श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३५)

श्रीसाईनाथजी के आचरण का अध्ययन करके उससे सीख लेते हुए अब तक हमने तीन मुद्दों पर विचार किया ।

१)    समय का अचूक नियोजन (टाईम मॅनेजमेंट) करना ।
२)    कार्य के साथ-साथ, स्वयं के जीवन के लिए ज़रूरी रहनेवालीं बातों का भी ध्यान रखना।
३)    कार्य शुरू करने से पहले, कार्य करते समय एवं कार्य पूरा होने तक निर्धारित अंतिम ध्येय का पर ध्यान केन्द्रित रखना ।

श्रीसाईनाथकेवल अध्यात्म ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी उचित आचरण करना यह बात महत्त्वपूर्ण है । महीन आटा पीसने के बजाय यदि हम खुरदरा आटा भी पीस देते हैं, मगर तब भी उससे भी महामारी का नाश करने का सामर्थ्य ये साईनाथ ही रखते ही हैं, हम नहीं रखते । हमें अपना काम ईमानदारी के साथ ठीक से करना चाहिए और उस हर एक काम को सिर्फ ‘जैसे तैसे करना ही है’ इस भावना के साथ न करके पूर्णत: प्रेमपूर्वक, मन लगाकर करना चाहिए यानी उन चारों स्त्रियों के समान करना चाहिए ।

रसोई बनाते समय, साईनाथ के नाम, गुणों और लीलाओं का स्मरण करते हुए, गाते-गुनगुनाते हुए मन ही मन उन्हें याद कर जो महिला प्रेमपूर्वक सादा भोजन यानी दाल-चावल, सब्ज़ी-रोटी भी बनाती है, तो उसमें भी अमृत सी मिठास आ जाती है, किंबहुना प्रेमपूर्वक बनाये गए भोजन के सामने अमृत भी फिका पड़ जाता है ।

परन्तु इसके विपरीत यदि आलस के कारण या बिना प्रेम के, ‘अब करना ही है तो जैसे-तैसे भोजन पकाकर रख दो’, इस तरह हम बेमन से चार बरतनों में फेंक-फाक कर पकवान भी बनाते हैं, तब उसमें ना तो ‘रस’ होगा और ना ही ‘माधुर्य’। नानी या दादी जब अपने नाती-पोतों के लिए कोई आम व्यंजन भी बनाती है, तब उस समय नानी या दादी के हाथों का ‘स्वाद’ जो उस व्यंजन में उतरता है, उसके क्या कहने! नानी या दादी का प्यार ही उस पदार्थ को अमृत से भी अधिक स्वादिष्ट बनाता है ।

माधुर्य यानी मधुरता उस द्रव्य अथवा पदार्थ में नहीं होती, बल्कि मधुरता तो केवल प्रेम में ही होती है । जिस व्यक्ति के प्रिय आप्त या मित्र का अभी हाल ही में निधन हो गया हो, उसके सामने यदि पंच पकवान से भरी थाली लाकर रख दें, तो क्या वे पंच पकवान उस व्यक्ति को माधुर्य प्रदान कर सकेंगे? बिलकुल नहीं । परन्तु यहीं पर यह उदाहरण भी देख लीजिए- आर्थिक परिस्थिति अच्छी न होने के बावज़ूद भी यदि पति अपनी पत्नी के लिए प्रेमपूर्वक कोई सीधी सामान्य चीज़ भी खरीदकर उसे लाकर गिफ्ट देता है, तो वह उसके लिए सोने-चांदी जैसे कीमती ज़ेवरों से भी अधिक प्रिय होगी । फिर वह मोगरे का गज़रा ही क्यों न हो, वह भी उसके लिए अनमोल ही होगा ।

यही बात परमार्थ में भी पूर्ण रूप से सत्य साबित होती है । दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों के सामने अपने आप को महान बताने के लिए साईनाथ को सोने का मुकुट बनवाकर मैं सब के सामने अपनी बढ़ाई करते फिरता हूँ, तो अंहकारी स्वभाव से बनाया गया वह मुकुट क्या साईबाबा को अच्छा लगेगा! बाबा को मेरे मुकुट की तो क्या, मेरी भी कोई ज़रूरत नहीं है । आखिर मैं होता ही कौन हूँ बाबा को कुछ देनेवाला! साईबाबा सभी ऐश्वर्यों से संपन्न हैं, वे तो स्वयं ही ऐश्वर्यशक्ति के स्वामी हैं, साक्षात् महाविष्णु हैं । फिर भला हमारी क्या औकात उन्हें कुछ देने की!

