी तक के प्रवास को यदि आँखों के सामने लायें तब इस भवसागर को तैर कर पार ले जानेवाले सेतु पर का प्रेमप्रवास कितना सुंदर होगा। इस बात पर पूरा विश्वास हो ही जायेगा। मुझे बताओ कि भवसागर को सूखे चरणों पार करले जानेवाला इस सेतु के समान दुसरा रास्ता है क्या? बिलकुल नहीं।

मुझे इस सेतु पर से प्रवास करके भवसागर पार जाना है। तो इस साईराम का वानरसैनिक बनना चाहिए। ‘प्रेमप्रवास’ ईस श्रीमद्‌पुरुषारर्थ के द्वितीय खंड में श्रीअनिरुद्धजी द्वारा बताये गये नवविधा निर्धारों का पालन करनेवाला वानर सैनिक ही इस सेतु पर से साईराम के साथ प्रेमप्रवास कर सकता है। हमें इस नवविधा निर्धार का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके उसके अनुसार ही बारीकी से(सोच-समझकर) आचरण करना चाहि, फिर यह भवसागर सूखे चरणों तर (जाने के लिए) जाना सहज ही आसान होगा। (है) इस सेतु पर से प्रवास करते समय भवसागर के गहराई का भय नहीं रहेगा, समुद्र में रहनेवाले मगरमच्छों अथवा निशिचरी का भय नहीं रहेगा, भवसागर के लहरों एवं भवरों का भी भय नहीं रहता। सद्‍गुरु साईनाथ जब स्वयं सदैव मेरे साथ होगें तो फिर भय को स्थान ही कहाँ रहेगा।

श्रीसाईसच्चरित के प्रथम अध्याय के मुख्य कथा से पहले ही हेमाडपंत ने इस साईसच्चरित का महत्त्व अत्यन्त सुंदर तरीके से हमें बताया है कि यह ‘सेतु’ है और अब इस सेतुपर हमारा प्रेमप्रवास का आरंभ हो रहा है। इस सेतु पर से सूखे चरणों से वही प्रवास कर सकता है जिसका हृदय साईप्रेम से भीगा (ओतप्रोत) हुआ है। जिसका हृदय सूखा (रूखा) है वह मात्र अभागा ही है, वह रूखा होने के कारण भवसागर में हिचकोले खाता रहता है। जो साईप्रेम में भींगा हुआ है, पूर्णत: भींग चुका है वही सूखे चरणों भवसागर तर जाता है। जिसका हृदय भींगा हुआ है उसके चरण सूखे ही रहेंगे और जिसका हृदय रूखा होगा उस डूबनेवाले के पैर और अधिक गहरे तक चले जाकर भींगे ही रहेंगे। हमें भवसागर में कैसे रहना है, डूबता है या सूखे चरणों श्रीसाईसच्चरित सेतु पर से नाचते, गाते हुए आनंद -उत्साह के साथ पार उतरना है। इसका निर्णय हमें ही करना है। आज-कल हमें सब कुछ ‘रेडिमेड’ चाहिए होता है, कम से कम परिश्रम करके सब कुछ ‘तैयार’ चाहिए होता है। फिर यहाँ तो साईराम ने अकारण कारुण्य कर हमारे लिए यह सेतु बनाकर रखने के बावज़ूद भी यदि हम उस पर से चलते का कष्ट नहीं करेंगे, तब ऐसे मैं बाबा भी क्या कर सकते हैं?  पहला कदम मुझे ही उठाना होगा(चाहिए)।

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