और यदि मैं प्रेमपूर्वक तुलसी का एक पत्ता अथवा अन्य किसी भी पौधे का पत्ता तोड़कर उनके चरणों में प्रेम से अर्पण कर देता हूँ, तब भी बाबा उसे बडे प्यार से कबूल कर लेते हैं । वे सिर्फ़ प्रेम का ही स्वीकार करते हैं और वह प्रेम भी उन्हीं के प्रेमसागर की एक बिन्दु होती है । साईनाथजी हमें सिर्फ़ प्यार से ही मिलते हैं, किसी अन्य भाव से नहीं । कोई भी कार्य करने से पूर्व, करते समय एवं उसके पूर्ण हो जाने पर हमें उनके इस प्रेम का ध्यान रखना ज़रूरी है । जो कुछ भी मैं करता हूँ, वह बाबा के प्रति प्रेम रखकर ही करना चाहिए । बाबा के चरण-कमल यानी ‘प्रेम’ यही हमारा अंतिम ध्येय होना चाहिए । सारांश- हर एक कार्य, हर एक सेवा प्रेमभाव से ही करनी चाहिए, रूक्ष भाव से कभी नहीं करनी चाहिए ।

अब हम चौथे मुद्दे पर विचार करेंगे । चौथा महत्त्वपूर्ण मुद्दा है- जो कार्य करना है, उसके लिए जो सामग्री आवश्यक है, उस सामग्री की सारी तैयारी करके रखना अति-आवश्यक है । ऐन मौके पर ‘यह रह गया, वह रह गया, इसके लिए दौडो़, उसके लिए दौड़ो’ ऐसा नहीं होना चाहिए । बाबा ने सुबह उठकर बनिये के पास से गेहूँ लाये, फिर वे कहीं से जाँता, कहीं से सूप ले आये; फिर कहीं से खूंटा लाने के लिए उन्होंने किसी को भेजा ऐसा बिलकुल नहीं हुआ है ।

बाबा ने द्वारकामाई में पहले से ही गेहूँ की गोनी लाकर रखी थी । जाँता भी वहीं पर सँभाल कर रखा था । इतना ही नहीं नापक, पच्चर, गोनी, खूंटा और सूप इन सब चीजों की व्यवस्था भी पहले से ही कर रखी थी । गेहूँ पीसने से पहले ही बाबा ने हर एक चीज़ को तैयार कर रखा था । इसके लिए बाबा किसी पर भी निर्भर नहीं थे और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि बाबा स्वयं अच्छी तरह से सारा गेहूँ पीसने के लिए शारीरिक दृष्टि से भी सक्षम थे यानी ‘फिट’ थे ।

अन्यथा गेहूँ पीसने की सारी तैयारी तो कर ली, परन्तु आज इतना खाना खा लिया कि कल जब गेहूँ पीसने का काम करना है, उस वक्त मैं ही बीमार पड़ जाऊँ, तो पीसेगा कौन? यह स्थिति हमारी होती है । यानी इस पूर्व तैयारी में गेहूँ पीसने के सारे साधन, सारी सामग्री और साथ ही पीसनेवाला भी पूर्ण रूप से सक्षम होना चाहिए ।

सामग्री का भी ध्यान रखना चाहिए । माप, गोनता, पाचर, खूंटा ये साधन, साथ ही खूंटा ठोकने के लिए हथौडा अथवा पत्थर ये उपसाधन (जिनका कार्य में ठेंठ सहभाग न भी हो, मगर फिर भी उनके अभाव में कार्य रुक सकता है या ठीक से नहीं किया जा सकता) इन सब की व्यवस्था करना ज़रूरी है । जब हम पूजा की तैयारी करते हैं, उस समय भी ऐन मौके पर ‘यह रह गया, वह रह गया’ कहकर भाग दौड़ करते हैं । इस से समय बर्बाद होता है। खैर, पूजा तो हो ही जाती है, मगर फिर भी मन को ठीक नहीं लगता।

अब यही बात ले लीजिए- हम निरंजन में बाती एवं घी डालकर तैयार रखते हैं, थाली में कपूर आदि भी रख देते हैं, अगरबत्ती आदि भी पास ही में रखते हैं, परन्तु माचिस रखना भूल जाते हैं । आज कल घरों में गॅस जलाने के लिए लायटर का उपयोग किया जाता है, इस वजह से माचिस बॉक्स घर में नहीं होता और पूजा की सामग्री में भी उसका उल्लेख न होने के कारण ऐन मौके पर उसके अभाव में काम रुक जाता है, भाग दौड़ हो जाती है ।

इसी लिए ‘मुख्य’ एवं ‘पूरक’ सामग्री के साथ ‘उपसामग्री’ का भी आयोजन कर लेना चाहिए । परमार्थ हो अथवा गृहस्थी सभी जगह पर यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है । कोई भी कार्य आरंभ करने से पूर्व संपूर्ण तैयारी कर लेना ज़रूरी है, उसी प्रकार कार्य करते समय कौन-कौन सी अड़चने पैदा हो सकती हैं और उसके उपाय स्वरूप कौन-कौन सी साधन सामग्री ज़रूरी है,  इस पर सोचविचार करके उस की तैयारी कर लेना ज़रूरी है ।

जब हम बाहर गाँव प्रवास के लिए जाते हैं, उस वक्त इस मुद्दे को ध्यान में रखना जितना ज़रूरी है, उतना ही रोजमर्रा की जिन्दगी में भी प्रवास आदि करते समय भी इसे भूलना नहीं चाहिए। मुंबई में २६ जुलाई २००५  को हुई भारी बारिश के अनुभव के पश्चात्, बरसात के मौसम में घर से बाहर निकलते समय पानी की बॉटल, खाद्यसामग्री, टॉर्च तथा अन्य औषधि आदि भी अपने साथ रखना मुंबई में भी आवश्यक हो जाता है । उसी प्रकार रोज़मर्रा के जिन्दगी में घर से बाहर निकलते समय खाने का डिब्बा, पास, पाकीट, पैसा, रुमाल, आयडेंटिटी कार्ड, मोबाईल आदि बातों की जाँच-पड़ताल करके ही घर से बाहर निकलना ज़रूरी है।

आपात्कालीन परिस्थिति का सुव्यवस्थित रूप में सामना करने का प्रशिक्षण ए.ए.डी.एम. में दिया जाता है। उसमें सिखाया जाता है कि आवश्यक सामग्री से भरी हुई संदूक एवं महत्त्वपूर्ण का कागज़ात को हर किसी को पता हो ऐसे स्थान पर घर में तैयार रखना चाहिए, जिन्हें आपातकालीन परिस्थिति में फौरन उठाकर घर से बाहर निकला जा सके।

समय बताकर नहीं आता । उस पेटी में होनेवाली औषधि तथा अन्य सामग्री आऊट ऑफ डेट (कालबाह्य) तो नहीं हो गई हैं ना, इस बात का भी समय-समय पर ध्यान रखना ज़रूरी है। वरना, टॉर्च तो पेटी में है, परन्तु बॅटरी बहुत दिनों से अंदर ही पडी रहने के कारण  लीक हो गई है । इस बात का पता ऐन मौके पर चलने से क्या फायदा?

साईसच्चरित यह महज़ आध्यात्मिक ग्रंथ ही नहीं है, अपि तु यह साईनाथ एवं उनके भक्तों का आचरण है यानी यह ग्रंथ गृहस्थी एवं परमार्थ दोनों को एक ही समय पर आनंदमय कैसे बनाया जा सकता है, यह बताता है और इसके लिए ही पूर्व तैयारीवाला मुद्दा महत्त्व रखता है । स्वयं साईनाथ अपने कार्य के लिए आवश्यक लगनेवाली तैयारी बडी सावधानी के साथ करते हैं, यह बात यहाँ पर हम यही सीखते हैं । इसे केवल पढ़ लेना ही काफी नहीं है, बल्कि बाबा के आचरण पर गौर करके हमें इस शैली को अपने जीवन में अपनाना चाहिए ।

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